सिद्धार्थ दत्ता====
नई दिल्ली, 15 जून | कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने कांग्रेस के शासन में आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देने के किए गए वादे पर राज्य की जनता के साथ धोखा किया है।
कर्नाटक से नवनिर्वाचित राज्यसभा सदस्य जयराम ने आईएएनएस के साथ साक्षात्कार में पुरानी यादें ताजा करते हुए कहा कि किस प्रकार तत्कालीन कांग्रेस सरकार विशेष श्रेणी का दर्जा चाहती थी, जिसके अंतर्गत पांच वर्षो के लिए आंध्र प्रदेश को मुआवजे के तौर पर भारी वित्तीय पैकेज देना शामिल था।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जो उस समय विपक्ष में थी, उसने न केवल इसे स्वीकार किया था, बल्कि कहा था कि अगर वह सत्ता में आएगी तो इसकी अवधि बढ़ाकर 10 साल कर देगी।
रमेश ने कहा कि आंध्र प्रदेश के पूर्व भाजपा अध्यक्ष और मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने यह वादा किया था।
कांग्रेस नेता ने कहा, “हमने पांच वर्षो के लिए विशेष श्रेणी का दर्जा देने का वादा किया था। नायडू ने कहा था कि 10 वर्षो के लिए ऐसा किया जाएगा। आखिरकार उन्होंने इसे बिल्कुल भी लागू नहीं किया है। इस सरकार ने इसे समाप्त कर दिया है।”
रमेश ने कहा, “नायडू ने (राज्यसभा में) 20 फरवरी, 2014 को जो कहा था, उसे देखते हुए यह आंध्र की जनता के साथ धोखा है।”
सभी औद्योगिक और वाणिज्यिक विकास भौगोलिक दृष्टि से नए राज्य तेलंगाना का हिस्सा बनने वाली राजधानी हैदराबाद के आसपास होने के कारण राज्य को होने वाले नुकसान के बदले विभाजन का घोर विरोध करने वाले आंध्र के लोगों को विशेष केंद्रीय मदद का आश्वासन दिया गया था।
लेकिन भाजपा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के सत्ता में आने के दो वर्षो के बाद भी कुछ नहीं हुआ है, आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ तेलुगू दशम पार्टी (तेदेपा) जिसकी घटक है।
क्या कांग्रेस का दबाव सत्तारूढ़ भाजपा को राज्य को विशेष दर्जा देने के लिए बाध्य करने में नाकाफी है? इस सवाल पर रमेश ने कहा, “हमने (विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर) आंदोलन किया, लेकिन यह सरकार का फैसला है। हम उन्हें बाध्य नहीं कर सकते। यह सरकार का फैसला है।”
राज्य को विशेष दर्जा देने के कांग्रेस के वादे को ‘उचित’ ठहराते हुए रमेश ने कहा, “लड़ाई (आंध्र और तेलंगाना के बीच) हैदराबाद को लेकर थी। उसे विभाजित नहीं किया जा रहा था। राज्य को मिलने वाला 50 प्रतिशत राजस्व अकेले हैदराबाद से आता था। इसलिए हैदराबाद के मुद्दे ने काफी मुश्किलें पैदा की थीं।”
पूर्व मंत्री ने आंध्र प्रदेश के विभाजन की गाथा को अपनी किताब ‘ओल्ड हिस्ट्री-न्यू ज्योग्राफी – बाइफरर्केटिंग आंध्र’ में लिपिबद्ध किया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि इस मुश्किल फैसले ने कांग्रेस को किस खतरे की स्थिति में डाल दिया था।
उन्होंने आईएएनएस को बताया कि विभाजन के इस फैसले के कारण कांग्रेस में भी गहरा विभाजन हो गया था, जिसमें “बेहद मजबूत तेलंगाना समर्थक भावना के साथ ही बेहद मजबूत तेलंगाना विरोधी भावना भी थी।”
रमेश ने कहा, “कांग्रेस में बुरी तरह मतभेद हो गया था। यहां तक कि अब भी यह भीतर तक मौजूद है। पार्टी को एक ‘असाधारण स्थिति’ का सामना करना पड़ा था, क्योंकि राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी भी फैसले के खिलाफ थे।”
आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के मुख्य वास्तुकार रमेश ने किताब में कहा है कि कैसे कुछ कांग्रेस नेताओं ने उनके पास आकर कहा था कि वह उनका और पार्टी का राजनीतिक मृत्युलेख लिख रहे हैं।
उन्होंने कहा, “अफसोस की बात है कि सीमांध्र से मेरे सहकर्मी दुखी थे और उन्होंने आकर मुझसे कहा कि मैंने नए राज्य आंध्र प्रदेश में उनका और निश्चित तौर पर कांग्रेस का राजनीतिक मृत्युलेख लिख दिया है।”
जयराम ने कहा, “लेकिन फैसला लिया जा चुका था। कांग्रेस कार्यकारिणी, मंत्रिमंडल और संसद ने एक फैसला ले लिया था। मुझे इससे कोई खुशी नहीं हुई कि मेरी पार्टी का एक हिस्सा बेहद खुश था और एक हिस्सा खुश नहीं था।”
अपनी किताब में उन्होंने लिखा है, “हमारे तेलंगाना के लोग बेहद खुश थे, लेकिन आंध्र के लोग खुश नहीं थे।” –आईएएनएस
(फाइल फोटो)
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