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विश्व बैंक भारत की विकास दर के 7.6 फीसदी अनुमान पर कायम

नई दिल्ली, 21 जून | विश्व बैंक ने यहां सोमवार को एक बार फिर कहा कि भारत की विकास दर साल 2016-17 में 7.6 फीसदी रहेगी, जबकि 2017-18 में यह 7.7 फीसदी और 2018-19 में 7.8 फीसदी हो सकती है। विश्व बैंक ने साल में दो बार प्रकाशित होने वाली इंडिया डेवलपमेंट अपडेट-फाइनेंशिंग डबल डिजिट ग्रोथ रिपोर्ट में कहा, “भारत की विकास दर 2016-17 में 7.6 फीसदी रहने का अनुमान है जो साल 2017-18 में बढ़कर 7.7 फीसदी हो जाएगी।”

भारत में साल 2015-16 में 7.6 फीसदी विकास दर रही।

विश्व बैंक के वरिष्ठ अर्थशास्त्री और इस रिपोर्ट के लेखक फ्रेडेरिको गिल सैंडर का कहना है, “वित्तवर्ष 2017 में भारतीय अर्थव्यवस्था थोड़ी-बहुत सुस्ती के बावजूद 7.6 फीसदी की विकास दर पर बरकरार रहेगी।”

इस रिपोर्ट में कहा गया, “भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख चुनौती रुके पड़े क्षेत्रों में जान फूंकना है, जैसे कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था, व्यापार और निजी निवेश। इसके साथ ही शहरी परिवारों की मांग और सार्वजनिक निवेश की गति भी कम नहीं होनी चाहिए।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल ऐतिहासिक रूप से कच्चे तेल की कीमतों में कमी आने से जो फायदा हुआ था, वह अब खत्म हो रहा है। लेकिन, अच्छे मॉनसून से उसका नुकसान पूरा करने में मदद मिलेगी।

सैंडर ने कहा कि भारत वित्तीय क्षेत्र में बुनियादी रूप से सुदृढ़ है, जिससे अर्थव्यवस्था की रफ्तार वित्त वर्ष 2018 में 7.7 फीसदी हो सकती है।

विश्व बैंक के भारत में निदेशक ओन्नो रुह्ल ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर का दो अंकों में पहुंचाना कई कारकों पर निर्भर करेगा, जिसमें कृषि नीति, सार्वजनिक निवेश, सेवा क्षेत्र, उत्पादन क्षेत्र और मॉनसून की मिली जुली भूमिका होगी।

बैंकों की गैर निष्पादित परिसंपत्तियां (फंसे हुए कर्जो) और कर्ज वृद्धि में गिरावट, खासतौर से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बारे में चिंता जताते हुए इस रिपोर्ट में भारत के वित्तीय क्षेत्र में दो प्रमुख सुधारों की सिफारिश की गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है, “अधिक बाजार उन्मुख और प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए किए जा रहे संरचनात्मक परिवर्तन को रफ्तार देनी होगी। दूसरे गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (फंसे हुए बड़े कर्जो) की समस्या के निदान के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूजीकरण और फंसे हुए कर्जो की वसूली के लिए बैंकों को अधिक अधिकार देने की जरूरत है।”

सैंडर ने कहा, “भारत के वित्तीय क्षेत्र ने शानदार प्रदर्शन किया है। हालांकि संरचनात्मक सुधारों को बढ़ावा देने और फंसे हुए कर्जो की समस्या से निपटना सबसे जरूरी कार्य है।”