24 वर्षो में 27 पत्रकारों ने भ्रष्टाचार का खुलासा करने पर गंवाई जान

नई दिल्ली, 2 सितम्बर | अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रकार संस्था ‘कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट’ (सीपीजे) के अनुसार, 1992 से अब तक भारत में कम से कम 27 पत्रकारों की भ्रष्टाचार के मामलों का खुलासा करने पर बदले की भावना के तहत हत्या कर दी गई। सीपीजे की हाल ही में ‘डेंजरस पर्सुइट : इन इंडिया, जर्नलिस्ट हू कवर करप्शन मे पे विद देयर लाइव्स’ शीर्षक से प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश में जगेंद्र सिंह, छत्तीसगढ़ में उमेश राजपूत और मध्य प्रदेश में अक्षय सिंह की कहानियां शामिल हैं।

सीपीजे की एशिया प्रोग्राम के वरिष्ठ अनुसंधान सहायक सुमित गल्होत्रा ने अपनी इस रिपोर्ट में लिखा है, “भारत में पत्रकारिता के समक्ष चुनौतियों को जगेंद्र सिंह, उमेश राजपूत और अक्षय सिंह के मामलों के जरिए पेश किया गया है। तीनों पत्रकारों द्वारा की गई आखिरी खबरों में भ्रष्टाचार मूल मुद्दा था और तीनों ही मामले में किसी को दोषी साबित नहीं किया जा सका।”

एक स्थानीय मंत्री के खिलाफ भूमि कब्जाने और दुष्कर्म के आरोपों का खुलासा करने वाले स्वतंत्र पत्रकार जगेंद्र की कथित तौर पर जून, 2015 में पुलिस ने जलाकर हत्या कर दी।

वहीं जनवरी, 2011 में गोली मारकर हत्या किए जाने से पहले उमेश राजपूत चिकित्सकीय लापरवाही के एक मामले और एक राजनेता के बेटे की अवैध जुएबाजी में संलिप्तता के दावों को कवर कर रहे थे।

खोजी पत्रकार अक्षय सिंह की मध्य प्रदेश के सबसे बड़े एक अरब डॉलर के व्यापमं घोटाले को कवर करने के दौरान जुलाई, 2015 में रहस्यमय तरीके से मौत हुई।

सीपीजे की रिपोर्ट के अनुसार, असम, उत्तर प्रदेश और जम्मू एवं कश्मीर अपने अस्थिर सांस्थानिक ढांचे और जटिल सामाजिक संरचनाओं के कारण पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक राज्य हैं। आंकड़ों के आधार पर छत्तीसगढ़ शीर्ष-3 में शामिल नहीं है।

इंडियास्पेंड ने अप्रैल, 2016 में वैश्विक संस्था ‘रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर्स’ के हवाले से कहा है, “भारत पत्रकारों की जान के जोखिम के मामले में एशिया का सबसे खतरनाक देश है, जबकि पाकिस्तान दूसरे और अफगानिस्तान तीसरे नंबर पर है।”

सीपीजे की इस रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि बड़े शहरों की अपेक्षा छोटे शहरों के पत्रकारों को कहीं अधिक खतरे झेलने पड़ते हैं और भारत में दोषियों को सजा न दिए जाने की संस्कृति ने पत्रकारिता को खतरों से भरा पेशा बना दिया है।

दिल्ली पत्रकार संघ की महासचिव सुजाता मधोक ने सीपीजे से कहा, “पत्रकारों पर जब हमले होते हैं तो शायद ही उनका संस्थान उनकी मदद को आगे आता है। बड़े शहरों और ग्रामीण एवं सुदूरवर्ती इलाकों में पत्रकारिता करने वालों के बीच खाई काफी चौड़ी है।”

पीपुल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया के सह-संस्थापक पी. साईनाथ ने सीपीजे की इस रिपोर्ट में कहा है, “पत्रकार जिस विषय पर खबर कर रहे होते हैं और उसके लिए वे जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे होते हैं, खासकर शक्तिशाली लोगों के खिलाफ खबर करते हुए, उनके खिलाफ जोखिम को बढ़ा देता है।”

साईनाथ कहते हैं, “ग्रामीण एवं छोटे कस्बों के पत्रकारों को अक्सर कई-कई विषयों को कवर करना होता है, वहीं सीपीजे की रिपोर्ट में मुख्यत: भ्रष्टाचार, अपराध एवं राजनीति से संबंधित खबरें करने वाले पत्रकारों को शामिल किया गया है। यह तीनों ही विषय अक्सर आपस में संबद्ध रहते हैं और पिछले तीन दशकों में इस स्थिति में खास परिवर्तन नहीं आया है। वहीं मुख्यधारा के समाचार समूहों द्वारा ग्रामीण भारत से जुड़े विषयों को गहराई से न लिए जाने के कारण इस स्थिति में और गिरावट आई है।”

सीपीजे ने केंद्र सरकार, अक्षय सिंह और उमेश राजपूत की हत्या के मामलों की जांच कर रहे केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और उत्तर प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ की राज्य सरकारों एवं भारतीय मीडिया के लिए अपनी इस रिपोर्ट में कई सुझाव भी दिए हैं।

(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित पत्रकारित मंच, इंडिया स्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत। यह इंडियास्पेंड का निजी विचार है।)

–आईएएनएस