शिमला, 4 मई | हिमाचल प्रदेश में बीते दो दिनों में हुई बारिश ने 5,000 हेक्टेयर में फैले जंगल की आग से वनस्पति व जीवों को बचाने में बड़ी मदद की है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक एस.पी. वासुदेव ने आईएएनएस को बताया, “राज्य के अलग-अलग इलाकों में रुक-रुक बारिश होने के सिलसिले को 24 घंटों से ज्यादा हो गए हैं, जिसने जंगल की आग बुझाने में मदद की है।
पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में भी जंगल गंभीर आग की चपेट में हैं। हिमाचल में भी जंगलों में आग लगी हुई है, लेकिन इस आग से किसी की जान नहीं गई है।
उन्होंने कहा कि जंगलों में आग लगने का मुख्य कारण लंबे समय तक मौसम का शुष्क रहना और तापमान में असामान्य वृद्धि है।
वासुदेव ने कहा, “निचली और बीच की पहाड़ियों में अब पर्याप्त बारिश हो गई है। इन्हीं जगहों पर जंगलों में आग लगने की अधिकांश सूचनाए मिली थीं। बारिश से अब जमीन में पर्याप्त नमी आ गई है, जिससे भविष्य में आग की ऐसी घटनाओं को रोका जा सकेगा।
उन्होंने कहा कि आग 5,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में लगी है, जिसने विशेषकर चीड़ के जंगलों को काफी प्रभावित किया है।
यहां मौसम विभाग के निदेशक मनमोहन सिंह ने कहा, “राज्य में मंगलवार से अब तक सामान्य बारिश के बाद अधिकतम तापमान में पांच से छह डिग्री की गिरावट आई है।”
उन्होंने कहा कि गुरुवार तक राज्य की मध्यम व निचली पहाड़ियों में बारिश होने की संभावना है ।
साल 2015-16 में आग लगने की 671 घटनाओं ने 5733 हेक्टेयर में फैले जंगलों को तबाह कर दिया था।
इस लिहाज से सबसे खराब साल 2012-13 था। उस वर्ष आग लगने की 1,798 घटनाएं सामने आई थीं और उनसे 20,763 हेक्टेयर में फैली वन संपदा नष्ट हो गई थी ।
वन विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार, राज्य में 22 प्रतिशत या 8,267 वर्ग किमीमीटर वनक्षेत्र को आग से खतरा है।
आग लगने का सबसे अधिक खतरा देवदार के वृक्षों में होता है। गर्मियों के दौरान देवदार की पत्तियां गिरती हैं, जो इनमें मौजूद तारपीन के तेल की वजह से अधिक ज्वलनशील होती हैं।
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