मुंबई, 7 जून | भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मंगलवार को बाजार के अनुमान के मुतााबिक और महंगाई के मोर्चे पर मिले झटके के कारण अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में प्रमुख नीतिगत दरों और आरक्षित अनुपात को पुराने स्तर पर बरकरार रखा। वहीं उद्योग जगत ने पहले की गई कटौतियों का लाभ आगे बढ़ाए जाने की उम्मीद जताई। दरों में बदलाव नहीं करने का फैसला आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन ने 2016-17 की दूसरी द्विमाही मौद्रिक नीति समीक्षा में की।
राजन ने कहा, “अप्रैल महीने में मिले महंगाई दर के झटके से भविष्य में महंगाई दर का अनुमान थोड़ा अनिश्चित हो गया।”
आरबीआई ने वर्तमान वित्त वर्ष के लिए विकास दर के अनुमान को भी 7.6 फीसदी पर बरकरार रखा।
राजन ने फिर एक बार वाणिज्यिक बैंकों को पिछली कटौतियों का लाभ आम ग्राहकों तक स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि लघु बचत योजनाओं की ब्याज दरों में सरकार द्वारा किए गए सुधारों और आरबीआई द्वारा वाणिज्यिक ऋण दरों की समीक्षा से भी ब्याज दर घटनी चाहिए।
प्रथम द्विमाही समीक्षा में पांच अप्रैल को आरबीआई ने रेपो दर में 25 आधार अंकों की कटौती कर इसे 6.75 फीसदी से घटाकर 6.5 फीसदी कर दिया था।
रेपो दर वह दर है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक अल्पावधि के लिए रिजर्व बैंक से उधार लेते हैं।
इसके साथ ही प्रथम समीक्षा में रिवर्स रेपो दर को 5.75 फीसदी से बढ़ाकर छह फीसदी कर दिया गया था।
रिवर्स रेपो दर वह दर है, जिस पर आरबीआई वाणिज्यिक बैंकों से अल्पावधि के लिए ली जाने वाली राशि पर ब्याज देता है।
आरबीआई ने नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) और सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) को भी पूर्व स्तर क्रमश: चार फीसदी और 21.25 फीसदी पर बरकरार रखा।
सीआरआर वाणिज्यिक बैंकों की नकदी का वह अनुपात है, जो उन्हें आरबीआई में अनिवार्य तौर पर रखना होता है। वहीं एसएलआर वह आनुपातिक राशि है, जो वाणिज्यिक बैंकों को निर्दिष्ट प्रतिभूतियों में निवेश करनी होती है।
राजन ने कच्चे तेल मूल्य और अन्य कमोडिटी कीमतों में वृद्धि के रुझानों, सातवें केंद्रीय वेतन आयोग की रपट के कार्यान्वयन, महंगाई बढ़ने की संभावना और समग्र मूल्य संभावना जैसे जोखिमों का उल्लेख करते हुए दरों को जस का तस रखने की घोषणा की।
बाद में राजन ने संवाददाताओं से कहा कि कुछ कंपनियों द्वारा भुगतान बैंक लाइसेंस वापस किए जाने को लेकर आरबीआई अधिक परेशान नहीं है। राजन ने एक ऐसी व्यवस्था बनाए जाने का सुझाव दिया, जिसमें यह सुनिश्चित हो सके कि आवेदन करने से पहले कंपनियां कारोबार से जुड़ी बारीकियों पर पूरी तहकीकात कर ले, क्योंकि आवेदन की जांच करने पर खर्च होता है।
आरबीआई की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए मूडीज इनवेस्टर सर्विस में सॉवरेन रिस्क ग्रुप के लिए वरिष्ठ उपाध्यक्ष मारी डायरॉन ने कहा कि निकट भविष्य में मौद्रिक नीति में विशेष बदलाव की उम्मीद नहीं है। बल्कि मौद्रिक नीति के लाभ को आगे बढ़ाने का देश के आर्थिक विकास और साख प्रोफाइल पर प्रभाव पड़ेगा।
उद्योग संघ फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) के अध्यक्ष हर्षवर्धन नेवतिया ने कहा कि आरबीआई का फैसला उम्मीदों के अनुरूप है। उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि आरबीआई द्वारा पिछली कटौतियों का लाभ आगे बढ़ाए जाने पर लगातार ध्यान टिकाए रखने का प्रभावी परिणाम मिलेगा।”
उद्योग संघ एसोचैम के अध्यक्ष सुनील कनोरिया ने यहां एक बयान में कहा, “आरबीआई ने उद्योग को कोई झटका नहीं दिया है, क्योंकि आरबीआई महंगाई दर पर मानसून और बढ़ते कमोडिटी मूल्यों जैसे कुछ खास वैश्विक पहलुओं के प्रभावों को देखना चाहता है।”
मैक्स लाइफ इंश्योरेंस के निदेशक मिहिर वोरा ने एक बयान में कहा, “उम्मीद के मुताबिक आरबीआई ने दरों को जस-का-तस छोड़ दिया। इसने उदारवादी रुख भी कायम रखा है और मुख्य ध्यान पिछली दर कटौतियों को आगे बढ़ाने पर टिका रखा है।”
भारतीय उद्योग परिसंघ के अध्यक्ष चंद्रजीत बनर्जी ने कहा कि आरबीआई को दर कटौती चक्र को जारी रखने पर जोर देना चाहिए था।
उन्होंने कहा, “इसके बदले आरबीआई ने बैंकों द्वारा दर कटौतियों को लाभ कर्ज लेने वालों को प्रदान करने पर भरोसा करने का चुनाव किया। अभी जबकि ऋण की मांग कम है और उद्योग के सामने मांग की कमी का संकट है, दर कटौती से निवेश का चक्र फिर से स्थापित हो सकता था।”–आईएएनएस
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