नई दिल्ली, 1 जुलाई | सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि समलैंगिक (लेस्बियन एवं गे) और उभयलिंगी (बाईसेक्सुअल) थर्ड जेंडर नहीं हैं। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने 15 मई, 2014 के आदेश को बदलने से इनकार कर दिया जिसमें ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता दी गई है। केंद्र सरकार द्वारा 15 मई, 2014 के आदेश को बदलने के लिए सर्वोच्च न्यायालय आने पर न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी और एन. वी. रामना की पीठ ने कहा कि यह उसके 2014 के फैसले से पूरी तरह स्पष्ट है कि समलैंगिक (लेस्बियन एवं गे) और उभयलिंगी (बाईसेक्सुअल्स) थर्ड जेंडर नहीं हैं।
पीठ ने यह बात तब कही जब एडिशनल सालिसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने अदालत से कहा कि 2014 के फैसले से यह स्पष्ट नहीं है कि समलैंगिक (लेस्बियन एवं गे) और उभयलिंगी (बाईसेक्सुअल्स) ट्रांसजेंडर हैं या नहीं। सिंह ने अदालत से इस बिंदु पर स्थिति स्पष्ट करने का आग्रह किया।
स्पष्टीकरण के लिए दायर केंद्र सरकार की याचिका का निस्तारण करते हुए पीठ ने कहा, किसी स्पष्टीकरण की जरूरत नहीं है। पीठ ने सिंह से सवाल किया कि हम लोग यह याचिका क्यों नहीं हर्जाना लगाते हुए खारिज कर दें?
ट्रांसजेंडर कार्यकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने कहा कि पिछले दो साल से सरकार ने शीर्ष अदालत के आदेश को लागू नहीं किया है। उन्होंने कहा कि केंद्र को इस बारे में स्पष्ट करने की जरूरत है कि क्या समलैंगिक (लेस्बियन एवं गे) और उभयलिंगी (बाईसेक्सुअल्स) को ट्रांसजेंडर के साथ जोड़ा जा सकता है?
शीर्ष अदालत ने 15 मई, 2014 के आदेश के जरिए फैसले में ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता दी थी। साथ ही उन्हें नौकरियों, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा में पिछड़े वर्ग के रूप में आरक्षण दिया था।
अदालत ने कहा था कि ट्रांसजेंडर को संविधान के तहत वे सारे अधिकार हैं जो आम नागरिक को हैं।
–आईएएनएस
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