नई दिल्ली, 24 सितंबर| “सेंसर बोर्ड को सरकार से एक हुकुमनामा जारी होना चाहिए कि आप सिर्फ प्रमाणपत्र दें, फिल्मों के दृश्यों में कांट-छांट आपका काम नहीं है। जब तक सेंसर बोर्ड का पुरजोर विरोध नहीं होगा तब तक इसके कामकाज में बदलाव आने वाला नहीं है।”-हैरी सचदेवा
फिल्म ’31 अक्टूबर’ अपने विवादास्पद मुद्दे से सुर्खियां बटोर रही है। इंदिरा गांधी की हत्या से जुड़े विषय पर बनी यह फिल्म 1984 के उस दर्दनाक घटना से जुड़ी यादें एक बार फिर ताजा कर रही हैं। मामला धर्म से जुड़ा है, यकीनन विवाद तो होगा ही।
फिल्म के निर्देशक हैरी सचदेवा ने आईएएनएस को बताया, “हर घटना को धर्म से जोड़ना सही नहीं है। फिल्म की शूटिंग के दौरान हमें सिख समुदाय का पूरा सपोर्ट मिला। हर कोई यह जानना चाहता है कि 1984 दंगों के 33 साल बाद अब तक पीड़ितों को इंसाफ क्यों नहीं मिला। इस दौरान कई सरकारें आईं-गईं लेकिन कुछ कारगर नहीं हुआ।”
फोटो:आईएएनएस
सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्में हमेशा ही लोगों को लुभाती हैं। 1984 के दौर को पर्दे पर दिखाना उनके लिए कितना मुश्किल रहा? जवाब में हैरी कहते हैं, “1984 केदौरान दिल्ली बिल्कुल अलग थी। रहन-सहन, पहनावा, भाषा सब कुछ अलग था। अब शहरीकरण हो गया है, लेकिन हमने उस माहौल को फिल्म में जीवंत रखने की कोशिश की है।”
हालांकि, हैरी सेंसर बोर्ड के कामकाज से काफी खफा भी हैं। वह कहते हैं, “सेंसर बोर्ड को सरकार से एक हुकुमनामा जारी होना चाहिए कि आप सिर्फ प्रमाणपत्र दें, फिल्मों के दृश्यों में कांट-छांट आपका काम नहीं है। जब तक सेंसर बोर्ड का पुरजोर विरोध नहीं होगा तब तक इसके कामकाज में बदलाव आने वाला नहीं है।”
हैरी निर्देशकों को फिल्म बनाने में स्वतंत्रता दिए जाने के हिमायती हैं। वह कहते हैं, “हम मेहनत से फिल्म बनाते हैं और सेंसर बोर्ड बिना सोचे-समझे उस पर कैंची चला देता है। यह नहीं होना चाहिए। निर्देशकों को आजादी दी जानी चाहिए।”
हैरी कहते हैं कि फिल्म अपने विषय की वजह से चर्चा में बनी हुई है और उन्होंने इसकी कहानी के साथ कोई समझौता नहीं किया है। बकौल, हैरी 1984 की घटना से बेखबर नई पीढ़ी इस फिल्म से काफी कुछ सीख पाएगी।- रीतू तोमर
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