तलाकशुदा मुस्लिम पुरुष के मुकाबले तलाकशुदा महिलाओं की संख्या चार

तलाकशुदा मुस्लिम पुरुष के मुकाबले तलाकशुदा महिलाओं की संख्या चार

नई दिल्ली, 21 अक्टूबर | देश में समान नागरिक संहिता पर बहस तेज हो गई है। एक तरफ केंद्र सरकार इसकी तरफदारी कर रही है, तो दूसरी ओर देश भर के मुस्लिम संगठन इसके खिलाफ लगातार आवाज बुलंद कर रहे हैं। मुस्लिम संगठनों का कहना है कि समान नागरिक संहिता को आगे बढ़ाने का कोई भी कदम महिलाओं के लिए नुकसानदायक है, क्योंकि ‘समानता बराबरी की गारंटी नहीं’ है।

बहरहाल, बहस तो होती रहेगी लेकिन इससे संबंधित आंकड़े कुछ और बयां कर रहे हैं। साल 2011 की जनगणना के आंकड़ों के विश्लेषण के मुताबिक, भारत में प्रत्येक तलाकशुदा मुस्लिम पुरुष के मुकाबले तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं की संख्या चार है।

सिख समुदाय को छोड़ दें, तो पुरुषों की तुलना में तलाकशुदा महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है। मुसलमानों में महिलाओं व पुरुषों के तलाक का अनुपात 79:21, अन्य धर्मो में 72:28 तथा बौद्धों में 70:30 है। आंकड़ों से साफ है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं की संख्या अन्य धार्मिक समुदायों के मुकाबले कहीं अधिक है।

भारतीयों की वैवाहिक स्थिति पर साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, तलाकशुदा भारतीय महिलाओं में 68 फीसदी हिंदू तथा 23.3 फीसदी मुसलमान हैं। समान नागरिक संहिता खासकर तीन तलाक पर केंद्र सरकार के प्रतिकूल रवैये के खिलाफ विरोध करते हुए मुस्लिम समूहों ने हाल में इन आंकड़ों का हवाला दिया।

तलाकशुदा पुरुषों में हिंदू 76 फीसदी तथा मुसलमान 12.7 फीसदी हैं।

महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि संख्याओं में लैंगिक असंतुलन का आशय यह है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष अधिक संख्या में दोबारा शादी कर रहे हैं। कानून की जानकार व महिला अधिकार कार्यकर्ता फ्लाविया एग्नेस ने टेलीफोन पर इंडियास्पेंड को दिए एक साक्षात्कार में कहा, “यदि 100 तलाकशुदा जोड़े हैं, तो यह 50:50 अनुपात दर्शाता है। अनुपात में अंतर दर्शाता है कि तलाक के बाद पुरुषों के लिए भले ही दोबारा शादी करना आसान नहीं है, लेकिन यह बात भी है कि वे दोबारा शादी करने की अधिक से अधिक चाहत दर्शाते हैं।”

मुंबई में मुसलमान महिलाओं की संस्था बेबाक कलेक्टिव की संस्थापक हसीना खान ने मुसलमानों में तलाक के अनुपात में अंतर के पीछे दो कारणों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, “पहला यह है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तीन तलाक की मंजूरी देकर पुरुषों को अधिक से अधिक शक्ति दी गई है। महिलाओं के लिए शादी रहने की सुरक्षा व भोजन के साथ-साथ समझौते के लिए कुछ अधिकार दिए गए हैं।”

खान ने कहा कि दूसरा कारण सरकार द्वारा मुस्लिम महिलाओं को सशक्त न करना है। उन्होंने कहा, “इस उप-समूह की जरूरतों के समाधान के लिए बेहद कम राजनीतिक इच्छा शक्ति है। भारत में मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक दशा लगातार खराब होती जा रही है। न तो उन्हें अच्छी शिक्षा मिल रही है न ही नौकरी के मौके।”

भारत में तलाकशुदा लोगों की कुल संख्या 8.5 लाख है। जनगणना के मुताबिक, ग्रामीण भारत में शादियां ज्यादा टूटीं। वहीं शहरी भारत में तलाकशुदा लोगों की संख्या 5.03 लाख है।

महाराष्ट्र में तलाकशुदा लोगों की संख्या सर्वाधिक 2.09 लाख है। राज्य में कुल तलाकशुदा लोगों में लगभग 73.5 फीसदी महिलाएं हैं।

देश के गुजरात राज्य में तलाकशुदा पुरुषों की संख्या सर्वाधिक है, यह आंकड़ा 1.03 लाख है और यह राज्य में तलाकशुदा आबादी का 54 फीसदी है।

गोवा में मात्र 1,330 तलाकशुदा लोग हैं, जहां नाकाम शादियों की संख्या सबसे कम है।

एग्नेस ने कहा, “पुरुष अक्सर अपनी पत्नियों को तलाक न देकर केवल संबंध विच्छेद कर लेते हैं, जिससे दोबारा शादी करने का उनका रास्ता बंद हो जाता है। आंकड़ों में अंतर स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि अधिक से अधिक पुरुष एक से अधिक शादियां करते हैं। पुरुष दूसरी, तीसरी शादियां करते हैं, जबकि समाज महिलाओं को यह अधिकार नहीं देता।”

इंडिया स्पेंड की नवंबर 2015 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2011 के अंत तक एकल भारतीय महिला की संख्या में 39 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।

बीते सात अक्टूबर को विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर लोगों की राय जानने के लिए अपनी वेबसाइट पर 16 सवालों की एक प्रश्नावली जारी की थी।

देश के कई मुस्लिम संगठनों ने सरकार के इस कदम का विरोध किया है और मुसलमानों से इस प्रश्नावली पर कोई प्रतिक्रिया न व्यक्त कर इसका विरोध करने की अपील की है।

भारत की कुल आबादी का 80 फीसदी हिंदू, 14.23 फीसदी मुसलमान, जबकि सिख 1.72 फीसदी , ईसाई 2.3 फीसदी, बौद्ध 0.7 फीसदी तथा जैन 0.37 फीसदी हैं।

===एलीसन सलदन्हा

(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित पत्रकारित मंच, इंडिया स्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत)