नई दिल्ली, 8 सितम्बर | अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार को एक बड़ा झटका लगा है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति तब खारिज कर दी जब आप की सरकार ने स्वीकार किया कि इस मामले में उप राज्यपाल की स्वीकृति नहीं ली गई थी।
सरकार की ओर से जो कहा गया और हाल के फैसले जिसमें राजधानी के प्रशासनिक नियंत्रण में उप राज्यपाल की प्रमुखता दी गई है, इन्हें देखते हुए उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी और न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की पीठ ने इन नियुक्तियों को खारिज कर दिया।
आप की सरकार की ओर से अदालत को कहा गया कि 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति उपराज्यपाल की स्वीकृति के बगैर की गई। अदालत एक जनहित याचिका(पीआईएल) की सुनवाई कर रही थी जिसमें आप सरकार के 21 विधायकों को संसदीय सचिव के रूप में नियुक्ति के फैसले को चुनौती दी गई थी।
इससे पहले सरकार ने यह कहकर विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त करने के अपने फैसले का बचाव किया कि यह कदम ‘सार्वजनिक कार्यालय’ बनाने के बराबर नहीं है।
वर्ष 2015 के फरवरी में सत्ता संभालने के बाद केजरीवाल सरकार ने संसदीय सचिव नियुक्त किए थे। सरकार का कहना था कि इससे काम सुचारु ढंग से होगा। यह भी स्पष्ट कर दिया गया था कि सरकार से इन संसदीय सचिवों को इसके बदले कोई पारिश्रमिक या अनुलाभ नहीं मिलेगा। इस तरह से सरकार के कोष पर कोई बोझ नहीं पड़ेगा।
इस आदेश से उन्हें कार्यालय के काम के लिए सरकारी वाहन का उपयोग करने और मंत्रियों के कार्यालय के काम में सहायता करने के लिए उनके दफ्तर में बैठने के लिए जगह की व्यवस्था की गई थी।
केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने कहा कि यदि आप एक वाहन चालक का इस्तेमाल करते हैं तो भी यह लाभ का पद है। स्वयंसेवी संस्था राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा ने इन नियुक्तियों को रद्द करने की मांग की थी क्योंकि ये असंवैधानिक, गैर कानूनी एवं अधिकार क्षेत्र के बाहर था।
जनहित याचिका में कहा गया था कि मुख्यमंत्री को संसदीय सचिवों को पद का शपथ दिलाने का कोई अधिकार, अख्तियार या शक्ति नहीं है। –आईएएनएस
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