“जीवन संघर्ष है और उसको उत्सव में बदलना एक कला है’’ : श्री श्री रविशंकर

नई दिल्ली, 11 मार्च (जनसमा)। आर्ट ऑफ लिविंग के 35 साल पूरे होने पर आयोजित होने वाले तीन दिवसीय ‘विश्व सांस्कृति समारोह’ को संबोधित करते हुए श्री श्री रविशंकर ने कहा, ‘‘जीवन जीने की कला आध्यात्म है। यह दिलों से दिलों को जोड़ने की कला है। मौन और उत्सव दोनों साथ-साथ चलते हैं। जीवन संघर्ष है और उसको उत्सव में बदलना एक कला है।’’

उन्होंने कहा कि 5 ऐसे क्षेत्र हैं जो दुनिया को एक सूत्र में पिरोते हैं इनमें खेल, कला, विचार, व्यापार और आध्यात्म है। मानव जाति को यह सब एक सूत्र में बांधते हैं। भारत में हम लोग सपना देखते रहे कि विश्व एक परिवार हो ‘वसुधैव कुटुम्बकम’’! और आज आप सबको देख कर लगा रहा है कि हम सब एक हैं।

उन्होंने कहा कि कथनी और करनी में भेद न हो भीतर बाहर सुकून पैदा हो, इसलिए आध्यात्म है। अपने भीतर झांककर देखें कि जो सब में है, वह अपने में है। आध्यात्म की लौ को लेकर निकलना है। याद रखिए, जितना प्यार समाज को हम देंगे, उसके 100 गुना आपके पास लौटता है। समष्टि को अपने में समेटने की कला है आध्यात्म। इस लौ को पूरी दुनिया में ले जाते है।

श्री श्री ने कहा कि किसी ने कहा कि यह गुरूजी की प्राइवेट पार्टी है। तो दुनिया मेरा परिवार है। सत्य है और मैं इसका स्वागत करता है क्योंकि अपने लिए कुछ नहीं चाहिए तो सारा संसार अपना हो जाता है। जीवन में कोई भेद नहीं रहता है। जीवन में रोशनी दिखेगी और उसी ज्योति में सारा संसार बसा है।

इससे पहले प्रधानमंत्री की मौजूदगी में कार्यक्रम में मशहूर कथक गुरू बिरजू महाराज के निर्देशन में कथक कलाकारों ने नृत्य प्रस्तुत किया।

उसके बाद 8 हजार 500 सौ कलाकारों ने 50 तरह के वाद्य यंत्रों को एक साथ बजाकर एक अलग ही तरह का अनुभव कराया। यह कलाकार भारत के 110 जिलों से चुनकर आए थे। दक्षिण भारत की समृद्ध कला भरतनाट्यम नृत्य को 17 सौ कलाकारों ने एक साथ पेश किया।