नई दिल्ली, 08 मार्च (जनसमा)। कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) के 60 प्रतिशत हिस्से पर लगाए गए टैक्स पर वेतनभोगी करदाताओं से कड़ी प्रतिक्रिया का सामना कर रही केंद्र सरकार ने आखिरकार अपने बजट प्रस्ताव को वापस लेने का फैसला किया है।
लोकसभा में मंगलवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि ईपीएफ के 60 प्रतिशत हिस्से पर लगाए जाने वाले टैक्स के प्रावधान को फिलहाल सरकार वापस ले रही है।
फाईल फोटोः वित्त मंत्री अरुण जेटली।
उन्होंने कहा, “तर्क यह है कि कर्मचारियों के पास निवेश विकल्पों में से चुनाव करने की आजादी होनी चाहिए। सैद्धांतिक रूप से यह आजादी होनी चाहिए, लेकिन सरकार के लिए कराधान के विकल्पों का इस्तेमाल कर नीतिगत लक्ष्यों को हासिल करना जरूरी है।”
जेटली ने कहा, “इस सुधार में नीतिगत लक्ष्य अधिक आय हासिल करना नहीं है, बल्कि पेंशन योजनाओं से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करना है।” इसके बाद उन्होंने कहा कि बजट के 138वें और 139वें अनुच्छेद में उल्लिखित प्रस्तावों को व्यापक रूप से समीक्षा के लिए वापस लिया जाता है।
उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) उपभोक्ताओं के लिए निकासी के समय दी गई 40 फीसदी छूट का प्रस्ताव कायम रहेगा।”
बजट भाषण के 138वें अनुच्छेद में कहा गया है, “सुपरएन्युएशन कोषों और ईपीएफ सहित मान्यताप्राप्त भविष्य निधि कोषों के मामले में एक अप्रैल 2016 के बाद किए गए योगदान से निर्मित कोष के 40 फीसदी हिस्से को कर मुक्त रखे जाने का वही प्रावधान लागू होगा।”
बजट में प्रस्ताव किया गया था कि 1 अप्रैल 2016 से ईपीएफ की 40 प्रतिशत राशि निकालने के बाद बची हुई 60 प्रतिशत राशि पर टैक्स लगेगा और यदि पेंशन स्कीम में उस राशि का निवेश किया जाता है तो टैक्स नहीं लगेगा।
वैसे वित्त मंत्री ने कहा है कि इस पर विस्तृत समीक्षा की बात कही है लेकिन फिलहाल ईपीएफ पर टैक्स का खतरा टल गया है।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वित्त मंत्री अरुण जेटली से इस मामले पर दोबारा विचार करने को कहा था। इस बदलाव से देश के करीब छह करोड़ वेतनभोगी प्रभावित होते। ऐसे में कयास लगाए ही जा रहे थे कि जेटली मंगलवार को संसद में यह प्रस्ताव वापस लेने की घोषणा कर सकते हैं। इस पूरे मामले पर काफी हो हल्ला मचा हुआ था।
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