नई दिल्ली, 01 फरवरी (जनसमा)। आजादी के बाद से लेकर अब तक बैंकिंग सेक्टर छोटे व्यवसायियों को ऋण देने में असफल रहा है क्योंकि नॉन कॉरपोरेट सेक्टर के कुल 4% हिस्से को ही बैंकों से ऋण मिल पाया है। ऐसी स्थिति में छोटे व्यवसायियों के वित्तीय समावेश को सुनिश्चित करने हेतु सरकार संसद के आगामी सत्र में मुद्रा को एक स्वतंत्र नियामक के रूप में स्थापित करने के लिए कानून लाये और उसे पारित कराया जाए।
मुद्रा रिज़र्व बैंक के दायरे से बाहर होना चाहिए क्योंकि गत अनेक दशकों में रिज़र्व बैंक ने अपनी सोच में छोटे व्यवसायियों की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में कोई तवज्जो दी ही नहीं है ।रिज़र्व बैंक का ध्यान सदा कॉरपोरेट सेक्टर की तरफ ही रहा है ।
यह मांग कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी.सी.भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खण्डेलवाल की है ।
कैट ने वित्त मंत्री अरुण जेटली से आग्रह किया की मुद्रा को रिज़र्व बैंक के दायरे से बाहर रखते हुए एक स्वतंत्र नियामक और विकासोन्मुखी संस्थान के रूप में विकसित किया जाए । जब बड़े व्यापार को नियंत्रित करने के लिए सेबी स्वतंत्र नियामक के रूप में काम कर सकता है तो छोटे व्यवसाय के लिए मुद्रा क्यों नहीं एक स्वतंत्र नियामक बनाया जा सकता है !
खण्डेलवाल ने कहा की मुद्रा वास्तव में एक बहुत ही मजबूत एवं विकासशील कदम है जो विश्व की सबसे बड़ी व्यावसायिक व्यवस्था जिसमें 5 .77 करोड़ छोटे व्यवसाय शामिल हैं।
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