श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश), 23 मई | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को फिर से उपयोग में लाए जा सकने योग्य देश के प्रथम स्वदेशी प्रक्षेपण यान (आरएलवी) के सफल प्रक्षेपण पर वैज्ञानिकों को बधाई दी। इसका उद्देश्य उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में पहुंचाना और फिर वातावरण में लौट आना है।
मोदी ने देश के वैज्ञानिकों को इस अभूतपूर्व सफलता पर बधाई देते हुए कहा, “भारत का पहला स्वदेशी प्रक्षेपण यान (आरएलवी) हमारे वैज्ञानिकों के अथक प्रयास का नतीजा है। उन्हें बधाई!”
उन्होंने लिखा, “जिस लगन और समर्पण के साथ हमारे वैज्ञानिकों और इसरो (भारत अंतरिक्ष एवं शोध संगठन) ने वर्षो से काम किया है, वह अपवाद और प्रेरित करने वाला है।”
फाइल फोटो: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 24 सितंबर, 2014 को इसरो मुख्यालय, बेंगलुरु में।
यान के पृथ्वी पर लौटने के बाद इसरो के निदेशक देवी प्रसाद कार्णिक ने आईएएनएस को बताया, “हमने आरएलवी-टीडी मिशन को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया। इसे सुबह सात बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित इसरो के अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया।”
भारत ने सोमवार को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से अपना प्रथम स्वदेशी फिर उपयोग में लाए जा सकने वाले प्रक्षेपण यान (आरएलवी) का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के निदेशक देवी प्रसाद कार्णिक ने आईएएनएस को बताया, “हमने आरएलवी-टीडी मिशन को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। इसे यहां से सुबह सात बजे प्रक्षेपित किया गया।”
इस मिनी अंतरिक्ष यान पृथ्वी से लगभग 70 किलोमीटर ऊपर 10 मिनट की उड़ान के बाद वापस बंगाल की खाड़ी में आ गिरा।
इस 1.7 टन वजनी आरएलवी को आंध्र प्रदेश में इसरो के अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया।
इस मिशन के सफल होने के बाद भारत, अमेरिका, रूस और जापान जैसे देशों की कतार में खड़ा हो गया है, जिनके पास आरएलवी अंतरिक्ष यान हैं।
गौरतलब है कि इस उड़ान परीक्षण के लिए बूस्टर के साथ सात मीटर लंबे रॉकेट का इस्तेमाल किया गया, जिसका वजन 17 टन था।
इस मिशन से इसरो हाइपरसोनिक गति, स्वायत्त लैंडिंग के डेटा संग्रहित करने में सक्षम हो गया है।
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के निदेशक के.सिवन ने आईएएनएस को बताया, “इस मिशन का दीर्घकालिक उद्देश्य फिर से इस्तेमाल किए जा सकने वाले प्रक्षेपण यान के जरिये लांच पर आने वाली लागत को 80 प्रतिशत तक घटाना है।”
अंतरिक्ष एजेंसियां पृथ्वी की कक्षाओं में उपग्रहों को स्थापित करने के लिए मध्यम से भारी वजन के रॉकेटों के निर्माण और इस्तेमाल पर प्रति किलोग्राम 20,000 डॉलर तक खर्च करती हैं।
Follow @JansamacharNews