देश में कोरोना के भयावह प्रसार के संदर्भ में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा है कि डबल या ट्रिपल म्यूटेंट शब्द बोलचाल के हैं और इनका उपयोग किसी वैरिएंट की विशेषताओं पर जोर देने के लिए किया जाता है।
विशेषज्ञों ने कहा है कि विभिन्न मीडिया रिपोर्टों में हाल ही में उपयोग किए गए डबल या ट्रिपल म्यूटेशन, उन म्यूटेशनों की संख्या की जानकारी देने के लिए कहे गए थे जो प्रतिरक्षा से बचते हैं (इम्यून एस्केप म्यूटेशन)।
ये वेरिएंट अन्यथा 15 विभिन्न म्यूटेंटों को परिभाषित करते हैं। हालांकि, नैदानिक संबद्धता और महामारी से संबंधी डेटा यह निर्धारित करता है कि वायरस का म्यूटेशन वैरिएंट ऑफ इन्टरैस्ट (वीओआई) या वैरिएंट ऑफ कंसर्न (वीओसी) है।
विशेषज्ञों का कहना है कि वर्तमान डेटा यह नहीं बताता है कि वृद्धि केवल किसी एक वैरिएंट या किसी एक कारक के कारण है।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने ‘सार्स-सीओवी-19 के जीनोम अनुक्रमण’ पर 23 अप्रैल को किये गए सार्वजनिक वेबिनार के बाद आईसीएमआर-एनआईवी की निदेशक, डॉ. प्रिया अब्राहम ने जानकारी दी कि आरटी-पीसीआर महामारी की शुरूआत के बाद से निदान के मामले में किस प्रकार से महत्वपूर्ण है।
ब्रिटेन और दुनिया के कुछ अन्य हिस्सों में सार्स-सीओवी-2 (SARS-CoV-2) के विविध रूपों के उभरने की खबरों के मद्देनज़र, भारत सरकार ने एक राष्ट्रीय बहु-एजेंसी संकाय, भारतीय सार्स-सीओवी-2 जीनोमिक संकाय (Indian SARS-CoV-2 Genomic Consortium) (आईएनएसएसीओजी) की दिसंबर 2020 में स्थापना की थी।
इस संकाय की स्थापना सार्स-सीओवी-2 के जीनोमिक विविधताओं की नियमित आधार पर समग्र रूप से निगरानी के उद्देश्य के साथ जैव प्रौद्योगिकी विभाग, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर), भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफ एंड डब्ल्यू) की दस प्रयोगशालाओं को मिलाकर की गई है।
इस वेबिनार का उद्देश्य वायरल जीनोम, वायरल जीनोम अनुक्रमण, और वायरल जीनोम में हो रहे बदलावों का सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभाव और वायरल जीनोम में म्यूटेशन के पीछे के विज्ञान का पता लगाना था।
विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों और संगठनों के विशेषज्ञों के एक पैनल ने जीनोम अनुक्रमण के विभिन्न पहलुओं और महत्व पर प्रकाश डाला। इसके अलावा उन्होंने सार्स-सीओवी-19 के जीनोम का अनुक्रमण और सार्स-सीओवी-2 की विविधताओं की उपस्थिति का शीघ्र पता लगाने के लिए की जा रही निरंतर निगरानी और जीनोमिक विविधता का निर्धारण करने में भारतीय सार्स-सीओवी2 जीनोमिक्स संकाय द्वारा किए गए कार्यों, प्रयोगों और अध्ययनों की भी जानकारी दी।
डॉ. प्रिया अब्राहम ने उल्लेख किया कि देश में उपयोग की जा रही आरटी-पीसीआर प्रणाली उन सभी प्रकारों का पता लगाने में सक्षम है जिनको देश भर में पाया गया हैं।
कुछ गलत-नकारात्मक आरटी-पीसीआर रिपोर्ट के कारणों पर उन्होंने कहा कि व्यक्तियों की स्क्रीनिंग में होने वाली देरी से सैम्पलिंग में त्रुटि हो सकती है।
बाद में सत्र में मीडिया कर्मियों और आम जनता के सवालों की जानकारी विशेषज्ञों द्वारा दी गई।
प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान ‘वायरस म्यूटेशन’ और इससे परस्पर जुड़े मुद्दों पर और अधिक स्पष्ट रूप से जानकारी दी गई। इस बात पर भी विशेष रूप से बल दिया गया था कि वायरस के “डबल” या “ट्रिपल” म्यूटेशन जैसे कोई वैज्ञानिक शब्द नहीं है।
डबल या ट्रिपल म्यूटेंट शब्द बोलचाल के हैं और इनका उपयोग किसी वैरिएंट की विशेषताओं पर जोर देने के लिए किया जाता है। विभिन्न मीडिया रिपोर्टों में हाल ही में उपयोग किए गए डबल या ट्रिपल म्यूटेशन, उन म्यूटेशनों की संख्या की जानकारी देने के लिए कहे गए थे जो प्रतिरक्षा से बचते हैं (इम्यून एस्केप म्यूटेशन)।
