साल 2008 में आरती चौहान (बदला हुआ नाम) को पता चला कि मिफेप्रिस्टॉन और मिसोप्रोस्टॉल नाम की दो गोलियों से गर्भपात हो सकता है।
आरती का बेटा जब एक साल का था जब उसने गर्भपात कराने की सोची।
उनकी 12 वर्षीया एक बेटी, नौ वर्षीय बेटा और एक छह साल की बच्ची है।
चौहान (28) राजस्थान के सिरोही जिले के एक मजदूर की पत्नी है और उन्हें इतनी जल्दी एक और बच्चा नहीं चाहिए।
वह कहती हैं, “एक पड़ोसी ने मुझे इस गोली के बारे में बताया। मैंने यह गोली पास के एक मेडिकल स्टोर से 500 रुपये में खरीद ली और 10 दिन में मेरा गर्भपात हो गया। यह आसान था। सर्जिकल गर्भपात की तुलना में यह बहुत सस्ता है।”
गौरतलब है कि वह तीन साल पहले सíजकल गर्भपात के लिए एक निजी चिकित्सक को 2,000 रुपये का भुगतान कर चुकी हैं।
आरती जैसी कई कहानियां देशभर में मौजूद हैं। देश की लाखों महिलाएं गर्भनिरोधक गोलियों के बारे में कोई जानकारी नहीं है जिस वजह से वह गर्भवाती हो जाती हैं। एक करोड़ से अधिक महिलाएं अपने घर-बार के डर की वजह से गुपचुप गर्भपात करा लेती हैं। इससे परिवार नियोजन की जरूरतों से निपटने में सरकार की नाकामी का पता चलता है।
जिलास्तरीय घरेलू एवं फैसिलिटी सर्वेक्षण 2007-2008 के मुताबिक, परिवार नियोजन कार्यक्रम नसबंदी को बढ़ावा देता है जिससे पांच में से एक महिला को देश में गर्भनिरोध गोलियों की जरूरत रहती है।
गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन से अनचाहे गर्भ से बचने की प्रक्रिया से देश में कुल प्रजनन दर प्रतिस्थापन दर से नीचे चली गई है। यह वह स्तर है जहां जहां न ही आबादी बढ़ेगी और न ही घटेगी।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुमान के मुताबिक, देश की प्रजनन दर 2.3 है लेकिन यदि महिलाओं को गर्भनिरोधक गोलियों दी जाए और सुरक्षित गर्भपात का आश्वासन दिया जाए तो प्रजनन दर 1.9 तक गिर सकती है। यही समान दर अमेरिका, आस्ट्रेलिया और स्वीडन में भी है।
एक गैर सरकारी संगठन ‘द पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया’की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा ने कहा, “यदि सरकार अनचाहे गर्भ को रोकने पर ध्यान देती है और महिलाओं को सही फैसला लेने में सशक्त करें तो देश की आबादी गिरना शुरू हो जाएगी।”
पूनम ने बताया, “तीन लड़कियों के बाद मेरे परिवार को लड़का चाहिए था। एक पड़ोसी ने गर्भनिरोधक गोलियां लेने की सलाह दी जिसके बाद मैंने माला-डी लेना शुरू कर दिया।”
वह अवांछित गर्भ के लिए लगातार गोलियां ले रही थीं जिससे उसे पेट और पीठ में दर्द, भारी मात्रा में खून बहना, बुखार, उल्टी आना जैसेी दिक्कतें हो रही थीं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, देश में अनुमानित रूप से दो से पांच फीसदी महिलाओं को अपूर्ण गर्भपात को पूरा करने और रक्त के बहाव को नियंत्रित करने के लिए शल्य चिकित्सा की जरूरत है।
फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में प्रसूति एवं स्त्री रोग के विभाग के प्रमुख एवं निदेशक सुनीता मित्तल ने कहा, “मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम 1971 में पारित होने की वजह से देश में सर्जिकल गर्भपात को वैधता प्राप्त है। गर्भपात से महिलाओं की जान को जखिम रहता है।”
मौजूदा समय में भारतीयों के पास गर्भनिरोधक तीरकों के पांच तरीके हैं जिसमें कंडोम, ओरल पिल्स, इंट्रा-यूट्रेस उपकरण, पुरूष एवं महिला नसबंदी शामिल हैं।
पूनम मुत्तेरजा कहती हैं, “शोध से पता चला है कि गर्भपात के हर नए विकल्प से आधुनिक गर्भनिरोधक दर आठ से 12 फीसदी बढ़ेगी। देश में गर्भनिरोधक दर 52.4 फीसदी है इसका मतलब है कि आधी से अधिक भारतीय महिलाएं और उनके पार्टनर मौजूदा समय में गर्भनिरोधक उपायों का इस्तेमाल कर रेह हैं जिससे यह दर बढ़ने की संभावना है।
वर्ष 2002 में मिफेप्रिस्टोन और मिसोप्रोस्टोल के कानूनन इस्तेमाल तक देश में छह फीसदी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 31 फीसदी बड़े सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सुरक्षित गर्भपात सेवाएं उपलब्ध नहीं करा रहे थे लेकिन अब महिलाएं गुपचुप तरीके से गर्भनिरोधक गोलियां ले रही हैं।
बेंगलुरु स्थित फोर्टिस अस्पताल के सलाहकार सर्जन मंगला रामचंद्रन का कहना है, “दवाइयों से अस्पताल में भर्ती होने और सर्जरी पर लगने वाला खर्चा बढ़ गया है और इससे सर्जिकल गर्भपात की तुलना में निजता बनी रहती है।”
दवाइयों की बिक्री के आधार पर दर्ज और अनुमानित गर्भपातों के बीच अंतर से पता चलता है कि महिलाएं मुख्य रूप से कन्या भ्रूणों का गर्भपात करा रही हैं। 2011 में देश का लिंग अनुपात1,000 पुरूषों पर 940 महिलाएं थीं। –चारू बाहरी
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