रायपुर, 28 जनवरी। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के जिला चिकित्सालय परिसर में से ‘सखी’ नाम से स्थापित देश के पहले वन स्टॉप सेंटर ने अनेक बिखरे परिवारों की खुशियां लौटा दी हैं। गत 16 जुलाई को स्थापित यह केन्द्र महिलाओं को न्याय दिलाने में तो काफी मददगार साबित हो रहा है, साथ ही कई दम्पत्तियों की गृहस्थी को टूटने से बचाने में भी इस केन्द्र को अच्छी सफलता मिल रही है। अब तक यहां दर्ज दो सौ से ज्यादा प्रकरणों में से करीब डेढ़ सौ प्रकरण सुलझाये जा चुके हैं।
सखी में दर्ज प्रकरणों में से 193 प्रकरण आवेदिकाओं द्वारा केन्द्र में स्वयं आकर दर्ज करवाया गया है, जबकि 23 प्रकरण दूरभाष के माध्यम से दर्ज करवाया गया है। केन्द्र की एक खासियत यह भी है कि यहां केस दर्ज करने के लिए कम्प्यूटर में आटो सिस्टम सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जा रहा है। इस साफ्टवेयर में आटो सिस्टम से फोन या स्वयं सेंटर में उपस्थित होकर पीड़ित द्वारा दर्ज केस की आडियो रिकार्डिंग हो जाती है। इस प्रकार दर्ज केस में बाद में किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया जा सकता।
यहां कालीबाड़ी स्थित जिला चिकित्सालय परिसर में स्थापित पांच बिस्तरों वाले इस केन्द्र में अन्य पुनर्वास की व्यवस्था होने तक आवेदिका को अधिकतम पांच दिन तक रहने की सुविधा दी जाती है। यहां आवास के साथ भोजन की भी व्यवस्था है। ‘सखी‘ में दर्ज प्रकरणों में ज्यादातर मामलों मेें पहले आवेदिका और अनावेदक पक्ष को समझाईश (काउंसिलिंग) देकर प्रकरण को सुलझाने का प्रयास किया जाता है। दोनों पक्षों की काउंसलिंग के समय काउंसलर के साथ ही विधिक सलाहकार, सब-इंस्पेक्टर और केन्द्र प्रभारी उपस्थित रहते हैं।
यहां अब तक ज्यादातर निराकृत प्रकरणों में महिलाओं और बालिकाओं को काउंसलिंग के बाद वापस उनके घर या परिजनों के पास भेजा गया है। जरूरत के अनुसार आवेदिकाओं को नारी निकेतन और रिम्स अस्पताल (मेंटल हॉस्पिटल) भी भेजा जाता है। अब तक यहां से चार महिलाओं को नारी निकेतन और चार महिलाओं को रिम्स भेजा जा चुका है, जबकि सखी में स्थित आश्रय कक्ष 42 आवेदिकाएं आश्रय ले चुकी है। आवेदिका को घर वापस भेजने के बाद भी वस्तु स्थिति का जायजा लेने के लिए केन्द्र के संबंधित अधिकारी-कर्मचारी सतत रूप से आवेदिका और उनके परिजनों से सम्पर्क करते रहते हैं। .
ज्ञातव्य है कि घर के भीतर और घर के बाहर अथवा किसी भी रूप में पीड़ित व संकटग्रस्त महिलाओं को एक ही छत के नीचे एकीकृत रूप से सहायता उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार के सहयोग से केन्द्र सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा संचालित की जा रही है। यहां सभी वर्ग की महिलाओं को सलाह, सहायता, मार्गदर्शन और संरक्षण प्रदान किया जाता है।
केन्द्र में दैहिक शोषण, दहेज प्रताड़ना, घरेलू हिंसा, सम्पत्ति विवाद, व्यक्तिगत विवाद, बलात्कार, पेंशन संबंधित समस्या, टोनही प्रताड़ना, विक्षिप्तता, रांग नम्बर से परेशानी, धोखाधड़ी और छेड़छाड़ सहित अन्य कई प्रकार के केस दर्ज किए जा चुके हैं।
वन स्टाप सेंटर में किसी भी रूप में पीड़ित महिलाओं और बालिकाओं को उनकी जरूरत के अनुसार सभी प्रकार की आपातकालीन सुविधा तत्काल उपलब्ध कराया जाता है। इस केन्द्र में जरूरतमंद महिलाओं को चिकित्सा, विधिक सहायता, मनोवैज्ञानिक सलाह, मनोचिकित्सा और परामर्श सुविधा प्रदान की जाती है।
वन स्टाप सेन्टर ‘सखी’ में महिलाओं को अनेक प्रकार की सेवाएं प्रदान की जाती है। यहां हिंसा या संकटग्रस्त महिला के बचाव और सहायता के लिए वर्तमान में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, 108 हेल्पलाइन सेवा, पुलिस (पी.सी.आर. वैन) आदि का उपयोग करते हुए आवश्यकता के अनुसार उन्हें निकटतम चिकित्सालय अथवा आश्रय गृह में भिजवाने की व्यवस्था की जाती है।
