हरियाणा के मेवात जिले के कोराली गांव की अमीना के छोटे से घर में तीन चार महीने पहले ही शौचालय बना है। उनका कहना है कि शौचालय बन जाने से वे अपने आपको जहां सुरक्षित महसूस करते हैं,वहीं पर उन्हें हर दिन अपने स्वास्थ्य को लेकर जोखिम नहीं उठाना पड़ता।
अमीना बताती है कि खेतों में कीडे मकोडें और सांपों का ही डर नहीं रहता बल्कि कौन आपको देख रहा है। ये पीड़ा भी कचोटती रही है, खतरा हर समय बना रहता है। इतना ही नहीं कई बार तो शौच करते-करते बीच में उठ जाना पड़ जाता था। पर अब सब ये बीते समय की बात है। आज मैं अपने घर के अंदर ही शौच जा सकती हूं और मुझे किसी प्रकार का कोई डर नहीं।
उनके पति इरफान का कहना है कि मुख्य सड़क के किनारे अक्सर लोग शाम के समय शराब पीएं रहते है और ऐसे में किसी महिला का बाहर शौच के लिए जाना मुनासिब नहीं है और कुछ महीने पहले तक महिलाएं घर के मर्द को साथ लेकर ही शौच के लिए जा सकती थी। इस गांव में लगभग हर घर में शौचालय बना दिया गया है। कुल मिलाकर 150 शौचालय बनाए गए है। कोराली गांव के उमर मोहम्मद का कहना है कि पहले इस गांव में सड़क हो या खेत चलना मुश्किल होता था, क्योंकि हर जगह लोग शौच करने बैठ जाते थे और जगह – जगह गंदगी फैल जाती थी, खासकर बरसात के मौसम में पांव रखने की जगह नहीं होती थी। पर अब स्थिति खुशग्वार हो गई है।
इसके साथ ही इस ग्राम पंचायत के अधीन छापरा गांव में भी 60 शौचालय अब तक बन चुके है और खुशी की बात यह है कि जिनके घरों में शौचालय नहीं बने है वे शौचालय बनाने की मांग करने लगे है ऐसा पहले नहीं था। शौचालय बनाने के लिए लोगों को राजी करना पड़ता था तथा उन्हें खुले में शौच करने से होने वाली बीमारियों की जानकारी देनी पड़ती थी। इसी गांव की हफीजन के 8 बच्चे हैं और वे चाहते हैं कि उनके घर में भी जल्द से जल्द शौचालय बना दिया जाए।
मेवात में ही हीरमिथला गांव में आज हर घर में शौचालय है। किसी किसी के घर में तो दो से ज्यादा शौचालय है क्योंकि बेटों की शादी होने से परिवार बढ़ जाने पर वे अब ज्यादा शौचालय की मांग करने लगे है। हालांकि मेवात में ही पानी की सुविधा उपलब्ध न होने की वजह से शौचालय बन जाने पर भी उनका इस्तेमाल नहीं हो पा रहा।
मेवात में लोगों को शौचालय बनाने के प्रति जागरूकता दिलाने और इनके निर्माण के पीछे सुलभ अंतर्राष्ट्रीय समाज सेवा संगठन (SULABH INTERNATIONAL SOCIAL SERVICE ORGNIGATION) का हाथ है, जहां इन शौचालयों को बनाने के लिए तकनीक और निर्माण का कार्य सुलभ संस्था ने उपलब्ध करवाया हैं, वहीं इन शौचालयों को बनाने के लिए विभिन्न बैंकों, कुछ विमानन कंपनियों और निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा उनके सीएसआर फंड से उपलब्ध कराया गया है।
किसी भी सरकार के लिए इतनी बड़ी मुहिम को अकेले में चलाना आसान नहीं है और सुलभ अंतर्राष्ट्रीय समाज सेवा संगठन इसमें सक्रिय भूमिका निभा रहा है। इस संगठन ने ग्रामीण इलाकों में 1,10,000 के लगभग शौचालय बनाए है और 12000 से ऊपर स्कूलों में शौचालयों के ब्लॉकों का निर्माण किया है। शहरी इलाकों में भी इस संस्था ने 8500 सार्वजनिक शौचालय बनाए है जिन्हें हररोज एक करोड़ के करीब लोग इस्तेमाल करते है।
महाराष्ट्र के पंढरपुर में सुलभ द्वारा सबसे बड़ा शौचालय परिसर बनाया गया है, जहां पर 1140 शौचालय बन चुके है और 350 वॉशरूम बनाए गए है। यहां पर कुल मिलाकर 2500 शौचालय बनाये जाने है। यहां पर प्रतिदिन 1,50,000 तीर्थयात्री शौचालयों का प्रयोग कर रहे हैं। इतना ही नहीं यहां पर दिव्यांगलोगों के लिए उनकी सहुलियत के अनुसार शौचालय बनाए गए है। महिलाओं और पुरूषों के शौचालय अलग- अलग है। इसी राज्य के शिरडी में दूसरा बडा परिसर बनाया गया है, जहां पर एक लाख के लगभग तीर्थयात्री हर रोज इनका प्रयोग करते है।
2 अक्तूबर, 2014 में स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत से ग्रामीण इलाकों में अब तक 219.72 लाख शौचालय बनाए जा चुके है और केवल 2015-16 में ही 43,94,090 शौचालय बनाए गए है।
नेशनल सेम्पल सर्वे की एक रिपोर्ट के अनुसार 2014-15 से 2015-16 की अवधि में शौचालय के निर्माण में 64 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। अब तक 76586 गांवों ने अपने को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया है।
लेकिन जैसा कि इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हमारे देश में अब भी ग्रामीण इलाकों में आधे से ज्यादा लोग खुले में शौच करते है और पिछले वर्ष मई-जून में किए गए सर्वे के अनुसार केवल 43.5 ग्रामीण घरों में शौचालय है और 42.5 ग्रामीण घरों में पानी की व्यवस्था उपलब्ध कराई गई है।
जहां तक शहरी इलाकों का सवाल है, वहां पर हालांकि एनएसएस की इसी रिपोर्ट के अनुसार 88.8 प्रतिशत घरों में शौचालय है। पर शहरी इलाकों की झुग्गी झोपड़ी बस्तियों में स्थिति दयनीय है। उदाहरण के तौर पर दिल्ली की ही एक ऐसी बस्ती में जहां जनसंख्या 12000 से ऊपर है वहीं म्युनिस्पिलटी द्वारा केवल 20 से 25 शौचालय बनाए गए है। दूसरी बात यह है कि इन बस्तियों के अनाधिकृत होने के कारण वहां पर सीवर या तो नदारद है या खुले रहने से गंदगी की वजह से वहां पर हर तरह की बीमारियों से लोग परेशान रहते है।
देश को खुले में शौच से मुक्त करने के लक्ष्य के लिए अब तीन वर्ष से भी कम समय बाकी है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार पिछले वर्षों में भी पूर्ण स्वच्छता को लेकर वार्षिक लक्ष्यों को भी पूरा नहीं किया गया था। इसलिए जाहिर है स्वच्छता की इस मुहिम को और तेज किए जाने की जरूरत है।
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