सियाचिन : सेनाओं की तैनाती से जल संकट का खतरा

अंजलि ओझा===नई दिल्ली, 9 अप्रैल | पांच हजार मीटर से भी अधिक ऊंचाई पर स्थित विश्व का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र सियाचिन चर्चाओं में है। यहां का तापमान -50 डिग्री सेल्सियस तक गोता लगा लेता है, जो रूह तक को जमा देने के लिए पर्याप्त है। यह भारतीय उपमहाद्वीप में ताजे पानी का सबसे बड़ा स्रोत भी है।

भारत और पाकिस्तान परमाणु संपन्न हैं और इन्होंने जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में अपनी सेनाओं की बड़ी संख्या में तैनाती की हुई है, जिनसे जल संकट का खतरा है।

भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष ऐतिहासिक रूप से जमीनी स्तर पर ही रहा है। दोनों ही देश कश्मीर घाटी पर अपना दावा करते हैं। जल संकट इस तस्वीर का ही एक हिस्सा है।

जवाहर लाल नेहरू और अयूब खान के बीच 1960 में सिंधु जल संधि समझौता हुआ था। पाकिस्तान को यह डर था कि भारत उसके यहां सूखे और अकाल की स्थिति उत्पन्न कर सकता है, वह भी विशेष रूप से युद्ध के समय। इसका कारण यह है कि सिंधु नदी पाकिस्तान की जीवनदायनी है और यह भारत से ही गुजरकर ही पाकिस्तान पहुंचती है।

नुब्रा नदी का मुख्य स्रोत सियाचिन ग्लेशियर से निकलने वाला पानी है, जो बाद में श्योक नदी में जाता है। श्योक नदी बाद में 3,000 किलोमीटर लंबी सिंधु नदी में मिल जाती है, जो पाकिस्तान से भी होकर गुजरती है।

भारत और पाकिस्तान दोनों ही इस ग्लेशियर पर अपना दावा ठोक रहे हैं। 1983 में पाकिस्तन ने ग्लेशियार में सेना की तैनाती का फैसला किया था। इस पर प्रतिक्रिया स्वरूप भारत ने तुरंत ही ‘ऑपरेशन मेघदूत’ शुरू किया था।

मौजूदा समय में भारत का ग्लेशियर के अधिकतर हिस्सों पर कब्जा है। पाकिस्तान का सिर्फ इसके सल्तोरू श्रेणी पर ही कब्जा रहा है। दोनों देशों की सेनाएं यहां तैनात हैं। यहां हालात इतने खराब हैं कि जवान गोलियों से कम मौसम की मार से अधिक जान गंवा रहे हैं।

भारत के सिर्फ इस साल ही सियाचिन में 12 जवान और एक पोर्टर शहीद हो गए हैं।

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने लोकसभा में अपने जवाब में कहा था कि सियाचिन में भारत के पिछले 33 वर्षो में 915 जवान शहीद हुए हैं। मारे गए पाकिस्तान के सैनिकों की संख्या भी समान है।

भारत और न ही पाकिस्तान ने हालांकि जल विवाद को कभी स्वीकार किया। पाकिस्तान ने ग्लेशियर पर भारतीय सेना की उपस्थिति से वहां के पारिस्थितिकी को खतरा होने का आरोप लगाया है।

वर्ष 2013 में एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) की रिपोर्ट में पाकिस्तान को विश्व का सर्वाधिक जल से त्रस्त देशों की सूची में शामिल किया था।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के विदेशी मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने दिसंबर 2013 में कहा था कि पाकिस्तान जल संकट का सामना कर रहा है और भारतीय सेनाएं पाकिस्तान में पानी के सबसे बड़े जलस्रोतों में से एक को नियमित तौर पर नष्ट कर रही है।

उन्होंने सियाचिन में तैनायत भारतीय सेनाओं को पाकिस्तान के पर्यावरण के लिए भी गंभीर खतरा बताया था।

भारत ने 1999 के कारगिल युद्ध के बाद साफ शब्दों में कह दिया था कि सियाचिन ग्लेशियर से भारतीय फौजें पीछे नहीं हटेंगी।

पर्रिकर ने इस साल सियाचिन में हिमस्खलन में 10 सैनिकों की मौत के बाद कहा था कि वह जवानों की मौत पर दुखी हैं लेकिन उन्होंने सियाचिन से सेना हटाने से साफ इंकार कर दिया था। उनका कहना था कि प्रतिद्वंद्वी सेनाओं द्वारा क्षेत्र पर कब्जे से अधिक जवानों को जान से हाथ धोना पड़ सकता है।

ग्लेशियर के सिकुड़ने और तापमान में वृद्धि के बारे में चर्चा करते हुए जलवायु विशेषज्ञ और वैज्ञानिक एक गंभीर स्थिति बयां करते हैं कि इससे अधिक हिमस्खलन होंगे, जिसमें अधिक जवानों को जान से हाथ धोना पड़ेगा।

अनुसंधान आंकड़ों के मुताबिक, अधिकतम और न्यूनतम तापमानों में वृद्धि के साथ हिमस्खलनों की आवृत्ति बढ़ी है। इन आंकड़ों में रक्षा मंत्रालय के बर्फ एवं हिमस्खलन अध्ययन प्रतिष्ठान का आंकड़ा भी शामिल हैं।

सिंधु क्षेत्र के क्लाइमेट डेटा एंड मॉडलिंग विश्लेषण पर विश्व वन्यजीव कोष की रिपोर्ट के मुताबिक, सियाचिन में बढ़ रहा तापमान से बर्फ तेजी से पिघल रही है।

दूरवर्ती संवेदी प्रौद्योगिकीयों द्वारा जुटाई गए क्षति अनुमानों से पता चलता है कि सियाचिन ग्लेशियर 1989 से 2009 तक 5.9 किलोमीटर देशांतर तक सिकुड़ गया है। बर्फ के पिघलने का स्तर 17 प्रतिशत है।

विश्व के सर्वाधिक ऊंचे युद्धक्षेत्र में 2003 से गोलियों की आवाजें भले ही सुनाई नहीं दी हों लेकिन प्रकृति अपना उग्र रूप दिखा रही है, जिससे क्षेत्र में आजीविका के लिए दीर्घकालिक खतरा बना हुआ है।