ये वेरिएंट अन्यथा 15 विभिन्न म्यूटेंटों को परिभाषित करते हैं। हालांकि, नैदानिक संबद्धता और महामारी से संबंधी डेटा यह निर्धारित करता है कि वायरस का म्यूटेशन वैरिएंट ऑफ इन्टरैस्ट (वीओआई) या वैरिएंट ऑफ कंसर्न (वीओसी) है। वर्तमान डेटा यह नहीं बताता है कि वृद्धि केवल किसी एक वैरिएंट या किसी एक कारक के कारण है।
वृद्धि के कारण मुख्य रूप से हैं:
1. कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन न करना
2. म्यूटेन के प्रतिरक्षा तंत्र से बचने की क्षमता में वृद्धि और कुछ जो संक्रामकता को भी बढ़ाते हैं
3. प्रतिरक्षा में गिरावट
म्यूटेंट पर रिपोर्ट करते समय यह सलाह दी जाती है, ऐसे वेरिएंट का संदर्भ देते समय मानक डब्ल्यूएचओ यूनिफॉर्म वेरिएंट नामकरण का ही उपयोग किया जाता है (उदाहरण के लिए- बी.1.617)।
वेबिनार का समापन डीबीटी के वैज्ञानिक डॉ. ओंकार तिवारी के इस जानकारीपूर्ण सत्र में उपस्थित सभी विशेषज्ञ पैनलिस्टों को धन्यवाद देने के साथ हुआ जिन्होंने सार्स-सीओवी-19 के जीनोम अनुक्रमण और म्यूटेशन्स के पीछे के विज्ञान की सरल शब्दों में व्याख्या की।
वेबिनार में गॉटवेबिनार और यूट्यूब के माध्यम से 1800 से अधिक दर्शकों ने भागीदारी की। वेबिनार में काफी संख्या में मीडिया प्रतिभागियों की उपस्थिति भी दर्ज की गई।
डीएसआईआर के सचिव और सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ. शेखर सी. मंडे ने अपने प्रारंभिक संबोधन में वायरस के विभिन्न बदलावों और इसके विविध रूपो की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि वायरस के रूप बदलने के दौरान होने वाली निरंतर त्रुटियों के माध्यम से म्यूटेशन पैदा होता है। कुछ म्यूटेशन वायरस को बेहतर रूप से जीवित रहने और एंटीबॉडी प्रतिक्रिया से भी बचाते हैं और इसलिए वायरस को कुछ निर्धारित मदद कर सकते हैं।
उद्घाटन सत्र के बाद, एक तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता आईएनएसएसीओजी के वैज्ञानिक सलाहकार समूह के अध्यक्ष डॉ. शाहिद जमील ने की। इस सत्र में, प्रख्यात पैनेलिस्टों ने वायरस संरचनाओं से लेकर म्यूटेंट को सरल बनाने, म्यूटेंट के विभिन्न पहलुओं, तथाकथित दोहरे और तिहरे म्यूटेशन की समझ और इनकी सार्वजनिक स्वास्थ्य के संदर्भ में प्रासंगिकता जैसे कई विषयों पर चर्चा की।
एनआईबीएमजी, कल्याणी के निदेशक, डॉ. सौमित्र दास ने वायरल अनुक्रमण की आवश्यकता को रेखांकित किया और आईएनएसएसीओजी गतिविधियों की संक्षिप्त जानकारी दी। उन्होंने विभिन्न सार्स-सीओवी-2 के वैश्विक स्तर पर फैलने और स्पाइक जीन म्यूटेशन के बारे में चर्चा की।
एनसीडीसी के निदेशक डॉ. सुजीत सिंह ने अपनी प्रस्तुति में सार्स-सीओवी-2 में जीनोमिक विविधताओं को समझने के और उनके कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य पर होने वाले संभावित प्रभावों के महत्व के लिए जीनोमिक विविधताओं की निगरानी पर जोर दिया।
एसआईआर-आईजीआईबी के निदेशक डॉ. अनुराग अग्रवाल ने वायरस म्यूटेंट के चयन की प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए देश के विभिन्न हिस्सों से पहचाने गए प्रमुख वेरिएंट की जानकारी दी उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि आईएनएसएसीओजी द्वारा प्राप्त जानकारी को वैश्विक रूप से जीआईएसएआईडी जैसे वैश्विक डेटाबेस का उपयोग करके साझा किया जा रहा है।
आरसीबी के निदेशक डॉ. सुधांशु व्रती ने म्यूटेंट, वैरिएंट, वैरिएंट ऑफ इन्टरैस्ट और वैरेएंट ऑफ कन्सर्न (वीओसी) के लिए आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि एक वीओसी उच्चतर स्तर पर संक्रमण को फैला सकता है या अधिक गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है; अथवा एंटीबॉडी पर बेअसर हो सकता है।
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