रॉकेट स्टेज के दोबारा इस्तेमाल की संभावना तलाशेगा इसरो

वेंकटचारी जगन्नाथन=====

चेन्नई, 23 मई | भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो किसी रॉकेट के प्रक्षेपण के बाद उसके स्टेज को वापस वातावरण में लाकर उसे दोबारा इस्तेमाल करने की संभावना पर विचार कर रहा है।

विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के निदेशक के.सिवन ने आंध्र प्रदेश के श्री हरिकोटा से टेलीफोन पर आईएएनएस से कहा, “हम इस कार्यक्रम पर भी विचार कर रहे हैं।”

वीएसएससी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का एक हिस्सा है।

फोटो: आईएएनएस

अमेरिकी अंतरिक्ष कंपनी, स्पेस एक्स द्वारा इस संबंध में प्रयास की ओर इशारा करते हुए सिवन ने कहा कि इसरो भी कुछ इसी तरह की योजना बना रहा है।

स्पेस एक्स अपने दो रॉकेटों-फॉल्कन 9 तथा फॉल्कन हेवी के साथ उपग्रह लॉन्च करने की सेवा प्रदान करता है।

एक रॉकेट स्टेज में इंजन, ईंधन व अन्य प्रणालियां आती हैं।

रॉकेट की कुल कीमत का अधिकांश हिस्सा स्टेजों के निर्माण में व्यय होता है और अगर इसका फिर से इस्तेमाल किया जाए, तो प्रक्षेपण की कीमत काफी हद तक घट सकती है।

भारत का ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) चार स्टेज का रॉकेट है। पहले स्टेज में चार बुस्टर इंजन लगे होते हैं।

अभी के दौर में एक बार जब रॉकेट का प्रक्षेपण हो जाता है, तो उसके किसी भी हिस्से को दोबारा इस्तेमाल के लिए उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता।

इसलिए, पीएसएलवी के पहले स्टेज को अगर प्राप्त कर लिया जाए, तो अन्य तीन स्टेज को जोड़कर इसका फिर से प्रक्षेपण में इस्तेमाल किया जा सकता है।

स्टेज के बाह्य आवरण में पर्याप्त गर्मी रोधी सामग्री होती है। स्टेज को किसी खास जगह पर उतरने के लिए प्रोग्राम किया जाना चाहिए, खासकर लॉन्च पैड के पास ही।

सिवन ने कहा कि स्टेज को दोबारा पाना और उसका फिर से इस्तेमाल करना रियूजेबल लॉन्च व्हीकल (आरएलवी) से पूरी तरह अलग होगा।

उन्होंने कहा कि पूरी तरह काम लायक आरएलवी के विकास में थोड़ा वक्त लगेगा।

सिवन ने कहा, “हमें अपने आरएलवी के निर्माण से पहले विभिन्न प्रौद्योगिकियों का विकास करना होगा।”

उल्लेखनीय है कि 23 मई को इसरो ने आरएलवी के सफलतापूर्वक विकास की दिशा में पहला कदम आगे बढ़ाया। उसने पंखों से युक्त किसी प्रक्षेपण यान का पहली बार प्रक्षेपण किया।

आरएलवी-टेक्नोलॉजी डेमोन्सट्रेटर एचईएक्स 01 मिशन के तहत एक रॉकेट के ऊपरी हिस्से पर लगे पंख युक्त संरचना को पृथ्वी से 70 किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष में छोड़ा गया।

पंखों वाली संरचना वापस लौटी और बंगाल की खाड़ी में गिरी, जहां इसके गिरने की पहले ही योजना बनाई गई थी।

भारत के आरएलवी का भविष्य हालांकि पारंपरिक तुलना में इसकी आर्थिक आर्थिक व्यवहार्यता, रॉकेट को ऊर्जा प्रदान करने के लिए एक शक्तिशाली इंजन/स्टेज तथा परियोजना के लिए फंडिंग जैसे कारकों पर निर्भर करता है।

इस बीच, इसरो अपने एयर ब्रीदिंग इंजन का भी जल्द ही परीक्षण करेगा।

आगे की ओर धक्का देने के लिए एयर ब्रीदिंग इंजन वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन का इस्तेमाल करता है और इसे यान में मौजूद ईंधन के साथ जलाता है।

पारंपरिक रॉकेटों में ऑक्सीजन व रासायनिक ईंधन दोनों ही मौजूद होते हैं।

सिवन ने कहा, “हम जल्द ही, संभवत: मई में अपने एयर ब्रीदिंग इंजन का परीक्षण करने जा रहे हैं।”

–आईएएनएस