युवाओं के लिए निष्पक्ष और पारदर्शी बने बीसीसीआई : सर्वोच्च न्यायालय

नई दिल्ली, 26 अप्रैल | सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) से सोमवार को कहा कि वह एक सामाजिक दायित्व का पालन कर रहा है। इसलिए उसे अपने काम में निष्पक्ष, पारदर्शी, ईमानदार रहना होगा और सभी को बराबर को मौका देना होगा, क्योंकि देश में कई ऐसे युवा हैं जो महेन्द्र सिंह धौनी और विराट कोहली बनना चाहते हैं।

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी. एस. ठाकुर और न्यायमूर्ति फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला की खंडपीठ ने कहा, “आपको मानना होगा कि आप सार्वजनिक दायित्व निभा रहे हैं। आप यह नहीं कह सकते कि हम बिहार क्रिकेट संघ या किसी और संघ को पसंद नहीं करते और यह मेरी मर्जी है कि हम बिहार को अपने साथ रखें या नहीं।”

खंडपीठ ने मामले की सुनवाई में अदालत की मदद के लिए गोपाल सुब्रमण्यम को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया है।

अदालत ने बीसीसीआई से कहा कि अनुच्छेद 19 (1) (सी) (जिसमें संघ या यूनियन बनाने का हक दिया गया है) की शरण लेते समय बोर्ड को इसमें दी गई जिम्मेदारियों को भी स्वीकार करना पड़ेगा क्योंकि वह सामाजिक कार्य कर रहा है।

अदालत ने कहा, “अगर कोई क्रिकेट में अपना करियर बनाना चाहता है तो वह बीसीसीआई से अलग जा कर अपना करियर नहीं बना सकता। कई ऐसे युवा खिलाड़ी हैं जो धौनी और कोहली बनना चाहते हैं, क्योंकि इस खेल में काफी ग्लैमर है।”

अदालत ने बीसीसीआई को उसकी जिम्मेदारी का अहसास कराते हुए कहा, “कोई भी आपके कंट्रोल के बिना क्रिकेट नहीं खेल सकता। आपका खेल पर एकतरफा राज है। इसी कारण आप जहां क्रिकेट नहीं है, वहां के लोगों से बच रहे हैं, जैसे कि पूर्वोत्तर के राज्य। इसीलिए आप बिहार को भी अपने साथ नहीं जोड़ना चाहते।”

अदालत ने बीसीसीआई और उसके सहयोगी राज्यों द्वारा लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने के खिलाफ दायर की गई याचिका की सुनवाई करते हुए यह बात कही। बोर्ड समिति की एक राज्य एक वोट, अधिकारियों के कार्यकाल को दो बार तक सीमित करने और बोर्ड में सीएजी के प्रतिनिधित्व की सिफारिशों के खिलाफ है।

तमिलनाडु क्रिकेट संघ, जोकि एक राज्य एक वोट की सिफारिश के खिलाफ है, के वरिष्ठ वकील अरविन्द दातर को जवाब देते हुए अदालत ने कहा, “जो लोग क्रिकेट खेलना चाहते हैं आप उनको नकारने के लिए अपनी छवि का इस्तेमाल कर रहे हैं। आपका अधिकार उन लोगों पर भी है जो आपके अंतर्गत नहीं खेलते। अगर आपको भारतीय टीम का चयन करने का अधिकार है तो आपको प्रतिस्पर्धी अधिकार और दायित्वों का भी संतुलन बनाना होगा।”

अदालत ने कहा, “जनसंख्या को न देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) में भी एक राज्य एक वोट का नियम है। तो, यह बीसीसीआई में क्यों लागू नहीं होना चाहिए?”

दातर ने अदालत में कहा कि समिति की सिफारिशें बीसीसीआई पर बंधन हैं। इसके जवाब में प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी. एस. ठाकुर ने पूछा, “बंधन कहां है? आप ही बंधन लगा रहे हैं। गुजरात और महाराष्ट्र को तीन और चार वोट दे रहे हैं और किसी को एक भी नहीं।”

अदालत ने बीसीसीआई से कहा कि वह समाजिक दायित्व का निर्वाहन कर रहा है। अदालत ने कहा कि बोर्ड का काम निष्पक्ष, पारदर्शी, ईमानदार होना चाहिए और सभी को बराबर का मौका देना चाहिए।

अदालत ने कहा, “आईसीसी अगर एक राज्य और एक वोट के नियम का पालन कर रहा है तो बीसीसीआई को क्या दिक्कत है। भारत की जनसंख्या श्रीलंका से ज्यादा है लेकिन फिर भी दोनों के पास आईसीसी में समान अधिकार हैं।”

(आईएएनएस)