इस केन्द्र के माध्यम से महिलाओं को एफ.आई.आर., डी.आई.आर. और एन.सी.आर. दर्ज करने में भी सहायता दी जाती है। जरूरत के हिसाब से दक्ष परामर्शदाताओं की सेवाएं वन स्टॉप सेंटर में ही उपलब्ध करायी जाती है। परामर्श की प्रक्रिया के तहत आवेदिका में आत्मविश्वास जागृत करने, उनके प्रति हुई हिंसा के विरूद्ध आवाज उठाने और न्याय पाने के लिए वांछित सहायता उपलब्ध करायी जाती है। यहां नामित अधिवक्ता अथवा जिला विधिक सहायता प्राधिकरण की मदद से हिंसा पीड़ित महिला अथवा विधिक सहायता की जरूरतमंद महिला को विधिक सलाह और सहायता दी जाती है।
आश्रय की आवश्यता वाली संकटग्रस्त महिलाओं और बालिकाओं को जरूरत के अनुसार स्वाधार गृह, अल्पकालीन आवास गृह, नारी निकेतन एवं बालिका गृह इत्यादि में तत्काल आवास सुविधा उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक कार्यवाही की जाती है। इस केन्द्र में महिलाओं को कोर्ट और पुलिस से संबंधित कार्यवाहियों को बाधारहित तथा शीघ्रता से पूर्ण करने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेसिंग की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है। इसके अलावा महिलाओं और बालिकाओं को उनसे संबंधित कानूनी प्रावधानों और अधिकारों की जानकारी बेहतर तरीके से देने के लिए वन स्टॉप सेंटर द्वारा समय-समय पर कार्यशाला का आयोजन किया जाता है।
सखी द्वारा सुलझाये गए कुछ प्रकरणों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:- (1) कोरिया जिले की 26 वर्षीय युवती गीता सिंह (परिवर्तित नाम) 27 जुलाई 2015 को परिवार पेंशन की समस्या लेकर वन स्टॉप सेंटर पहुंचीं थीं। उन्होंने बताया कि वे लोग चार बहन और दो भाई है। एक भाई कान से सुन नहीं पाता और दूसरा भाई भी शारीरिक रूप से कमजोर है, जबकि आवेदिका स्वयं और उसकी बड़ी बहन विवाह योग्य है, इस वजह से माता-पिता की मृत्यु के बाद तीसरे नम्बर की बहन के नाम पर परिवार पेंशन के लिए आवेदन किया गया और उसी के नाम पर नौ हजार रूपए परिवार पेंशन मिलता था, लेकिन तीसरे नम्बर की बहन शादी के बाद उन्हें परिवार पेंशन नहीं मिल रहा है। इसकी वजह से एक-दूसरे के प्रति व्यवहार भी खराब हो गया था।
प्रकरण की जानकारी के बाद वन स्टॉप सेंटर द्वारा दोनों पक्षों की काउंसलिंग कर आपसी समझौता कराया गया। इसके बाद तीसरे नम्बर की बहन ने परिवार पेंशन से अपना नाम हटवा दिया और वन स्टॉप सेंटर की समझाईश पर अपने निःशक्त भाई को अपनी जगह नामिनी बना दिया। अब दोनों पक्षों के बीच आपसी व्यवहार भी अच्छा हो गया है, दो परिवार फिर से जुड़ गए है।
(2) दुर्ग जिले में कनिष्ठ अभियंता के पद पर पदस्थ 33 वर्षीय श्रीमती संध्या साहू (परिवर्तित नाम) ने 21 जुलाई 2015 को वन स्टॉप सेंटर पहुंचकर बताया कि स्थानांतरण के बाद वह वर्तमान पदस्थापना स्थल पर कार्यभार संभालने 11 मई 2015 को गई थी, लेकिन दूसरे दिन उसकी तबियत खराब होने के कारण चार जून 2015 तक वह छुटटी पर रही। इसके बाद वापस काम में आफिस जाने पर संबंधित सहायक अभियंता द्वारा उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया और धमकी दी गई, जिससे वह मानसिक रूप से परेशान रहने लगीं। मानसिक तनाव की स्थिति में ही उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देने के लिए विभाग को पत्र भेज दिया। इस दौरान उन्हें समाचार पत्र के माध्यम से वन स्टॉप सेंटर की जानकारी मिली और यहां आकर उन्होंने अपनी समस्या बताई।
इस पर कार्यवाही करते हुए दोनों पक्षों को सेंटर में बुलाकर समझाईश दी गई, समझाने पर अनावेदक ने मौखिक और लिखित रूप से फिर कभी किसी प्रकार दुर्व्यवहार नहीं करने का आश्वासन दिया। इसके बाद संध्या ने अपना कार्यभार संभाल लिया और अब उन्हें कोई परेशानी नहीं है।
(3) राजधानी रायपुर की रहने वाली श्रीमती शोभा शुक्ला (परिवर्तित नाम) ने 17 जुलाई 2015 को सखी में आकर सास-ससुर के खिलाफ दहेज प्रताड़ना की शिकायत की थी। जब आवेदिका और अनावेदक पक्ष को सेंटर में बुलाकार आमने-सामने बात कराया गया, तो स्वयं आवेदिका अपना बयान बार-बार बदलती हुई प्रतीत हुईं। काउंसलिंग के दौरान आवेदिका को समझाया गया कि सास-ससुर की सेवा करना उनका दायित्व है। सास-ससुर की सम्पत्ति उन्हें तभी मिलेगी, जब वे प्रेम व्यवहार के साथ अपने सास-ससुर की सेवा करेंगी। सखी की समझाईश पर आवेदिका ने थाने में बुजुर्ग सास-ससुर के विरूद्ध दर्ज प्रकरण वापस ले लिया। साथ ही दोनों पक्षों फिर से साथ में रहने के लिए तैयार भी हो गए।
Follow @JansamacharNews