रायपुर, 06 मार्च| ‘बालिका वधू’ शब्द सुनते ही यों तो राजस्थान और वहां की पृष्ठभूमि पर बना टीवी धारावाहिक याद आ जाता है, लेकिन बाल विवाह पर रोक लगाने के मामले में छत्तीसगढ़ भी काफी पिछड़ा हुआ है।
वर्ष 2011 में हुई जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में 2,3,527 बालिका वधुएं हैं। इनमें से 14 वर्ष से कम उम्र में शादी के बंधन में बंधी नाबालिग लड़कियों की संख्या 22,728 है, जबकि लड़कों की संख्या 14,901 है।
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छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक बाल विवाह करीब 27-28 प्रतिशत कवर्धा जिले में होती है। पिछले दिनों यहां हुए राष्ट्रीय स्तर के एक गोलमेज सम्मलेन में यह बात सामने आई कि छत्तीसगढ़ में बालिका वधुओं की संख्या दो लाख के करीब पहुंच चुकी है और नाबालिगों की शादी के मामले में यह राज्य देश के 10 प्रमुख राज्यों में स्थान बना चुका है।
छत्तीसगढ़ बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष शताब्दी सुबोध पांडेय का कहना है कि दो लाख का आंकड़ा तब है, जब आयोग ने वर्ष 2003 में इस कुप्रथा को रोकने के लिए एक टीम बनाई थी, जिसकी मदद से हजारों की संख्या में होने वाले बाल विवाहों को रोका गया।
उन्होंने यह भी कहा कि छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा बाल विवाह (28 प्रतिशत) कवर्धा जिले में होती है। इसको रोकने के लिए सरकार, स्वंयसेवी संस्थाओं, पुलिस और समाज को मिलकर काम करना होगा। बड़े पैमाने पर जागरूकता फैलानी होगी।
ऑक्सफैम इंडिया के रिजनल मैनेजर आंनद शुक्ला और एसआरसी के निदेशक तुहिन देव का कहना है, “यही हाल रहा तो हमारा राज्य इस कुप्रथा के मामले में नंबर वन बन जाएगा, हमें इस पर रोक लगाने के लिए तमाम पूर्वाग्रहों को दूर हटाते हुए सार्थक प्रयास करने होंगे। इसके लिए कठोर कानूनी प्रावधानों की भी जरूरत है।”
ऑक्सफैम इंडिया के जेंडर जस्टिस ऑफिसर अनु वर्मा का कहना है कि बाल विवाह होने के पीछे सामाजिक असुरक्षा, दहेज, धार्मिक मतांधता और अंधविश्वास मूल में होता है। बिना इसको दूर किए, इस कुप्रथा पर रोक लगाना संभव नहीं है।
तेजी से आगे बढ़ते हुए एक राज्य में इक्कीसवीं सदी में भी दो लाख से ज्यादा बालिका वधुओं का होना समाजिक ताने-बाने पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। –आईएएनएस
===एकान्त चौहान
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