नई दिल्ली, 13 मई | देश की शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को आपराधिक मानहानि कानून की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने इस कानून को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि आपराधिक मानहानि कानून का अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से बार-बार टकराव होता है, इसलिए यह कानून खत्म किया जाए। लेकिन शीर्ष अदालत इस तर्क से सहमत नहीं हुई।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति प्रफुल्ल.सी. पंत की सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने मुख्य रूप से आपराधिक प्रक्रिया संहिता, नागरिक कानून की धारा 499 और 500 को बरकरार रखते हुए कहा कि मानहानि कानून का अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई भयावह प्रभाव नहीं पड़ता।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने फैसला सुनाते हुए कहा, “गायकमंडली में मौजूद सभी लोगों के लिए जरूरी नहीं है कि वे एक ही गीत गाएं।”
उन्होंने कहा कि एक मजिस्ट्रेट को आपराधिक मानहानि का मुकदमा शुरू करने के लिए समन जारी करते समय अत्यधिक सतर्क रहना चाहिए।
इस मामले में एक महीने तक सुनवाई के बाद पिछले साल 13 अगस्त को फैसला सुरक्षित रखा गया था।
धारा 499 का संबंध किसी व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने के ध्येय से लिखे या बोले शब्दों से है। धारा 500 का संबंध मानहानि मामले में सजा से है, जिसमें दो साल की साधारण सजा या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।
इस फैसले का महत्व इसलिए भी है कि राजनीति क्षेत्र से मानहानि के कई मामले दायर किए गए हैं। खास तौर से केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली द्वारा केजरीवाल के खिलाफ दायर मुकदमा एक ताजा उदाहरण है। –आईएएनएस
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