नई दिल्ली, 11 मई | सरकार ने बुधवार को कहा कि वह एमबीबीएस और बीडीएस पाठ्यक्रमों के लिए संयुक्त चिकित्सा प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के पक्ष में है, लेकिन यह परीक्षा इस साल से नहीं अगले साल से आयोजित की जानी चाहिए। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने लोकसभा में कहा, “सरकार संयुक्त चिकित्सा प्रवेश परीक्षा के पक्ष में है। हालांकि यह सरकार का फैसला नहीं है, यह (सरकार को) अदालत का निर्देश है।”
नायडू लोकसभा में शून्य काल के दौरान कुछ सदस्यों द्वारा उठाए गए मुद्दे का जवाब दे रहे थे।
देशभर के अन्य सभी निजी और राज्य चिकित्सा प्रवेश परीक्षाओं के स्थान पर राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) का अयोजन 24 जुलाई को किया जाएगा। यह इस परीक्षा का दूसरा चरण है।
नायडू ने कहा कि अगर एनईईटी परीक्षा अगले साल से ली जाएगी तो विद्यार्थियों के पास परीक्षा के तैयारी के लिए पर्याप्त समय होगा।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता ने लोकसभा सदस्यों को यह आश्वासन भी दिया कि सरकार महान्यायवादी के जरिए इस मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के पास फिर जाएगी।
नायडू ने कहा, “मैं केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री के समक्ष सदस्यों की चिंताएं रखूंगा। मैं सर्वोच्च न्यायालय को भी इस बात के लिए राजी करने की कोशिश करूंगा।”
इससे पहले इस मुद्दे को उठाते हुए तृणमूल कांग्रेस की नेता काकोली घोष ने मांग की कि विद्यार्थियों की चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार को विधायी कदम उठाने चाहिए।
घोष ने कहा, “विद्यार्थियों को इतने कम समय में परीक्षा में बैठने के लिए कैसे कहा जा सकता है। सरकार को इस मामले में विधायी पहल करनी चाहिए। हम विद्यार्थियों को इसका नुकसान भुगतने नहीं दे सकते।”
शिरोमणि अकाली दल के प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने मांग की कि पंजाबी को भी क्षेत्रीय भाषाओं की उस सूची में शामिल किया जाना चाहिए, जिसमें विद्यार्थी एनईईटी की परीक्षा दे सकते हैं।
कांग्रेस नेता राजीव सातव ने कहा कि विद्यार्थियों को राहत देने के लिए सरकार को सर्वोच्च न्यायालय के पास फिर से जाना चाहिए या इस पर अध्यादेश लाना चाहिए। –आईएएनएस
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