आकाशगंगा में नए तारे की पहचान

लंदन, 23 अगस्त | खगोलविदों के एक दल ने आकाश गंगा में एक नए तारे की पहचान की है, जो धरती से 11,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। इससे हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि अंतरिक्ष में ज्यादातर विशाल तारे किस प्रकार बने। इस युवा तारे का द्रव्यमान पहले से ही हमारे सूर्य का करीब 30 गुणा है और इसका आकार बढ़ता जा रहा है। यह अपने जनक आणविक बादल से अभी भी द्रव्यमान ग्रहण कर रहा है। जब यह तारा पूरी तरह युवावस्था में पहुंच जाएगा तो यह और भी बड़ा हो जाएगा।

हमारे सूर्य की तरह के एक औसत तारे के बनने में कुछेक लाख साल लग जाते हैं। वहीं, बड़े तारे के बनने की प्रक्रिया तेज होती है और इसमें लगभग एक लाख साल लगते हैं।

युनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रॉनामी के डॉ. जॉन इली का कहना है, “ये बड़े तारे अपनी ऊर्जा को काफी तीव्रता से जला देते हैं, इसलिए उनका जीवनकाल छोटा होता है। इसलिए उन्हें उस वक्त पकड़ना काफी मुश्किल होता है, जब वे शैशवावस्था में हों।”

इली और उनके सहकर्मियों ने जिस प्रोटोस्टार की खोज की है, वह घने इंफ्रारेड बादलों के पीछे है, जो अंतरिक्ष का एक बेहद ठंडा व घना क्षेत्र है, जो तारों के नर्सरी के रूप में उत्तम स्थान है।

हवाई के सबमिलीमीटर एरे (एसएमए) और न्यू मेक्सिको के कार्ल जी जेंसेकी वेरी लार्ज एरे के प्रयोग से शोधकर्ता घने बादलों के पार झांकने में कामयाब हुए, जहां तारों का जन्म हो रहा है।

शोधकर्ताओं ने बेहद विशाल तारे के जन्म के एक महत्वपूर्ण चरण की पहचान कर ली है और पाया कि इन तारों का गठन एक तरीके से ही होता है जैसे सूर्य का गैस और बादलों के एक घूमते छल्ले से होता है।

यह दल ‘केलप्लेरियन’ डिस्क की उपस्थिति निर्धारित करने में सक्षम है, जो केंद्र की अपेक्षा किनारों पर तेजी से घूमता है।

इली बताते हैं, “इस तरह की घूर्णन सौर प्रणाली में भी पाई जाती है। आंतरिक ग्रह सूर्य के गिर्द बाहरी ग्रहों की अपेक्षा तेजी से घूमते हैं।”

उन्होंने आगे बताया, “एक बड़े युवा तारे के गिर्द ऐसे डिस्क की मौजूदगी का पता चलना रोमांचक है, क्योंकि इससे पता चलता है कि विशाल तारों का गठन भी उसी तरीके से होता है जैसे कम द्रव्यमान वाले तारों का होता है, जैसे कि हमारा सूर्य।”

यह शोध मंथली नोटिस ऑफ रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

आईएएनएस