आदि शंकराचार्य के प्राकट्योत्सव 1 मई 2017 पर विशेष
सभ्यता और संस्कृति मानव के सतत प्रयास के परिणाम हैं जिनसे वह अपने व्यक्तित्व के आयामों का विस्तार करता है ताकि अन्य प्राणियों के साथ उसका तादात्म्य स्थापित हो जाए। आदि शंकराचार्य ऐसे ही महान् आचार्य, दार्शनिक, चिन्तक और आध्यात्मिक एकता के प्रतीक महामानव थे। इनका जन्म 8वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में केरल के एक गांव कलाड़ी या कलाटी में हुआ था।
शंकराचार्य ने गीता पर भाष्य लिखते समय सभ्यता और संस्कृति के व्यावहारिक परिणामों को सुस्पष्ट किया। जब कोई व्यक्ति हर वस्तु को अपनी समझता है और हर वस्तु में स्वयं को देखता है तो इस प्रकार की एकाकार की भावना से वह दूसरों के सुख को अपना सुख तथा दूसरों के दुख को अपना दुख समझने लगता है। इस प्रकार की अनन्य भावना जब किसी व्यक्ति में आ जाती है तो वह अन्य के सुख में अधिक सुख तथा अन्य के दुख में अधिक दुख की अनुभूति करने लगता है।
किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत अहंकार के असीमित विस्तार को कम करना ही सभ्यता और संस्कृति के क्षेत्र में पहुंचने का एकमात्र मार्ग होता है। ईशावास्योपनिषद् के प्रथम छन्द की व्याख्या करते हुए शंकराचार्य ने कहा है कि वास्तविक सुख मात्र त्याग से ही प्राप्त होता है । त्याग में प्रतिष्ठा और सत्ता के व्यक्तिगत लोभ के लिए कोई स्थान नहीं है ।
व्यक्ति को अपने जीवन में सत्य का साक्षात्कार तथा उससे तादात्म्य स्थापित कर लेना चाहिए। बुद्धिमत्ता इसी में है कि गंभीरता पूर्वक सोचे गए कार्य को जल्द से जल्द पूर्ण कर लेना चाहिए। यही ‘‘जीवन-मुक्ति’’ का आदर्श है। दूसरे शब्दों में, वे चाहते हैं कि हमारा संसार एक ऐसा स्थान बने जहां एकता की झांकी और प्रेम का आचरण हो क्योंकि सब कुछ प्रेम से ही उत्पन्न होता है। सूक्ष्म आध्यात्मिकता की शुष्क कल्पनाओं के प्रति उनकी कोई सहानुभूति नहीं है। मुक्ति का कार्य तात्कालिक है और अनिवार्यतः व्यावहारिक है। विभाजन बाधाओं को पार कर जाना तथा सर्व करुणामय के प्रति चेतना का परिवर्तन मानवता के प्रति शंकर के आह्वान का मुख्य विषय है।
शंकर ने प्रश्नोत्तर के रूप में हमें बहुत उपयोगी ज्ञान का उपदेश दिया है। उनमें से कुछ इस प्रकार हैंः-
स्वच्छता क्या है ?
स्वच्छ मन।
विद्वान कौन है ?
बुद्धिमान।
सबसे आवश्यक क्या है ?
अपने लिए तथा दूसरों के लिए कल्याणकारी कार्य करना।
महान् शत्रु कौन है ?
आलस्य।
वीर कौन है ?
जिसका अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण हो।
महान् सम्मान क्या है ?
किसी वस्तु की याचना न करना।
निद्रा क्या है ?
अज्ञान।
नरक क्या है ?
दासता।
सत्य क्या है ?
प्राणियों के प्रति सत्कर्म।
मृत्यु से बढ़कर क्या है ?
गुप्त रूप से पाप करना।
संसार पर किसने विजय पा ली है ?
जो सच्चा है।
सौन्दर्य क्या है ?
सदाचार।
चार दुर्लभ वस्तुएं क्या हैं ?
1. माधुर्य के साथ उदारता, 2. गर्वरहित ज्ञान, 3. सहिष्णुता युक्त वीरता, 4. त्याग सहित धन।
किस प्रकार की संगति में नहीं रहना चाहिए।
जिसमें गुरूजन न हों।
रक्षणीय क्या है ?
कीर्ति।
हमारी मां कौन है ?
गाय।
महान शस्त्र क्या है ?
तर्क
उन्नति कौन करता है ?
विनम्र।
सज्जन कौन है ?
जो सन्तुष्ट है।
भाग्य क्या है ?
स्वास्थ्य।
परिणाम किसे मिलता है ?
जो भूमि को जोतता है।
प्रत्यक्ष देवता कौन है ?
मां।
और इस तरह शंकराचार्य ने आम आदमी के मन में उठते प्रश्नों का सहज ही समाधान दिया। ऐसा समाधान जिसके मार्ग पर चलकर व्यक्ति अपना और संसार का कल्याण कर सकता है।
— डा. पी.के. सुन्दरम् के आलेख पर आधारित
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