नई दिल्ली, 15 अगस्त| एक नई किताब में दावा किया गया है कि श्रीलंका में लिट्टे का एक बड़ा नेता भारतीय खुफिया संस्था रॉ का एजेंट था और उसे 1989 में भर्ती किया गया था। यह नेता लिट्टे के सर्वोच्च नेता वेलुपिल्लई प्रभाकरण के बाद संगठन में नंबर दो की हैसियत तक पहुंचा था। पत्रकार नीना गोपाल का कहना है कि गोपालास्वामी महेंद्राराजा उर्फ महाट्टया रिसर्च एंड एनलिसिस विंग (रॉ) का भेदिया था। नीना ने 1991 में राजीव गांधी की हत्या से ठीक पहले उनका साक्षात्कार लिया था।
अपनी किताब द असेसिनेशन ऑफ राजीव गांधी (पेंगुइन) ‘The assassination of Rajiv Gandhi’ में नीना ने लिखा है, “इस आदमी को रॉ ने 1989 में सिखा पढ़ाकर प्रभाकरण के गुट में भेदिया के तौर पर भेजा था। यह उनकी जानकारी का बड़ा खजाना था। उसे प्रभाकरण को खत्म कर लिट्टे को अपने नियंत्रण में लेने के लिए भेजा गया था।”
इसमें कहा गया कि महाट्टया को रॉ का एजेंट होने के आरोप में लिट्टे ने बाद में मौत की सजा दे दी थी। महाट्टया के बारे में भारतीय सैन्य खुफिया इकाई और खुफिया ब्यूरो को भी पता नहीं था।
कहा जाता है कि लिट्टे को पता चल गया था कि भारतीयों को 1993 में तमिल टाइगर के एक जहाज के बारे में जानकारी देने वाला महाट्टया ही था। जहाज पकड़े जाने के कारण जाफना के लिट्टे कमांडर किट्टू को जान से हाथ धोना पड़ा था, जोकि प्रभाकरण का बचपन का दोस्त था।
किताब के मुताबिक, कहा जाता है कि लिट्टे ने महाट्टया को मारने से पहले कई महीनों तक बुरी तरह उसका टार्चर किया था। टार्चर की वजह से वह न खड़ा हो सकता था, न बैठ सकता था और न ही बोल पाता था।
किताब के अनुसार, आखिरकार 19 महीने बाद दिसंबर 1994 में उसे जान से मार दिया गया। उसके साथ के 257 लोगों को भी मौत की सजा दी गई। इनके शवों को गड्ढे में डालकर आग लगा दी गई। शवों के साथ यह सलूक लिट्टे की कार्यप्रणाली का हिस्सा था।
किताब में कहा गया है कि लिट्टे में रॉ द्वारा अपना एजेंट सफलतापूर्वक घुसाने के बावजूद भारतीय सेना, सिविलियन इंटेलीजेंस और उसके उच्चाधिकारियों में कोई तारतम्य नहीं था। श्रीलंका के उत्तरपूर्व में 1987-90 में भारतीय सेना की तैनाती के दौरान भारतीय एजेंसियां एक दूसरे से विपरीत दिशा में काम कर रहीं थीं।
श्रीलंका की सेना ने आखिरकार मई 2009 में लिट्टे को कुचलने में कामयाबी हासिल की। इस आंदोलन के शुरू होने के 30 सालों बाद आखिरी समय में हुए भीषण संघर्ष में हजारों लोग मारे गए थे।
किताब में इस ओर भी इशारा किया गया है कि प्रभाकरण के खात्मे में रॉ ने भी भूमिका निभाई रही होगी। प्रभाकरण ने राजीव गांधी की हत्या के लिए आदेश दिया था। इस वजह से भारतीय एजेंसियों को लगता था कि प्रभाकरण ने उन्हें धोखा दिया है।
21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदुर में लिट्टे की आत्मघाती महिला हमलावर के हाथों मारे जाने के समय तक नीना, राजीव गांधी के साथ थीं। उन्होंने किताब में इसका जिक्र किया है कि राजीव के सभा स्थल में न के बराबर सुरक्षा इंतजाम थे।
उन्होंने किताब में लिखा है कि जैसे लगता है कि राजीव को अपनी मौत का आभास हो गया था। उन्होंने साक्षात्कार में कहा था कि जब कभी भी दक्षिण एशिया का कोई नेता उठता है, अपने देश के लिए कुछ करता है, उसका विरोध होता है, हमला होता है, उसे मार दिया जाता है।
राजीव ने साक्षात्कार में यह बात कही और कुछ ही देर के बाद उनकी हत्या हो गई।
–आईएएनएस
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