‘‘जनता यह अपेक्षा करती है कि संसद में उनकी कठिनाइयों के समाधान तथा देश के विकास पर चर्चा हो। उनकी आशाओं पर खरा उतरना ही हमारी संसदीय व्यवस्था की सफलता की कसौटी है। जनमानस की अपेक्षाओं के अनुरूप आचरण करने में ही संसदीय लोकतन्त्र की मर्यादा है।’’
यह विचार राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने 01 अगस्त, 2018 को नई दिल्ली में संसद भवन के सेंट्रल हॉल में वर्ष 2013, 2014, 2015, 2016 और 2017 के लिए उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार समारोह को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि आज ‘उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार’ से सम्मानित होने पर श्रीमती नजमा हेपतुल्ला, हुकुमदेव नारायण यादव, गुलाम नबी आज़ाद, दिनेश त्रिवेदी और भर्तृहरि महताब, इन सभी को मैं बधाई देता हूँ।
हम सबको उनके प्रशस्ति-पत्रों और उनके विचारों को सुनने का अवसर मिला।
इन सभी ने संसदीय गरिमा को अक्षुण्ण रखते हुए अपने ज्ञान और विवेक के द्वारा संसद की कार्यवाही को समृद्ध किया है।
इन्होने अन्य सांसदों के लिए अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत किये हैं।
राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने सुझाव देते हुए कहा कि मुझे जानकारी मिली है कि कुछ राज्यों में विधायकों के लिए ऐसे पुरस्कार स्थापित किए गए हैं।
मेरा सुझाव है कि सभी राज्यों में भी ‘स्टेट असेम्बलीज़’ द्वारा सर्वोत्तम विधायकों के लिए पुरस्कार स्थापित किए जाएँ। आशा है कि लोक सभा अध्यक्ष इस बारे में पहल करेंगी।
इस अवसर पर राष्ट्रपति द्वारा व्यक्त किये गये विचार इस प्रकार हैं :
- संसद की कार्यवाही के दौरान कई सांसदों द्वारा विषयों की तैयारी प्रस्तुति और गंभीरता ने मुझे प्रभावित किया है। इसे और व्यापक बनाना चाहिए।
- यह सेंट्रल हॉल हमारी संसद के गौरवशाली इतिहास के केंद्र में रहा है।
- यह हॉल हमारे संविधान के निर्माण का साक्षी है। यहाँ संविधान सभा की ग्यारह सत्रों की बैठकें हुईं जो कुल मिलाकर एक सौ पैंसठ दिन चलीं।
- 14-15 अगस्त] 1947 की मध्य-रात्रि के समय इसी सेंट्रल हॉल में संविधान सभा को
पूर्ण प्रभुसत्ता प्राप्त हो गई थी।
- जैसा कि हम सभी जानते हैं 26 नवंबर, 1949 को इसी सेंट्रल हॉल में ‘भारत का संविधान’ अंगीकृत किया गया था।
- इस सेंट्रल हॉल में त्याग और सदाचरण के उच्चतम आदर्श प्रस्तुत करने वाली अनेक विभूतियाँ उपस्थित रही हैं।
- इसी हॉल में उन्होने न्याय, समानता, गरिमा और बंधुता के सर्वोच्च आदर्शों को समाहित करने वाले हमारे संविधान की रचना की है।
- इस प्रकार यहाँ सेंट्रल हॉल में उपस्थित सांसदों के समक्ष एक महान परंपरा को आगे ले जाने की ज़िम्मेदारी है।
- भारतीय लोकतन्त्र की आत्मा हमारी संसद में बसती है। संभवतः इसीलिये संसद को लोकतन्त्र का मंदिर भी कहा जाता है।
- सांसद केवल किसी एक दल या संसदीय क्षेत्र के प्रतिनिधि नहीं होते हैं, वे हमारे संवैधानिक आदर्शों के संवाहक होते हैं।