उज्जैन, 9 मई | हरिद्वार के देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रति-कुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने यहां रविवार को कहा कि व्यक्तित्व परिष्कार का मार्ग यज्ञ है। यज्ञ सबसे बड़ी वैज्ञानिक प्रकिया है। उन्होंने 108 कुंडीय गायत्री महायज्ञ की यज्ञशाला में व्याख्यान देते हुए कहा कि प्रकृति लेने-देने, बोओ-काटो के सिद्धांत पर चल रही है। जो लेकर आए हैं, उसे भगवान को लौटा देने का काम ही यज्ञ है। जिसमें देने का सामथ्र्य, अधिकार एवं भाव हो वही देवता है।
सिंहस्थ कुंभ में पहुंचे डॉ. पण्ड्या कहा, “हम देने का कार्य करने में चूक रहे हैं। यज्ञ संसार की सबसे बड़ी वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जो हमारी देव संस्कृति का प्रमुख कार्य है।”
उन्होंने आगे कहा कि जो दिखाई नहीं पड़ता, वह वातावरण है। यानी वातावरण सूक्ष्म होता है और सूक्ष्म का शोधन करना ही यज्ञ है। सुधारने के लिए एक दंड प्रक्रिया है। दूसरा व्यक्तित्व परिष्कार का मार्ग है, वही यज्ञ है। समग्र रूपांतरण व्यक्तित्व का होना चाहिए, जैसे यज्ञ में होमी गई सामग्री रूपांतरित होकर ऊपर धुआं के रूप में उठती है।
उन्होंने कहा कि इसी सामग्री में औषधियां मिलाकर हवन करके अगणित लोगों को श्वांस के माध्यम से उपचारित किया जा सकता है। इंसानियत यज्ञ का सबसे बड़ा ज्ञान है, यज्ञ अग्नि में जो भी डाला जाता है वह बिना किसी भेदभाव के सब तक समान मात्रा में पहुंचाती है।
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