फ़िल्म कैटडॉग, सहोदर संबंध के माध्यम से किशोर अवस्था के संघर्षों की खोज करती फि़ल्म है, जो शनिवार, 23 जनवरी, 2021 को गोवा में 51वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह (IFFI) में दिखाई गई ।
फ़िल्म कैटडॉग की निदेशक अश्मिता गुहा नियोगी की यह फ़िल्म किशोरावस्था की मनःस्थिति और उस काल के संघर्षों की कहानी है।
कैटडॉग की निदेशक अश्मिता ने शनिवार को गोवा में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा किशोरावस्था की अवधि एक ऐसी दुनिया होती है जिसे आप जानते हैं और एक ऐसी दुनिया होती है जिसे आप नहीं जानते। यह हमारे जीवन की वह अवधि होती है जब ज्ञात और अज्ञात टकराते हैं।
एक भाई और एक बहन अपनी शिक्षिका मां, जिसके पास उनके लिए कोई समय नहीं है, की नजरों से दूर छिपकर अपनी ही बनाई एक काल्पनिक दुनिया में रहते हैं।
दोनों भाई बहन एक दूसरे का साथ बनाए रखते हैं जब वे किशोरावस्था-पूर्व उतार चढ़ावों तथा घर पर बदलती स्थितियों से जूझते हैं।
कैटडॉग फ़िल्म यह प्रदर्शित करती है कि किस तरह ये सहोदर भाई-बहन अपने आस-पास की स्थितियों तथा उनके बीच हो रहे बदलावों के दौरान प्रयास करते हैं और उनका अर्थ निकालते हैं।
अंततोगत्वा जब उनकी मां को उनकी दुनिया की एक झलक मिलती है तो उनकी दुनिया ढहने के कगार पर आ जाती है। वे दोनों या तो समर्पण कर सकते हैं या प्रतिरोध कर सकते हैं।
यह पूछे जाने पर कि किस चीज ने उन्हें यह फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया, गुहा नियोगी ने कहा, ‘उस क्षण मैं ये सोच रही थी कि समाज के नियमों के साथ बड़े होने का क्या अर्थ हो सकता है।
किसी समाज और परिवार में सभी भूमिकाएं निर्धारित होती हैं। मैं सोच रही थी कि क्या हो अगर मैं एक ऐसे स्थान का सृजन करूं जहां इनमें से किसी परिभाषा या नियम का वजूद न हो?
आप लोगों की पहचान उनकी यौनिक पहचान के माध्यम से करते हैं। एक भाई और एक बहन का संबंध मेरे लिए समाज द्वारा थोपे गए नियमों को तोड़ने के इस विचार पर काम करने का एक सटीक माध्यम बन गया।
गुहा नियोगी ने यह भी कहा कि ‘मेरा यह पूरा विश्वास है कि हम में से बहुत से लोगों ने अपने जीवन में इस तरह की चीजों का अनुभव किया है या करते हैं। लेकिन यह अपने साथ लेकर चलते रहने वाले सबसे कठिन अनुभवों में से एक है। यह ऐसी चीज है जिसे जो अक्सर दबा दी जाती है।
यह पूछे जाने पर कि क्या बाल कलाकारों की मासूमियत को खत्म कर दिया गया है, गुहा नियोगी ने जवाब दिया ‘यह एक सचेत कार्य था।‘उन्होंने टिप्पणी की, ‘ऐसी बात करने से क्या शरमाना, जो निश्चित रूप से होता है।‘
फिल्म का नाम एक कार्टून फिल्म से प्रेरित है जहां शरीर के एक छोर पर एक बिल्ली का चेहरा है तथा दूसरे छोर पर कुत्ते से मिलता जुलता चेहरा है।
उन्होंने कहा ‘इस फिल्म में मैने यह दिखाने की कोशिश की कि दो अलग अलग अस्तित्व एक दूसरे से जुड़ जाते हैं।
भारतीय पैनोरमा गैर फीचर फिल्म का निर्माण भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (FTII) द्वारा किया गया है। यह निदेशक की डिप्लोमा फिल्म है जिन्होंने FTII से स्नातक किया है।
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