शहरी लोगों की बीमारियों का कारण प्रकृति से दूरी है। शहरी लोगों में आमतौर पर मानसिक रोग और खराब मूड की समस्याएं देखी जाती हैं, जबकि इसके उलट ग्रामीण क्षेत्रों में कम लोग इस तरह की समस्याओं की शिकायत करते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि इसका कारण क्या है? एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि इसका कारण शहरी लोगों में प्रकृति से बढ़ती दूरी है। यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के प्रोफेसर पीटर काह्न ने बताया, “हमारे रोग की विशाल संख्या काफी हद तक प्राकृतिक वातावरण से हमारी दूरी से संबंधित है।”
पीटर ने बताया, “शहरों में बच्चे बड़े होने के दौरान कभी भी आसमान के सितारों को नहीं देख पाते हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आप अपने पूरे जीवन में तारों से जगमगाते आसमान के नीचे न चलें हों और फिर भय, कल्पना और कुछ खो जाने के बाद वापस उसे पाने की भावनाएं विकसित होती हों? ”
उन्होंने कहा, “बड़े शहरों को बनाने में हम यह नहीं जान पा रहे हैं कि कितनी तेजी से हम प्रकृति के साथ अपने संबंधों को कम कर रहे हैं, खासकर वन्य जीवन से जो हमारे अस्तित्व का स्रोत है।”
पीटर ने कहा कि बड़े शहरों में कुछ भी प्राकृतिक नहीं है। उन्होंने शहरी लोगों से प्रकृति से जुड़ने के लिए कुछ आसान उपाय अपनाने के लिए कहा। उनका कहना है कि ऐसे भवन बनने चाहिए जिसमें खिड़की के खुलने पर ताजी हवा और प्राकृतिक प्रकाश आए। भवन की छत पर अधिक से अधिक बागीचे लगाए जाने चाहिए। भवन के आस-पास स्थानीय पौधे लगाए जाने चाहिए।
उन्होंने कहा कि प्रकृति से जुड़ाव के इससे सीधा संबंध बनाने पर जोर दिया जाना चाहिए। दफ्तर की खिड़की के पार पेड़-पौधों को देखना अच्छा लग सकता है, लेकिन बाहर निकलकर घास के मैदान पर नंगे पांव बैठकर दोपहर का भोजन करने की सुखद अनुभूति कुछ और ही हो सकती है और इसका लाभ भी कुछ और ही हो सकता है।
यह शोध साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
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