अखिलेश और मुलायम अलग-अलग लड़ सकते हैं चुनाव : सूत्र

लखनऊ, 04 जनवरी (जस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव के बीच जारी घमासान में अभी कोई तस्वीर साफ नजर नहीं आ रही है। टेलीविजन चैनल्स पर कहा जा रहा है कि लखनऊ में बुधवार को भी अखिलेश और मुलायम के बीच सुलह की कोशिशें जारी हैं। सूत्रों का कहना है कि अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव अलग-अलग चुनाव लड़ सकते हैं।

सूत्रों के अनुसार अखिलेश और मुलायम गुट अलग-अलग चुनाव लड़ सकते हैं। अधिकतर विधायक अखिलेश यादव के समर्थन में हैं और वह साइकिल चुनाव चिन्ह पर ही चुनाव लड़ना चाहते हैं। अखिलेश गुट के एमएलए अखिलेश को भविष्य के नेता के तौर पर देख रहे हैं।

चुनाव पंडितों का कहना है कि दूरस्थ क्षेत्रों में लोग उम्मीदवार का चेहरा नहीं पहचानते और न ही पार्टी को जानते हैं इसलिए इन क्षेत्रों में लोग चुनाव चिन्ह देखकर ही वोट पर ठप्पा लगाते हैं।

सूत्रों का कहना है कि अखिलेश और मुलायम के बीच हुई बैठक में शिवपाल अपना पद छोड़ने को तैयार हैं साथ ही अगर जरूरत पड़ी तो वह अपनी परम्परागत जसवंत नगर सीट भी छोड़ने को तैयार हैं लेकिन मुलायम गुट सारे अधिकार अखिलेश यादव को देना नहीं चाहता क्योंकि मुलायम गुट को लग रहा है कि इस तरह वह ‘सरेंडर’ करने वाले समझे जाएंगे और पार्टी में उनकी कोई हैसियत नहीं रहेगी।

बुधवार को चुनाव आयोग द्वारा 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बाद आए कुछ सर्वे में बताया जा रहा है कि यदि समाजवादी पार्टी (सपा) में बंटवारा होता है तो इसका पूरा फायदा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मिल सकता है और वह नम्बर एक पर रह सकती है। वहीं मायावती मुस्लिम कार्ड खेलकर दूसरे स्थान पर पहुंच सकती हैं और अखिलेश यादव तीसरे, कांग्रेस चौथे व मुलायम सिंह पांचवें स्थान पर जा सकते हैं।

भाजपा को नोटबंदी का कोई खास नुकसान होता नहीं दिख रहा है क्योंकि अधिकतर लोग कठिनाइयों को सहते हुए भी इस फैसले को भविष्य के लिए अच्छा मान रहे हैं क्योंकि लोगों का यह भी लगता है कि इससे भ्रष्टाचार दूर होगा।

वहीं मायावती सपा के बंट जाने से मुस्लिम मतों को अपनी तरफ लाने में सफल हो सकती हैं और उनकी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को दलित और मुस्लिम गठजोड़ का फायदा मिल सकता है।

कांग्रेस की बात की जाए तो पिछले 27 साल से उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर रहने के कारण कार्यकर्ताओं में कोई जोश नहीं बचा है। हालांकि कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने किसान रथ के जरिए कार्यकर्ताओं में जोश जगाने की कोशिश जरूर की थी लेकिन अब वह जोश मंद होता दिखाई दे रहा है। राहुल का किसान कार्ड उत्तर प्रदेश की ग्रामीण जनता में किस तरह काम करेगा, यह देखने की बात होगी।