नई दिल्ली, 14 नवंबर | आर्थिक और सामाजिक स्तर पर पिछड़े जम्मू एवं कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र की शिक्षा प्रणाली में सुधार का बीड़ा उठाने वाले सोनम वांगचुक स्कूलों की रटी-रटाई व्यवस्था से अलग उन छात्रों के लिए एक ऐसे स्कूल की स्थापना की है जो पारंपरिक स्कूली शिक्षा में नाकामयाब रहे हैं। वांगचुक के स्कूल में लीक से हटकर चीजें सिखाई जाती हैं।
वांगचुक अब अपनी इस समृद्ध सोच को आगे बढ़ाते हुए एक ऐसे वैकल्पिक विश्वविद्यालय की स्थापना की योजना बना रहे हैं, जो शिक्षा में सुधार के उनके बीड़े को आगे बढ़ाएगा। वह पहले भारतीय हैं जिन्हें रॉलेक्स अवॉर्ड फॉर इंटरप्राइजेज 2016 से पुरस्कृत किया जाएगा। वांगचुक पुरस्कार में प्राप्त एक करोड़ की धनराशि को विश्वविद्यालय के निर्माण में दान देकर ‘फंड रेजिंग’ अभियान शुरू करने जा रहे हैं।
वांगचुक ने 1988 में लद्दाख के बर्फीले रेगिस्तान में शिक्षा की सुधार का जिम्मा उठाया और स्टूडेंट एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (सेकमॉल) की स्थापना की। वांगचुक का दावा है कि सेकमॉल अपने तरह का इकलौता स्कूल है, जहां सबकुछ अलग तरीके से किया जाता है।
वांगचुक ने आईएएनएस को बताया, “देश की शिक्षा प्रणाली सड़ चुकी है। स्कूल और कॉलेजों में सिर्फ नंबर पर फोकस किया जाता है और उन्हीं नंबरों के आधार पर छात्र को पास या फेल किया जाता है। ये क्या है? आप इनके भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। कॉलेज से निकलने के बाद इनके पास रोजगार नहीं होता तो दूसरी तरफ उद्यमों के पास योग्य कर्मचारियों की कमी रहती है।”
लद्दाख में मैदानी इलाकों की तुलना में अलग समस्याएं हैं। इन समस्याओं के बीच वह इस सड़ चुकी शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ अभियान को कैसे आगे बढ़एंगे? इस पर वह कहते हैं, “हम एक वैकिल्पक विश्वविद्यालय शुरू करने जा रहे हैं जहां छात्रों को 70 फीसदी रोजगार उन्मुख चीजें सीखाई जाएगी और इन दो साल की अवधि में हर छात्र एक अलग तरह की प्रतिभा के साथ बाहर निकलेगा।”
वह आगे कहते हैं, “मैं हाल ही में आठ देशों के उपकुलपति के साथ एक सम्मेलन में था, जहां सभी ने मेरी इस पहल का स्वागत करते हुए कहा कि विश्वभर की शिक्षा प्रणाली को इसकी दरकार है। क्योंकि स्कूलों और कॉलेजों में छात्रों का भविष्य बर्बाद हो रहा है।”
वागंचुक को लद्दाख में बर्फ स्तूप कृत्रिम ग्लेशियर परियोजना के लिए हॉलीवुड में पुरस्कृत किया जा रहा है। यह कृत्रिम ग्लेशियर 100 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है। इसे अनावश्यक पानी को इकट्टा कर बनाया गया है। हालांकि, इस तकनीक को वांगचुक 25 साल पहले अपने स्कूल में इस्तेमाल कर चुके हैं।
यह वैकल्पिक विश्वविद्यालय सभी तरह के छात्रों के लिए खुला होगा जहां छात्र रट्टू तोता बनने की जगह प्रैक्टिकल तौर पर सीखेंगे। हालांकि, इस परियोजना के लिए राज्य सरकार से कोई मदद नहीं मिल रही है।
वह कहते हैं, “हमें खुद ही पूंजी जुटानी है। हम लोग 15 नवंबर से फंड रेजिंग अभियान शुरू करने जा रहे हैं। हमने सालभर पहले अपनी कृत्रिण ग्लेशियर परियोजना को प्रतिष्ठित रोलेक्स अवॉर्ड के लिए भेजा था। इस पुरस्कार के साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपये की ईनामी धनराशि को विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए दान करूंगा और इसके साथ ही सामान्य क्राउड फंडिंग शुरू करेंगे।”
वह आगे कहते हैं, “हमारे स्कूल ने साबित किया है कि देश की शिक्षा प्रणाली में नंबरों की दौड़ में फेल हो चुके छात्र भी चमत्कार कर सकते हैं। समझदार लोगों के पास हजारों विकल्प है लेकिन नाकामयाब लोगों के पास एक भी नहीं।”
इस स्कूल ने लद्दाख में स्कूलों की पुरानी स्कूल प्रणाली को बदल कर रख दिया है और अब वह इस विश्वविद्यालय के साथ पूरे देश की शिक्षा प्रणाली एवं दुनियाभर के शिक्षा क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए कमर कस चुके हैं।
वांगचुक कहते हैं, “शिक्षा समस्याओं का समाधान निकालने के लिए ही होनी चाहिए न सिर्फ डिग्रियां बटोरने के लिए। हमने फ्यूचरिस्टिक इंस्टीटयूट के साथ साझेदारी की है जो इस विश्वविद्यालय की डिजाइनिंग में मदद कर रहा है। इसकी इमारतें मड से बनी हुई हैं और अल्ट्रा टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है।
इस विश्वविद्यालय की स्थापना में लद्दाख की हिल काउंसिल सरकार, सैकमॉल संस्थान और प्योंगगांव के मठ की समान हिस्सेदारी होगी। हमारी यात्रा इस अवॉर्ड के साथ खत्म नहीं हो रही है बल्कि शुरू हो रही है। इस तरह के समान विश्वविद्यालय को लद्दाख के अलावा देश के किसी ओर हिस्से में खोले जाने के सवाल पर वह कहते हैं, “कई लोगों ने हैदराबाद में शुरू करने को कहा है लेकिन मेरा फोकस लद्दाख में ही है लेकिन हां इसी पद्दति पर यदि कोई अन्य क्षेत्रों में इन्हें खोलना चाहता है तो हम पूरा सहयोग करेंगे।
====रीतू तोमर
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