मुंबई, 12 जनवरी । कडक़ आवाज, रौबदार भाव-भंगिमाओं और दमदार अभिनय के बल पर खलनायकी को लगभग चार दशक तक अपने दमदार अभिनय से खास पहचान देने वाले अमरीश पुरी 12 जनवरी 2005 को इस दुनिया से अलविदा कह गए।
रंगमंच से फिल्मों के रूपहले पर्दे तक पहुंचे अमरीश पुरी ने करीब तीन दशक में लगभग 250 फिल्मों में अभिनय का जौहर दिखाया। 1987 में अपनी पिछली फिल्म मासूम की सफलता से उत्साहित शेखर कपूर बच्चों पर केन्द्रित एक और फिल्म बनाना चाहते थे जो इनविजबल मैन पर आधारित थी। इस फिल्म मे नायक के रूप मे अनिल कपूर का चयन हो चुका था जबकि कहानी की मांग को देखते हुए खलनायक के रूप मे ऐसे कलाकार की मांग थी जो फिल्मी पर्दे पर बहुत ही बुरा लगे। इस किरदार के लिये निर्देशक ने अमरीश पुरी का चुनाव किया जो फिल्म की सफलता के बाद सही साबित हुआ। इस फिल्म मे अमरीश पुरी द्वारा निभाये गये किरदार का नाम था मोगैम्बो और यही नाम इस फिल्म के बाद उनकी पहचान बन गया। अमरीश पुरी ने अपने जीवन के 40वे वसंत से अपने फिल्मी जीवन की शुरूआत की थी। वर्ष 1971 मे बतौर खलनायक उन्होंने फिल्म रेशमा और शेरा से अपने करियर की शुरुआत की लेकिन इस फिल्म से दर्शको के बीच वह अपनी पहचान नहीं बना सके लेकिन उनके उस जमाने के मशहूर बैनर बाम्बे टाकिज में कदम रखने बाद उन्हें बडें बड़े बैनर की फिल्में मिलनी शुरू हो गई।
अमरीश पुरी ने खलनायकी को ही अपने करियर का आधार बनाया। इन फिल्मों में निशात, मंथन, भूमिका, कलयुग और मंडी जैसी सुपरहिट फिल्में भी शामिल है। इस दौरान यदि अमरीश पुरी की पसंद के किरदार की बात करें तो उन्होनें सबसे पहले अपना मनपसंद और न कभी नहीं भुलाया जा सकने वाला किरदार गोविन्द निहलानी की वर्ष 1983 मे प्रदर्शित कलात्मक फिल्म अर्द्धसत्य में निभाया। इस फिल्म मे उनके सामने कला फिल्मों के अजेय योद्धा ओमपुरी थे। इसी बीच हरमेश मल्होत्रा की वर्ष 1986 मे प्रदर्शितसुपरहिट फिल्म ‘नगीना’ में उन्होंने एक सपेरे की भूमिका निभाया जो लोगो को बहुत भाई। इच्छाधारी नाग को केन्द्र में रख कर बनी इस फिल्म में श्रीदेवी और उनका टकराव देखने लायक था। अमरीश पुरी ने स्टीफन स्पीलबर्ग की मशहूर फिल्म इंडिना जोंस एंड द टेंपल आफ डूम में खलनायक के रूप में काली के भक्त का किरदार निभाया। इसके लिये उन्हें अंतराष्ट्रीय ख्याति भी प्राप्त हुई।
अमरीश पुरी थे चलते फिरते अभिनय प्रशिक्षण संस्थान
पंजाब के नौशेरां गांव में 22 जून 1932 में जन्में अमरीश पुरी ने अपने करियर की शुरूआत श्रम मंत्रालय में नौकरी से की और उसके साथ साथ सत्यदेव दुबे के नाटकों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया। बाद में वह पृथ्वी राज कपूर के पृथ्वी थियेटर में बतौर कलाकार अपनी पहचान बनाने में सफल हुए। पचास के दशक में अमरीश पुरी ने हिमाचल प्रदेश के शिमला से बीए पास करने के बाद मुंबई का रूख किया। उस समय उनके बड़े भाई मदनपुरी हिन्दी फिल्म मे बतौर खलनायक अपनी पहचान बना चुके थे। तहलका का संवाद डांग कभी रांग नहीं होता भी लोगों की जुबान पर खूब चढ़ा। उन्होंने नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह की भूमिकाओं में अपनी छाप छोड़ी। 1990 के दशक में उन्होंने दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे और विरासत जैसी फिल्मों में सकारात्मक भूमिका के जरिए सभी का दिल जीता। अमरीश पुरी ने हिंदी के अलावा कन्नड़, पंजाबी, मलयालम, तेलुगू और तमिल तथा हॉलीवुड फिल्म में भी काम किया। उन्होंने अपने पूरे कॅरियर में 400 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया।
उल्लेखनीय फिल्में
उनके जीवन की अंतिम फिल्म किसना थी, जो 2005 में उनके निधन के कुछ दिन बाद रिलीज हुई। अमरीश पुरी को अनेक फिल्मों के लिए सर्वश्रेष्ठ सहअभिनेता का खिताब मिला। प्रेम पुजारी से फिल्मों की दुनिया में प्रवेश करने वाले अमरीश पुरी के अभिनय से सजी कुछ उल्लेखनीय फिल्मों में निशांत, मंथन, गांधी, मंडी, हीरो, कुली, मेरी जंग, नगीना, लोहा, गंगा जमुना सरस्वती, राम लखन, दाता, त्रिदेव, जादूगर, घायल, फूल और कांटे, विश्वात्मा, दामिनी, करण अजुज़्न, कोयला आदि प्रमुख हैं।-एजेंसी
Follow @JansamacharNews