नई दिल्ली, 2 फरवरी| ‘चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो’ मोहम्मद रफी का गया यह गीत वर्ष 1990 की फिल्म ‘चौदहवीं का चांद’ का है। गुजरे जमाने की अभिनेत्री वहीदा रहमान इसी फिल्म से मशहूर हुई थीं। संयोगवश वहीदा का मतलब भी ‘लाजवाब’ होता है। अपने करिश्माई अभिनय से पांच दशकों तक दर्शकों के दिल पर राज करने वाली वहीदा सचमुच लाजवाब हैं।
वहीदा रहमान की खूबसूरती के सभी कायल हैं। उन्होंने अपनी खूबसूरती और बेहतरीन अभिनय से सबको अपना दीवाना बनाया। बचपन से ही नृत्य और संगीत के प्रति दिलचस्पी रखने वाली अदाकारा असल जिंदगी में डॉक्टर बनना चाहती थीं। वह पद्मश्री और पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित अभिनेत्री हैं।
वहीदा खुशकिस्मत हैं कि नाचने-गाने के उनके शौक को माता-पिता ने सराहा और उन्हें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में एक परंपरागत मुस्लिम परिवार में 14 मई 1936 को जन्मीं वहीदा रहमान की गिनती बॉलीवुड की शीर्ष अभिनेत्रियों में की जाती है। यहां तक कि बॉलीवुड के ‘शहंशाह’ अमिताभ बच्चन उनके सबसे बड़े प्रशंसक हैं। बिग बी कई मौकों पर उनकी तारीफ कर चुके हैं।
वहीदा वैसे तो बचपन में डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन किस्मत में कुछ और ही लिखा था। उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई शुरू भी की, लेकिन फेफड़ों में इन्फेक्शन की वजह से यह कोर्स वह पूरा नहीं कर सकीं।
माता-पिता के मार्गदर्शन में वहीदा भरतनाट्यम नृत्य में निपुण हो गईं। इसके बाद वह मंचों पर प्रस्तुतियां देने लगीं, फिर उन्हें नृत्य के कई प्रस्ताव मिले, लेकिन वहीदा की कम उम्र के चलते उनके अभिभावकों ने उन प्रस्तावों को ठुकरा दिया। जब पिता का निधन हो गया, तब घर में आर्थिक संकट के चलते वहीदा ने मनोरंजन-जगत का रुख किया। उन्हें वर्ष 1955 में दो तेलुगू फिल्मों में काम करने का मौका मिला।
कुछ ही दिनों बाद हिंदी सिनेमा के अभिनेता, निर्देशक व निर्माता गुरुदत्त ने उनका स्क्रीन टेस्ट लिया और पास होने पर उन्हें फिल्म ‘सीआईडी (1956)’ में खलनायिका का किरदार दिया। अभिनय के अपने हुनर से उन्होंने इस किरदार में जान डाल दी, इसके बाद उन्हें एक के बाद एक फिल्में मिलनी शुरू हो गईं। ‘सीआईडी’ की कामयाबी के बाद फिल्म ‘प्यासा’ (1957) में वहीदा रहमान को बतौर नायिका के रूप में लिया गया।
गुरुदत्त और उनके प्रेम-प्रसंग के किस्से भी चर्चा में रहे। गुरुदत्त और वहीदा रहमान अभिनीत फिल्म ‘कागज के फूल’ (1959) की असफल प्रेमकथा उन दोनों की स्वयं के जीवन पर आधारित थी। इसके बाद दोनों ने फिल्म ‘चौदहवीं का चांद’ (1960) और ‘साहब बीवी और गुलाम’ (1962) में साथ-साथ काम किया।
वहीदा ने अपने करियर की शुरुआत में गुरुदत्त के साथ तीन साल का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था, जिसमें उन्होंने शर्त रखी थी कि वह कपड़े अपनी मर्जी के पहनेंगी और अगर उन्हें कोई ड्रेस पसंद नहीं आई तो उन्हें वह पहनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।
गुरुदत्त ने 10 अक्टूबर, 1964 को कथित रूप से आत्महत्या कर ली थी। इसके बाद वहीदा अकेली हो गईं। लेकिन उन्होंने अपने करियर से मुंह नहीं मोड़ा। राज कपूर के साथ फिल्म ‘तीसरी कसम’ में उन्होंने नाचने वाली हीराबाई का किरदार निभाया था और नौटंकी में गया था- ‘पान खाए सैंया हमारो..मलमल के कुर्ते पर पीक लाले लाल’ जो काफी लोकप्रिय हुआ। बिहार के फारबिसगंज की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।
वर्ष 1965 में ‘गाइड’ के लिए वहीदा को फिल्मफेयर अवार्ड मिला। 1968 में आई ‘नीलकमल’ के बाद एक बार फिर से वहीदा रहमान सभी का आकर्षण रहीं, इस फिल्म में वह अभिनेता मनोज कुमार और राजकुमार के साथ नजर आई थीं, यह फिल्म उनके करियर को बुलंदियों तक पहुंचाने में सफल साबित हुई।
इसके बाद, अभिनेता कंवलजीत ने शादी का प्रस्ताव रखा, जिसे वहीदा रहमान ने खुशी से स्वीकार कर लिया और शादी के बंधन में बंध गईं। वर्ष 2002 में उनके पति का आकस्मिक निधन हो गया। वह एक बार फिर अकेली हो गईं, लेकिन टूटी नहीं, हार नहीं मानीं।
वहीदा ने 2006 ‘रंग दे बसंती’ के बाद ‘पार्क एवेन्यू’, ‘मैंने गांधी को नहीं मारा’, ‘ओम जय जगदीश’ जैसी कई फिल्मों में अपने अभिनय के जलवे बिखेरे।
वहीदा और देव आनंद की जोड़ी को भी दर्शकों ने खूब सराहा। दोनों ने ‘सीआईडी’, ‘काला बाजार’, ‘गाइड’ और ‘प्रेम पुजारी’ जैसी सफल फिल्मों में काम किया।
वहीदा का जिक्र आते ही सिने प्रेमियों को अक्सर फिल्म ‘गाइड’ की याद आ जाती है। इसमें वहीदा रहमान और देवानंद की जोड़ी ने ऐसा कमाल किया कि दर्शक सिनेमाघरों में फिल्म देखने को टूट पड़ते थे। वहीदा को इस फिल्म के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था।
वहीदा ने अपने फिल्मी करियर के दौरान दो बार फिल्मफेयर अवार्ड जीता, पहला सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार उन्होंने 1969 की फिल्म ‘नीलकमल’ और दूसरा 1967 की ‘गाइड’ के लिए जीता। बेमिसाल अभिनय करने वाली वहीदा को 1972 में पद्मश्री और साल 2011 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
बुजुर्ग हो चुकीं अभिनेत्री वहीदा अब भी पूरी तरह सक्रिय हैं, लेकिन अब फिल्मों में काम करने को इच्छुक नहीं हैं। वह अपना पूरा समय परिवार को ही देना चाहती हैं। उन्हें 81वां जन्मदिन मुबारक! –आईएएनएस
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