श्रीनगर, 18 अप्रैल | सड़क जाम, स्कूल बस में चढ़ने के लिए बच्चों के बीच धक्का-धुक्की, समय से पहले खुली दुकानें और काम पर जाने से पहले लोगों की जल्दबाजी.. ये सारे नजारे सोमवार को यहां दिखे। परेशानी भरे पांच दिनों के बाद श्रीनगर में स्थिति सामान्य हो गई है। कई दिनों के सरकारी प्रतिबंध और अलगाववादियों के बंद के बाद मुगल गार्डन, डल झील, गुलमर्ग एवं सोनमर्ग के रास्ते में पर्यटक फिर नजर आने लगे।
कश्मीर में शांति हमेशा से सहज ही खत्म हो जाने वाली रही है।
छेड़खानी की अफवाह, मानवाधिकारों के हनन की झूठी-सच्ची रपट, कश्मीरी आतंकी की हत्या या सड़क किनारे अर्धसैनिक बल के किसी जवान और पैदल यात्री के बीच झड़प सबकुछ सामान्य हालात को पटरी से उतारने के लिए काफी है।
जो शुरू होते दिखता है, वह एक बारगी कश्मीर घाटी में दिनों या हफ्तों या कभी-कभी महीनों तक के लिए शांति को पटरी से उतार देने लिए काफी होता है।
सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव के दौरान हमेशा निर्दोष लोगों की जानें जाती हैं।
पथराव सुरक्षा बलों के लिए खतरा बन गया है और वे अभी भी अपनी और हमला करने वालों की जिंदगी को खतरे में डाले बगैर उससे निपटने में असमर्थ हैं।
कश्मीर में लोगों की मौत रबर की गोली और छर्रो के जख्म से हुई है।
आंसू गैस के गोले को भीड़ भगाने का सुरक्षित तरीका माना जाता है, लेकिन जब भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही थी, तभी वे किशोरों और युवकों को लग गए।
जब सुरक्षा बलों को यह सुनिश्चित करना होता है कि निहत्थे प्रदर्शनकारियों से निपटते समय अभियान संचालन की मानक प्रक्रिया का पालन किया जाए, तब बहुत सारे प्रदर्शकारी यह सोचते हैं कि सैन्य शिविरों और ठिकानों पर हमला विरोध प्रदर्शन का सही तरीका है।
सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया कि सेना को न तो भीड़ को नियंत्रित करने के अभियान के लिए शारीरिक प्रशिक्षण मिला है और न ही जवानों की मानसिक स्थिति ऐसी होती है कि वे शिविरों में घुसने वालों से रबर की गोलियों या डंडे से निपटें।
अर्धसैनिक बलों और पुलिसकर्मियों की जरूरत से ज्यादा सख्ती से निपटने पर बात करनी होगी ताकि वे हथियारों से लैस आतंकी और एक नागरिक के बीच के अंतर को समझ सकें।
महबूबा मुफ्ती की सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि अपनी साख फिर से प्राप्त करें। वह भी मुसलमान बहुल घाटी में या राज्य के किसी अन्य जगह पर भी।
जनता और सरकार के बीच अविश्वास की स्थिति में ही अफवाह, उकसावा और शैतानी को बढ़ावा मिलता है।
सरकार और आम आदमी के बीच विश्वास केवल प्रशासन के स्तर पर पैदा नहीं किया जा सकता।
सुरक्षा कारणों से जम्मू-कश्मीर में मंत्रियों को जनता से अपमानित होना पड़ता है।
उत्तरी कश्मीर में प्रदर्शन के दौरान सुरक्षा बलों के हाथों पांच लोगों की जान गई है। एक सैनिक द्वारा लड़की से कथित छेड़खानी को लेकर यह प्रदर्शन शुरू हुआ था। लड़की ने उस आरोप से इनकार किया है।
उस लड़की की कहानी की हकीकत जो भी हो वे पांच लोग अब अपने परिवार के बीच कभी नहीं लौटेंगे।(आईएएनएस)
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