बांदा, 11 फरवरी | उत्तर प्रदेश के कैराना विधानसभा क्षेत्र में हिंदू मतदाताओं के कथित पलायन का मुद्दा इस चुनाव में जोर-शोर से उठाया जा रहा है, लेकिन बुंदेलखंड में कुपोषण, भुखमरी और आर्थिक तंगी की वजह से 32 लाख से ज्यादा किसानों व मजदूरों का पलायन पर किसी दल की नजर नहीं है। हो भी कैसे, नेताओं को इस पलायन और उस पलायन में फर्क करना जो आता है। उन्हें इस पलायन का मुद्दा ‘वोट दिलाऊ’ नहीं लगता, आखिर क्यों?
एक दशक के अंतराल में बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी और ललितपुर जिलों के 32 लाख से ज्यादा इंसान जीने के लिए दर-दर भटक रहे हैं, मगर इस चुनाव में इसे मुद्दा नहीं बनाया जा रहा है। इसके अलावा इस मसले पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की आंतरिक समिति की रिपोर्ट आज भी प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में धूल फांक रही है।
उत्तर प्रदेश की कैराना विधानसभा सीट के हिंदू मतदाताओं के कथित पलायन का मुद्दा न्यायालय तक पहुंच गया है और न्यायालय ने भी वहां के पलायित मतदाताओं को सुरक्षित मतदान कराने का आदेश दिया है, लेकिन अफसोस की बात यह है कि एक दशक के अंतराल में कुपोषण, भुखमरी और आर्थिक तंगी से आजिज आकर बुंदेलखंड के बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी और ललितपुर के 32 लाख, 75 हजार, 597 किसान-मजदूर अपना घर-बार छोड़कर पलायन कर गए हैं, इन्हें वापस बुलाने की पहल न तो राज्य सरकार ने की है और न ही केंद्र सरकार ने संतुलित विकास की ओर कोई कदम बढ़ाया है।
डॉ. मनमोहन सिंह की अगुआई वाले (संप्रग-दो) के केंद्रीय मंत्रिमंडल की आंतरिक समिति ने 2009-10 में उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में बंटे बुंदेलखंड के 13 जिलों से करीब 62 लाख किसान-मजदूरों के पलायन का जिक्र करते हुए एक रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को सौंपी थी।
इस रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के बांदा जिले से सात लाख, 37 हजार, 920, चित्रकूट से तीन लाख, 44 हजार, 801, महोबा जिले से दो लाख, 97 हजार, 547, हमीरपुर जिले से चार लाख, 17 हजार, 489, जालौन से पांच लाख, 38 हजार, 147, झांसी से पांच लाख, 58 हजार, 377 और ललितपुर जिले से तीन लाख, 81 हजार, 316 किसान-मजदूरों के पलायन का जिक्र है।
आंतरिक समिति में जल संसाधन विकास विभाग, नेशनल रेन पैड एरिया एथॉरिटी के सीईओ और कृषि एवं सहकारिता विकास विभाग के प्रतिनिधि शामिल थे। इस समिति ने बुंदेलखंड के संतुलित विकास के लिए कुछ सुझाव भी दिए थे। इनमें बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के गठन के अलावा केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना, बेतवा नदी में बांध का निर्माण और उद्योगों की स्थापना के लिए सेंट्रल एक्साइज, आयकर, कस्टम तथा सर्विसेज टैक्स में शत प्रतिशत छूट कर संतुलित विकास करने की सिफारिश की गई है।
यह केंद्रीय रिपोर्ट अब भी प्रधानमंत्री कार्यालय में पड़ी है और न तो कांग्रेस की अगुआई वाली संप्रग-दो की सरकार ने अमल करने की जरूरत महसूस की और न ही नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार ही कुछ करने के संकेत दे रही है। इस सरकार का ध्यान कैराना की तरफ ज्यादा है। हो सकता है, इस सरकार कैराना मुद्दा ज्यादा ‘वोट दिलाऊ’ लग रहा हो।
पिछले विधानसभा चुनाव में 19 विधानसभा सीटों वाले बुंदेलखंड में सात-सात विधायक सपा और बसपा, चार कांग्रेस और एक भाजपा का विधायक चुना गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में सभी चार सांसद भाजपा के जीते हैं, जिनमें झांसी सांसद साध्वी उमा भारती केंद्र में मंत्री हैं। लाखों किसान-मजदूरों के पलायन के मामले को विधानमंडल में मुख्य विपक्षी दल बसपा ही नहीं, किसी भी दल के विधायकों ने नहीं उठाया। जबकि दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष बांदा के ही बाशिंदे हैं। लोकसभा या राज्यसभा में भी पहले विपक्ष में रही भाजपा और अब कांग्रेस भी उठाने की जरूरत नहीं समझ रही।
हैरत की बात यह है कि कैराना में मतदाताओं के पलायन को भाजपा जोर-शोर से उठा रही है, लेकिन बुंदेलियों के पलायन पर वह चुप्पी साधे है। हो सकता है, उसे इन इंसानों और उन इंसानों में फर्क करना आता हो या उसके पास मुद्दा तय करने की कोई नायाब कसौटी हो।
उप्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और बांदा की नरैनी सीट से बसपा प्रत्याशी गयाचरण दिनकर से जब इस पलायन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि आंतरिक समिति की रिपोर्ट यदि पीएमओ में पड़ी है तो यहां के किसान-मजदूरों के पलायन के लिए पहले कांग्रेस और अब भाजपा जिम्मेदार है।
बसपा सरकार में सबसे ज्यादा विकास होने का दावा करते हुए उन्होंने कहा, “बहन जी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाए जाने का प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था, जब तक यह राज्य नहीं बनता, तब तक यहां के किसान-मजदूरों के पलायन को रोकने की बात करना बेमानी होगी।” –आईएएनएस
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