शोभना जैन===
नई दिल्ली, 25 जून । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और जंतर? और वह भी लोकतंत्र के मंदिर यानी संसद के संग्रहालय में? जी हाँ! महात्मा गांधी ने अपने साथियों को दिया था एक बेशकीमती अनूठा जंतर। यह था ‘स्वराज का एक जंतर’।
इस जंतर में बापू ने उनसे कहा, “मैं तुम्हे एक जंतर देता हूं। जब भी तुम्हे संदेह हो या तुम्हारा अहम तुम पर हावी होने लगे तो यह कसौटी अपनाओ, जो सबसे गरीब और कमजोर आदमी तुमने देखा हो, उसकी शक्ल याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के लिए कितना उपयोगी होगा, क्या उससे उसे कुछ लाभ पहुंचेगा? क्या उससे वह अपने ही जीवन और भाग्य पर काबू रख सकेगा? यानी क्या उससे उन करोड़ों लोगों को स्वराज मिल सकेगा, जिनके पेट भूखे हैं और आत्मा अतृप्त.. तब तुम देखोगे कि तुम्हारा संदेह मिट रहा है और अहम समाप्त होता जा रहा है।”
इसी नाम की पट्टिका के साथ इस जंतर को राजधानी स्थित संसद संग्रहालय मे देखा जा सकता है। संग्रहालय मे बापू की अस्थियों का एक अस्थि कलश रखा गया है, जिसके साथ ही रखी एक पट्टिका पर गांधी जी का एक उद्धरण ‘गांधी जी के जंतर’ के शीर्षक से लिखा गया है।
बापू के इस अस्थि कलश के दर्शन को संग्रहालय देखने आए लोग इस जंतर सहित यहा के दौरे को बतौर भावयात्रा देखते हैं। गुजरात से संग्रहालय देखने आए एक परिवार का एक बेहद मासूम सा सवाल है ‘स्वराज का यह जंतर आखिर हमारे नेता क्यों नहीं सीखते?’
पास खड़ा किसी राजनैतिक दल का कार्यकर्ता सा एक युवक कहता है, “वाकई स्वराज का सही अर्थ तो पंक्ति के सबसे आखिरी व्यक्ति की आंख के आंसू पोंछने का ही है।”
संसद को जनता के नजदीक लाने के ध्येय से बनाया गया और संसद भवन परिसर मे स्थित यह हाईटेक संग्रहालय भारत की लोकतांत्रिक विरासत, उसके आज और कल का सजीव चित्रण करता है।
टेक्नॉलोजी के जरिये हमारे गौरवशाली इतिहास की पूरी कथा का वाचन होता है, आठ वर्ष पूर्व 14 अगस्त 2008 से खुला यह संग्रहालय आम और खास सभी में खासा लोकप्रिय है। इसकी हाईटेक पद्धति के जरिये दर्शकों को लगता है कि वे भी इतिहास के उन पलों में शामिल हैं, उन्हें जी रहे हैं, मानो संविधान सभा की बैठक उनके सामने हो रही है।
दांडी मार्च के दृश्य को देखकर लगता है, जैसे लाठी टेके चल रहे बापू के पीछे पीछे हम भी चल रहे हैं।
संग्रहालय की हाईटेक ध्वनि प्रणाली के जरिये 14-15 अगस्त की मध्य रात्रि पंडित नेहरू के ‘नियति से निर्धारित मिलन’ के ऐतिहासिक भाषण मे उनकी आवाज सुन कर लगता है, मानो वे सामने बैठकर पंडित नेहरू को सुन रहे हैं। इन सब के साथ डॉ. बी.आर. अंबेडकर की अध्यक्षता मे संविधान बनाने के लिए विचार-विमर्श मे जुटी सभा के सजीव दृश्य।
संसद के केंद्रीय कक्ष में बैठे डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन। इसी के साथ दर्शक जान सकते हैं कि हमारा लोकतंत्र का सर्वोच्च विधानमंडल कैसे काम करता है, कैसे होती है राज्यसभा, लोकसभा में महत्वपूर्ण विधायी कार्य तथा अन्य अहम मसलों पर मतदान की मतदान प्रणाली।
पहले आम चुनाव यानी आजाद भारत में पहले आम चुनाव में मतदान करते आजाद हिंदुस्तानी, ऐसे कितने ही दृश्य सजीव रूप से यहां दिखाई देते हैं।
संग्रहालय में स्वंत्रता संग्राम, ब्रिटिश शासन, अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण, संविधान सभा, संसद के अंदर होने वाले विधायी कामकाज जैसे कितने ही दृश्यों तथा ऐसे अंशों को दृश्य तथा ध्वनि प्रणाली के जरिये दिखाया गया है, समझाया गया है।
इसमें अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा भारत की संसद को भेंट, अमेरिकी संविधान संबंधी पट्टिका की प्रति, विभिन्न देशों के शीर्ष नेताओं द्वारा भारत के विभिन्न लोकसभा अध्यक्षों को भेंट स्मृतिचिह्न् और विभिन्न देशों के ध्वज शामिल हैं, सब इस संग्रहालय में कुछ न कुछ कहानी कहते हैं।
संग्रहालय के एक प्रवक्ता के अनुसार, “जल्द ही इसमें कुछ और खंडों को भी शामिल किया जाएगा, जिसमें महिला सशक्तीकरण के बारे में मल्टी मीडिया प्रदर्शिनी, समाज के पिछड़े वर्गो के राष्ट्र निर्माण मे योगदान, स्वतंत्रता सेनानी, शहीदों, राष्ट्रीय नेताओं के बारे में जानकारी के खंड शामिल हैं। अनेक देशों के शीर्ष नेता, संसदीय प्रतिनिधिमंडल भारत के इस गौरवशाली संसदीय प्रतीक को देखने आते हैं।”
मशहूर गीतकार गुलजार, गजल गायक जगजीत, चित्रा सिंह भी यहां आकर भारत की इस गौरवशाली विरासत के साक्षी बन चुके हैं। बच्चों में खास तौर पर यह हाईटेक संग्रहालय बहुत लोकप्रिय है, जहां वह माउस पर क्लिक की आधुनिक तकनीक के जरिये अपनी विरासत को देखते हैं, उन पलों को जीते हैं, अपने इतिहास को जानते हैं।
संग्रहालय देखने आई ऐसी ही एक स्कूली छात्रा के अनुसार, “गांधी जी के बारे में इतना सुना और पढ़ा है, यहां आकर लगा, गांधी जी के पीछे-पीछे मैं भी दांडी मार्च में चल रही हूं, पंडित नेहरू का आजादी वाला भाषण सुनकर लगा, देश आजाद हो रहा है, सब कुछ मेरे सामने ही घट रह है। मेरा देश मेरे सामने आजाद हो रहा है, सोचकर ही मन गर्व से भर उठा!”
उसकी बातें सुनकर कुछ इत्मीनान सा हुआ कि अपनी विरासत को सम्मान देने वाले इन बच्चों से कल, आज से भी ज्यादा रोशन होगा। संग्रहालय से बाहर निकलने पर देखा, संसद भवन के ऊपर राष्ट्रीय ध्वज गौरव से फहरा रहा है और सूरज और तेज रोशनी बिखेर रहा है..। —आईएएनएस
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