राष्ट्रपति का भारतीय दंड संहिता की व्यापक समीक्षा पर जोर

कोच्चि(केरल), 27 फरवरी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 21वीं सदी की बदलती जरूरत को पूरा करने के लिए भारतीय दंड संहिता की व्यापक समीक्षा पर जोर दिया है। दंड संहिता में पिछले 155 वर्षों में कुछ ही बदलाव हुए हैं। इसकी घोषित दंडनीय और अपराधों की शुरूआती सूची में बहुत कम ही अपराध शामिल किये गए हैं।

वे शुक्रवार को अभियोजन निदेशालय द्वारा भारतीय दंड संहिता की 155 वीं वर्षगांठ पर आयोजित विदाई समारोह का उद्घाटन कर रहे थे।

राष्ट्रपति ने कहा कि कानून के शासन को कायम रखने में लोक अभियोजकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह आपराधिक न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास को समाहित करने और उसे मजबूत करने में अहम भूमिका निभाते हैं। अभियोजकों को सुनिश्चित करना होता है कि पीड़ितों के हितों की देखभाल करते हुए वे दोषियों को उचित मुकदमे के दौर से गुजारें। इसलिए लोक अभियोजकों को कई तरह के अपराधों के असरदार जवाब के लिए भरपूर जानकारियों से लैस होने की जरूरत है।

राष्ट्रपति ने लोक अभियोजकों से अपराध नियंत्रण नीतियां बनाने में ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इनके प्रयासों से देश में निष्पक्ष, पारदर्शी और कुशल आपराधिक न्याय प्रणाली का प्रचलन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।