लोकसभा के बाद आज 11 दिसंबर, 2019 को राज्यसभा (Rajya sabha) में भी नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 (Citizenship Amendment Bill 2019) पारित (passed ) हो गया। राज्य सभा में विधेयक को 105 के मुकाबले 125 वोटों से मंजूरी मिली।
इस नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 (Citizenship Amendment Bill 2019 में 1955 के नागरिकता अधिनियम में संशोधन करके अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के छह समुदायों के अवैध आप्रवासियों को भारतीय नागरिकता के लिए पात्र बनाने का प्रावधान किया गया है।
ये समुदाय हैं-हिन्दू, सिक्ख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई।
राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 (Citizenship Amendment Bill 2019) पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि 44 सांसदों ने विधेयक पर अपने विचार रखे। मैं सभी की शंकाओं का समाधान करने की कोशिश करूंगा।
शाह ने कहा कि ये बिल कभी न लाना पड़ता अगर इस देश का बंटवारा नहीं हुआ होता। बंटवारे के कारण उत्पन्न हुई समस्या के कारण यह बिल लाना पड़ा है। अगर कोई सरकार पहले ही समाधान करलेती तो यह बिल लाना नहीं पड़ता।
राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 (Citizenship Amendment Bill 2019) को पेश करते हुए अमित शाह(Amit Shah) ने यह भी कहा कि इसका उद्देश्य उन लोगों को सम्मानजनक जीवन देना है जो दशकों से पीड़ित थे ।
शाह ने कहा कि देश का बंटवारा और बंटवारे के बाद की स्थितियों के कारण यह बिल लाना पड़ा ।
नरेंद्र मोदी सरकार सिर्फ सरकार चलाने केलिए नहीं आई है, देश को सुधारने के लिए और देश की समस्याओं का समाधान करने के लिए आई है।
शाह ने कहा कि हमारे पास 5 साल का बहुमत था, हम भी सत्ता का केवल भोग कर सकते थे किंतु देश की समस्या को कितने सालों तक लटका कर रखा जाए, समस्याओं को कितनाकितना बड़ा किया जाये।
उन्होंने विपक्षी सांसदों से कहा कि अपनी आत्मा के साथ संवाद करिए और यह सोचिए कि यदि यह बिल 50 साल पहले आ गया होता तो समस्या इतनी बड़ी नहीं होती।
उन्होंने कहा कि 8 अप्रैल 1950 को नेहरू-लियाकत समझौता हुआ जिसे दिल्ली समझौते के नाम से भी जाना जाताहै। उसमें यह वादा किया गया था कि दोनों देश अपने-अपने अल्पसंख्यकों के हितों का ध्यान रखेंगे किंतु पाकिस्तान में इसे अमल में नहीं लाया गया ।
अमित शाह ने कहा कि भारत ने यह वादा निभाया और यहां के अल्पसंख्यक सम्मान के साथ देश के सर्वोच्च पदों पर कामकरने में सफल हुए किंतु तीनों पड़ोसी देशों ने इस वादे को नहीं निभाया और वहां के अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया गया।
एक प्रश्न के जवाब में शाह ने कहा कि नागरिकता बिल में पहले भी संशोधन हुए और विभिन्न देशों को उस समयकी समस्या के आधार पर प्राथमिकता दी गई और वहां के लोगों को नागरिकता प्रदान की गई। आज भारत की भूमि-सीमा से जुड़े हुए इन 3 देशों के लघुमती (अल्पसंख्यक) शरण लेने आए हैं इसलिए इन 3 देशों की समस्या का जिक्र किया जारहा है ।
शाह का कहना था कि पासपोर्ट, वीजा के बगैर जोप्रवासी भारत में आए हैं उन्हें अवैध प्रवासी माना जाता है किंतु इस बिल के पास होने के बाद तीनों देशों के अल्पसंख्यकों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा|
शाह ने कहा कि यह बिल भारत के अल्पसंख्यक समुदाय को लक्षित नहीं करता है। धार्मिक उत्पीड़न के शिकार इन तीनों देशों के लोग रजिस्ट्रेशन कराकर भारत की नागरिकता ले पाएंगे|
शाह का कहना थाकि 1955 की धारा 5 या तीसरे शेडयूल की शर्तें पूरी करने के बाद जो शरणार्थी आए हैं उन्हें उसी तिथि से नागरिकता दीजाएगी जब से वह यहां आए तथा इस बिल के पास होने के बाद उनके ऊपर से घुसपैठ या अवैध नागरिकता के केस स्वतःही समाप्त हो जाएंगे|
शाह ने कहा कि अगर इन अल्पसंख्यकों के पासपोर्ट और वीजा समाप्त हो गए हैं, तो भी उन्हें अवैध नहीं माना जाएगा।
अमित शाह ने आसाम का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि आसाम आंदोलन के शहीदों की शहादत बेकार नहीं जाएगी | उनका कहना था कि 1985 में राजीव गांधी के द्वारा क्लॉज़ सिक्स के तहत एक कमेटी बनाने का निर्णय लिया गया था जो वहां के लोगों की भाषा, संस्कृति और सामाजिक पहचान की रक्षा करती किंतु यह आश्चर्यजनक बात है कि 1985 से लेकर 2014 तक तीन दशकों से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी वह कमेटी ही नहीं बन सकी|
उनका कहना था कि 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद उस कमेटीका गठन किया गया|
उन्होंने आसाम के लोगों से आग्रह किया कि वह समझौते के प्रावधानों को पूरा करने के लिए प्रभावी कदम उठाने के लिए जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकारको सौंपे।
उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों के लोगों की आशंकाओं को दूर करते हुए गृह मंत्री ने कहा कि क्षेत्र के लोगों की भाषाई, सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को संरक्षित रखा जाएगा और इसविधेयक में संशोधन के रूप में इन राज्यों के लोगों की समस्याओं का समाधान है।
पिछले एक महीने से नॉर्थ ईस्ट के विभिन्न हितधारकों के साथ मैराथन विचार-विमर्श के बाद शामिल किया गया है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को राजनीतिक विचारधाराओं से परे एक मानवतावादी के रूप में देखा जाना चाहिए।
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