नई दिल्ली, 26 फरवरी (जनसमा)। ‘‘सियाचिन में पिछले 33 साल में 915 सैनिक जवानों ने देश की सीमा की रक्षा करते हुए अपनी जान गंवाई है। औसतन 28 जवान हर साल अत्यंत दुर्गम इलाकों के विपरीत मौसम के शिकार होते हैं। लेकिन अब यह संख्या 10 रह गई है। यह बहुत दुख की बात है लेकिन प्राकृतिक आपदा के बारे में कोई पूर्व घोषणा करना संभव नहीं है।’’
फोटोः सियाचिन ग्लेशियर (आईएएनएस/डीपीआरओ)
‘‘केंद्र सरकार सियाचिन जैसे दुर्गम इलाकों में तैनात सैनिकों के बारे में सातवें वित्त आयोग की सिफारिशों के निर्णय के बाद यह जानकारी देगी कि उन्हें कितना आर्थिक सम्मान दिया जाएगा। यह सम्मान राशि कितनी होगी, यह अभी बताया नहीं जा सकता।’’
लोकसभा में शुक्रवार को सियाचिन ग्लेशियर पर सैनिकों की तैनाती से संबंधित सांसदों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने यह बात कही।
उन्होंने बताया कि सियाचिन जैसे इलाकों में जो सैनिक अपना कर्त्तव्य निभा रहे हैं, उन्हें सभी प्रकार के आवश्यक जीवन रक्षक उपकरण दिए गए हैं। इतना ही नहीं ऐसे 19 आइटम भी दिए जाते हैं जिनमें प्रोटीन आदि स्वास्थ्यरक्षक चीजें होती हैं।
लद्दाख से भाजपा के सांसद थुपस्तन छेवांग ने यह मांग की कि सैनिकों के सहयोग के लिए जो भी स्थानीय लोग या मजदूर काम करते हैं, वह भी विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हैं इसलिए उन्हें भी सम्मानजनक आर्थिक सहयोग देना चाहिए।
पर्रिकर ने कहा कि इस बारे में जरूरी सूचनाएं एकत्रित की जा रही हैं और जमीनी स्थिति क्या है, उसेे देखने के बाद कुछ कहा जा सकता है।
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