नई दिल्ली,12 जनवरी। सुप्रीम कोर्ट ने आज तीनों कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगा दी और समस्या के समाधान के लिए एक कमेटी का गठन कर दिया।
तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग के लिए चल रहे किसान आंदोलन का आज 48वाँ दिन हैं।
सुप्रीम कोर्ट की मंगलवार लगाई गई यह रोक अगले आदेश तक जसरी रहेगी।
कमेटी में चार कृषि विशेषज्ञों को शामिल किया गया है। कमेटी सुप्रीम कोर्ट को तीनों के से कानून के बारे में अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। इस कमेटी में भारतीय किसान यूनियन के भूपिंदर सिंह मान, शेतकरी संगठन के अनिल धनवंत, अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के प्रमुख प्रमोद के जोशी शामिल हैं।
अब आगे बढ़ने और किसान आंदोलन के भविष्य पर चर्चा करने से पहले यह जान लें कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी के सदस्यों की नए कानूनों के बारे में राय क्या है। ये सभी सदस्य सार्वजिनक रूप से अपनी राय पहले भी जाहिर कर चुके हैं।
सबसे पहली बात भूपिंदर सिंह मान की करते हैं। मान किसान संगठनों के नेता है और वे तीनों कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं और कानूनों को वापस लेने की मांग भी कर रहे हैं।
अनिल धनवंत महाराष्ट्र के शेतकरी कामगार संगठन के प्रमुख है और वे कानून वापसी के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने कहा था कि सरकार को किसानों से बात करके इन्हें लागू करने की जरूरत है। वे इस पक्ष में भी है कि जरूरत होने पर इसमें संशोधन भी करें।
कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी तीनों कृषि कानून के पक्ष में है और वे इसमें किसानों की भलाई देखते हैं। 1991 से 2001 तक प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य भी भी रहे हैं। उन्होंने अंग्रेजी के अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा था कि तीनो तीनों कृषि कानून किसानों के लिए फायदेमंद हैं।
अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान से संबंधित प्रमोद जोशी का कहना है कि एमएसपी से आगे भी हमें सोचना चाहिए। नई मूल्य नीति बनानी चाहिए जिसमें किसान उपभोक्ता सरकार तीनों को फायदा हो।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यह समिति सभी से बात करके समाधान का रास्ता खोजेगी। इसलिए किसानों को भी कमेटी के सामने आना चाहिए।
एक बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जब किसी कानूनों के पक्ष की बात आई तो अदालत ने कहा कि कानूनों के पक्ष में आज तक कोई याचिका नहीं आई है।
आज सुप्रीम कोर्ट में किसानों की ओर से तीनों वरिष्ठ एडवोकेट प्रशांत भूषण, दुष्यंत दवे और फुल्का का प्रस्तुत नहीं हुए। बताया जाता है कि उनको इस बात का एहसास था कि सुप्रीम कोर्ट एक कमेटी की बनाने जा रही है।
आज सुप्रीम अदालत के फैसले के बाद सरगर्मी बनी रही और किसानों की ओर से साफ कहा गया गया कि उनका आंदोलन बदस्तूर जारी रहेगा।
एक टीवी चेनल से बातचीत में किसान नेता यागेन्द्र यादव ने साफ कहा कि किसान लोग कोई ऐसा कातम नहीं करेंगे जिससे गणतंत्र दिवस का अपमान होे।
अभी तक के हालात बताते हैं कि किसान आंदोलन के बारे में कोई राजनीतिक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।
किसान नेताओं का कहना है कि वे 15 जनवरी को सरेार से बात करने जाएँगे और तीनों कानूनों को वापस लेने की माँ करेंगे।
आंदोलन कर रहे किसान संगठनों द्वारा दिल्ली पुलिस से ट्रैक्टर रैली निकालने की परमिशन मांगी गई है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले को सोमवार को सुनेगा।
किसान नेता राकेश टिकैत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि जब तक कानूनों की वापसी नहीं होगी, तब तक किसानों की भी घर वापसी नहीं होगी।
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