प्रशासनिक लापरवाही के कारण रावण दहन के दौरान हुए अमृतसर रेल हादसे ने अनेक परिवारों के घरों की रोशनी बुझादी और उन्हें आंसुओं के समंदर में डुबो दिया।
सवाल यह है कि प्रशासन ने रावण दहन आयोजन को देखते हुए सुरक्षा के कदम क्यों नहीं उठाये? यह स्वाभाविक है कि ऐसे आयोजनों में सैंकड़ों लोग इकट्ठे होते हैं।
अमृतसर प्रशासन क्या भारत में चर्चित इस कहावत को चरितार्थ करने में लगा था कि पुलिस और प्रशासन तब सक्रिय होते हैं जब हादसे हो जाते हैं।
अमृतसर रेल हादसा के कारण पंजाब में शनिवार को राजकीय शोक का ऐलान किया गया है। शिक्षण संस्थाएं, स्कूल और दफ्तर बंद हैं।
दूसरी ओर रेलवे बोर्ड चेयरमैन अश्विनी लोहनी ने स्पष्ट कहा कि कार्यक्रम की हमें कोई जानकारी नहीं दी गई थी।
लोहनी का कहना है कि ड्राइवर ब्रेक लगाता तो बड़ा हादसा हो जाता। (यह सही भी है।)
उन्होंने कहा ट्रेन अपनी तय स्पीड से गुजरी है। उसकी रफ्तार 90 किलोमीटर प्रतिघंटा थी। ड्राइवर के हल्का ब्रेक लगाने पर उसकी स्पीड 60 से 65 किलोमीटर प्रतिघंटा हुई थी।
यह भी खबर है कि रेल ड्राइवर ने दावा किया कि उसे हरा सिग्नल दिया गया था। उन्हें पता नहीं था कि सैकड़ों लोग ट्रैक पर खड़े हैं।
पंजाब और रेलवे पुलिस ने शनिवार को ट्रेन के चालक से पूछताछ की । डीएमयू के चालक को लुधियाना रेलवे स्टेशन पर हिरासत में लिया गया और घटना के बारे में पूछताछ की गई ।
घटना स्थल पर मौजूद लोगों का कहना है कि दुर्घटना 10-15 सेकंड में खत्म हो गई थी।
रेलवे राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने शुक्रवार की देर रात दुर्घटना स्थल का दौरा किया।
रेलवे का कहना है कि रावण दहन देखने के लिए लोगों का पटरियों पर एकत्र होना स्पष्ट रूप से अतिक्रमण का मामला था।
इस कार्यक्रम के लिए रेलवे द्वारा कोई मंजूरी नहीं दी गई थी।
सिन्हा ने कहा कि घटना की जांच की जा रही है और यह त्रासदी दुर्भाग्यपूर्ण थी।
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