नई दिल्ली, 7 जनवरी | करीब 73 फीसदी कारोबारियों का कहना है कि नोटबंदी के बाद से नकदी की कमी के कारण वे संविदा कर्मियों की मजदूरी का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं। पीएचडी चैंबर द्वारा कराए गए सर्वेक्षण से यह जानकारी मिली है।
दिसंबर में किए गए इस सर्वेक्षण में 50 से अधिक अर्थशास्त्री और विश्लेषक, 700 कंपनियां और 2,000 लोग शामिल हुए। इसके निष्कर्षो से पता चला, “कारोबार खंड में 73 फीसदी प्रतिभागियों ने माना कि नोटबंदी के बाद से ही वे नकदी की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं और संविदा कर्मियों को दैनिक मजदूरी का भुगतान तक नहीं कर पा रहे हैं।”
इसे देखते हुए पीएचडी चैंबर के अध्यक्ष गोपाल जिवाराजका ने गुजारिश की है कि नकदी आधारित क्षेत्रों जैसे निर्माण और छोटे और मध्यम उद्योगों (एसएमई) की नकदी सीमा में बढ़ोतरी की जाए ताकि वे अपने कर्मियों और संविदा कर्मियों को वेतन का भुगतान कर पाएं।
नोटबंदी के असर के बारे में 92 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि लोगों को दैनिक जरूरत जैसे खानेपीने की चीजें, दुग्ध उत्पाद और अन्य जरूरी सामान खरीदने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
करीब 58 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि उन्हें अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने में नकदी के कारण काफी परेशानी हो रही है, जबकि 89 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि बैंक और एटीएम पर पर्याप्त नकदी नहीं होना ही सबसे बड़ी बाधा है।
जिवाराजका ने कहा कि नोटबंदी के तात्कालिक असर से भले ही परेशानी हो रही हो, लेकिन लंबे समय में अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद होगा।
उन्होंने कहा कि अनुमान है कि प्रणाली से काले धन के निकल जाने से मुद्रास्फीति कम होगी, ब्याज दरों में बढ़ोतरी होगी और प्रत्यक्ष कर में भी कमी आएगी।
जिवराजका ने कहा, “ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों के बाहर डिजिटल साक्षरता केंद्र स्थापित करने की जरूरत है, ताकि सभी वर्गो में डिजिटल साक्षरता का प्रसार हो सके।”
उन्होंने कहा, “सरकार को आरटीजीएस (रियल टाइम ग्रास सेटलमेंट) और एनईएफटी (नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर) को डिजिटल ट्रांसफर के छतरी तले प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस सुविधा का लाभ उठा सकें और नकदी पर कम निर्भर रहें।”
सरकार ने 8 नवंबर को 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया था और उसके बाद से ही नकदी की निकासी पर सीमा लगा दी गई है।
–आईएएनएस
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