रांची, 10 जनवरी। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कहा कि साहित्कारों ने समाज को जीने का नया रास्ता दिखाया। इनकी लेखनी ने आगे चलकर सेनानियों को संघर्ष के लिए प्रेरित किया। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी निखिल भारत बंग द्वारा खेलगांव स्थित हरिवंश टाना भगत स्टेडियम में आयोजित तीन दिवसीय 88वां साहित्य सम्मेलन में रविवार को बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय बंग साहित्य सम्मेलन 1922 में अस्तित्व में आया है। 1923 में बनारस अधिवेशन में रवीन्द्र नाथ टैगोर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। आज यह अधिवेशन एक सदी पूरी करने के बरीब है।
उन्होंने कहा कि मैं तीन दशकों से इस संगठन से जुडा रहा हूं। राष्ट्रपति बनने के पहले इसका अध्यक्ष था। इस संगठन को असंख्या बंगालियों का स्नेह प्राप्त है। शुरुआत में इस संस्था का नाम प्रवासी बंगाली साहित्य था, लेकिन बाद ये देवेश दास की चेष्टा से मौजूदा स्वरुप में मिला।
उन्होंने कहा कि नेपाल के महाराज ने 1907 में हर प्रसाद शास्त्री ने वैष्णव कविताओं को चर्चापद में शामिल किया था। आधुनिक दौर में बंकिमचंद्र चर्ट्जी, शरत चंद्र, रवीन्द्र नाथ ठाकुर के बंगला साहित्य ने समाज को नई दिशा दिखाई है।
उन्होंने कहा कि दीन बंधु के कृति नील दर्पण के आधार पर कई लघु कविता बनी, जिन्हें प्रकाशित करने वाले हरिश मुखर्जी पैट्रिएट के हवाले से ब्रिटिश संसद इंग्लैंड में नील कृषि पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि साहित्य ने राजनीति स्वतंत्रता संग्राम को प्रभावित किया। रवीन्द्र नाथ ने जहां 2500 गीत लिखे, वहीं नजरुल इस्लाम का भी योगदान कम नहीं है। नजरुल इस्लाम ने भी 3500 कविता लिखी। यह गीत आज भी मनुष्यों को प्रेरणा देती है। (हि.स.)
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