सिंहस्थ कुंभ में सारी दुनिया एक परिवार के रूप में : शिवराज

भोपाल, 27 अप्रैल (जनसमा)। मध्यप्रदेश के उज्जैन में जोर-शोर से चल रहे ‘सिंहस्थ कुंभ’ के सफल आयोजन पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि सिंहस्थ कुंभ में सारी दुनिया एक परिवार के रूप में दिखाई दे रही है।

फोटोः मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उज्जैन में 26 अप्रैल, 2016 को सामान्य श्रद्धालु कतार में लगकर भगवान श्री महाकालेश्वर के दर्शन किये।

बुधवार को शिवराज सिंह चौहान में अपने ब्लॉग में लिखा, ‘‘बहुत पहले मैंने श्री बाशम की पुस्तक ‘द वण्डर दैट वाज इण्डिया’ पढ़ी थी। पुस्तक भारत की अदभुत विशेषताओं पर प्रकाश डालती है। डॉ. ईश्वरी प्रसाद भी अनेकता में एकता की भारतीय संस्कृति को प्रतिष्ठापित करते हैं। आशय यह कि हमारे देश में ऐसी कई चीजें हैं जो दुनिया में कहीं नहीं है। भारतीय संस्कृति का यही विराट स्वरूप इन दिनों महाकाल की नगरी उज्जैन में सिंहस्थ महाकुंभ में देखने को मिल रहा है।”

उन्होंने लिखा कि अपना देश और इसकी संस्कृति ऐसी है जो सब विचारों का आदर करती है। कोई कहता है मैं साकार को मानता हूँ, मूर्ति पूजा करता हूँ। दूसरों ने तर्क दिया कि भगवान मूर्ति में कैसे आ सकते हैं, वो तो सृष्टि के कण-कण में विराजमान हैं। एक विचार कहता है कि साकार को नहीं मानते तो निराकार को मानो, इसमें भी कोई आपत्ति नहीं है। यह भारत की ही धरती है, जिसमें सभी विचारों का आदर है।

शिवराज ने लिखा, ‘‘यह सब चीजें मैं उज्जैन की पावन धरती पर देखकर आया हूँ। सिंहस्थ में एक से एक संत विराजमान हैं। वहाँ का दृश्य देखकर मैं अभिभूत हो गया। एक बात मैं आप सभी को बताना चाहता हूँ कि वहाँ द्वैतवादी हैं, अद्वैतवादी हैं और विशिष्टाद्वैतवादी भी हैं। इतने अलग-अलग तरह के संत हैं। मुझे लगा कि भारत में असमानता की बात कहीं नहीं है। सब साथ चल रहे-सब साथ रह रहे हैं। अलग-अलग धाराएँ सब आकर उज्जैन में इकट्ठी हो गयी हैं। वहाँ सदभाव और समरसता साक्षात है। एक वातावरण उपस्थित है, जिसमें कोई छोटा-बड़ा नहीं है। श्रेष्ठता और अहमन्यता का भाव देखे नहीं मिल रहा है। सब भूतभावन भगवान श्री महाकाल की शरण में हैं। सबके मन में एक ही विचार है कि मेरा नहीं, सबका कल्याण हो।”

उन्होंने लिखा कि यह सिंहस्थ बिरला है। अमृत की अवधारणा मेरे विचार में मानवता के कल्याण की दिशा में एकमत से आगे बढ़ना है। हम यही कोशिश वैचारिक अनुष्ठानों के माध्यम से कर रहे हैं। मुझे विश्वास है कि आज की समस्याओं के निदान का अमृत विचार इस मंथन से हम हासिल कर पायेंगे।