शिमला, 23 फरवरी। हिमाचल प्रदेश सरकार किसानों एवं बागवानों के हितों की रक्षा के प्रति संवेदनशील है और राज्य में अनेक योजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं। प्रदेश में पांच विभिन्न फलों को फल-फसल बीमा योजना के अन्तर्गत लाया गया है जिनमें सेब, आम, किन्नू, पलम एंव आडू शामिल हैं। पिछले वित्त वर्ष के दौरान प्रदेश में इस बीमा योजना के अन्तर्गत पांचों किस्म के 61,69,865 बीमित पौधों के लिये 34.50 करोड़ रुपये की राशि के दावे प्रदान करके 92,000 किसानों व बागवानों को लाभान्वित किया गया। इसके लिये बीमा की प्रीमियम राशि का 9.22 करोड़ रुपये राज्य सरकार ने और इतनी ही राशि केन्द्र सरकार ने वहन की है।
हिमाचल प्रदेश बागवानी की मंत्री विद्या स्टोक्स ने यह जानकारी आज यहां केन्द्र एवं राज्य सरकार के सहयोग से भारतीय कृषि बीमा कम्पनी द्वारा संचालित ‘मौसम आधारित बीमा योजना’ वाहन को रवाना करने के उपरान्त दी। उन्होंने बीमा योजना वाहन को झण्डी दिखाकर रवाना किया। उन्होेंने कहा कि विगत वर्ष फल बीमा योजना के प्रीमियम की राशि 11.30 प्रतिशत थी, जिसे अब राज्य सरकार ने इसे कम करके 8.9 प्रतिशत किया है।
स्टोक्स ने कहा कि बागवानों को समुचित राहत पहुंचाने के उद्देश्य से इस योजना के अन्तर्गत छः विभिन्न कम्पनियों को प्राधिकृत किया गया है ताकि बागवान अपनी सुविधानुसार इनमें से किसी भी कम्पनी के माध्यम से अपने बागानों का बीमा करवा सके। उन्होंने कहा कि वर्ष 2015-16 की रवी फसल के दौरान प्रदेश के कुल 78 विकास खण्डों में से 74 को कवर किया जा चुका है।
उन्होंने कहा कि सेब व आम के बीमा की अवधि 31 जनवरी, 2016 थी और अन्य तीन फलों किन्नू, पलम व आडू के लिये बीमा अवधि 15 मार्च, 2016 तक है जबकि ओलावृष्टि के लिये बीमा आगामी 10 अप्रैल तक करवाया जा सकता है और इसके लाभ की अवधि 30 जून, 2016 तक रहेगी। उन्होंने कहा कि शिमला, कुल्लू और मण्डी जिलों में 17 विकास खण्ड जो ओलावृष्टि के दृष्टि से संवेदनशील हैं, को कवर किया गया है।
बागवानी मंत्री ने कहा कि मोबाईल बीमा वाहन प्रदेश के विभिन्न स्थानों में जहां बागवानों एवं किसानों को फल-फसल बीमा की जानकारी देगी वहीं, मौके पर फलों का बीमा करवाने में मदद भी करेगी। उन्होंने प्रदेश के किसानों एवं बागवानों को फल-फसल बीमा योजना को अपनाकर इसका लाभ उठाने की अपील की है। उन्होंने विभागीय अधिकारियों को निर्देश दिये कि इस योजना का अधिक से अधिक प्रचार व प्रसार किया जाना चाहिए, साथ ही ग्रामीण स्तर पर शिविरों का आयोजन किया जाए ताकि बागवानों को इसका लाभ मिल सके।
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