उज्जैन, 12 मई | मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुंभ में गुरुवार को क्षिप्रा नदी सामाजिक समरसता की गवाह बनी। यहां मैला ढोने के काम को छोड़ चुकीं दलित महिलाओं ने पंडितों के साथ डुबकी लगाई। सुलभ इंटरनेशनल की अगुवाई में राजस्थान के अलवर और टोंक क्षेत्र में मैला ढोने का काम का काम छोड़ चुकीं 200 महिलाएं गुरुवार को क्षिप्रा नदी के तट पर पहुंचीं। उन्होंने पूरे विधि-विधान से पंडितों के साथ वैदिक मंत्रोच्चरण के बीच डुबकी लगाई।
ज्ञात हो कि दलित समाज और खासकर इस वर्ग की महिलाएं, तमाम धार्मिक परंपराओं को सार्वजनिक तौर पर निभा नहीं पाती हैं। वे कुंभ में स्नान से भी वंचित रह जाती थीं। मगर इस बार इस वर्ग की महिलाओं ने सामूहिक तौर पर वैदिक श्लोकों के बीच स्नान किया।
सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. विंदेश्वर पाठक का कहना है कि यह देश के नजनिए में आ रहे बदलाव का संकेत है और गुजरे दौर की जाति प्रथा को तोड़ने वाला है।
सिर पर मैला ढोने के काम से जुड़े लोगों को इससे मुक्ति दिलाने के लिए सुलभ शौचालय योजना शुरू करने वाले डॉ. पाठक ने गुजरात के अलवर व टोंक क्षेत्र में मैला ढोने का काम छोड़कर दूसरे कार्य में लगीं इन महिलाओं के लिए यहां सामूहिक स्नान का आयोजन किया।
महिलाओं के सामूहिक स्नान के मौके पर आचार्य शास्त्री ने कहा कि हिंदू धर्म सभी के लिए है। समाज की मुख्यधारा से जुड़ रहीं इन बहनों का स्वागत है।
मैला ढोने का काम छोड़ने वाली उषा चामोर का कहना है कि यह बात सही है कि वे मैला ढोने का काम छोड़ चुकी हैं और सम्मानपूर्ण जीवन जी रही हैं। इसके बावजूद उच्च जाति के लोग उन्हें अब भी अछूत मानते हैं। इतना ही नहीं, उनसे सामाजिक संबंध भी नहीं रखते।
पंडित उमाशंकर तिवारी का कहते हैं कि यह कार्यक्रम समाज में समानता लाने में मददगार साबित होगा।
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