हैदराबाद, 21 मार्च | सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने मंगलवार को अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले को न्यायालय के बाहर सुलझाने की सर्वोच्च न्यायालय की सलाह को एक तरह से खारिज करते हुए कहा कि यह मालिकाना हक का मामला है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “कृपया याद कीजिए बाबरी मस्जिद मुद्दा मालिकाना हक का मामला है, जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गलती से भागीदारी मामला मानकर फैसला सुनाया था। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय में अपील किया गया है।”
ओवैसी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के सदस्य हैं। एआईएमपीएलबी ने विवादित स्थल राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद को तीन हिस्सों में बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था, जिसमें दो हिस्से हिंदू संगठनों को और शेष मुस्लिमों को देने का फैसला सुनाया गया था।
एआईएमपीबी ने अदालत के आदेश को ‘अस्वीकार्य’ करते हुए कहा था कि यह फैसला विचारधारा पर आधारित है, साक्ष्यों पर नहीं।
सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले को ‘अजीब और आश्चर्यजनक’ करार देते हुए नौ मई, 2011 को उस पर रोक लगा दी थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को राम मंदिर बनाए जाने की भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी की अपील पर सुनवाई करते हुए दोनों पक्षों को अदालत से बाहर ही मामला सुलझाने की सलाह दी है।
वहीं, ओवैसी ने उम्मीद जताई कि सर्वोच्च न्यायालय 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के समय से लंबित अन्य मामलों पर फैसला सुनाएगा।
उन्होंने कहा, “इस बात का इंतजार कर रहा हूं कि क्या बाबरी गिराए जाने के मामले में (भाजपा नेता एल.के.) आडवाणी, (मुरली मनोहर) जोशी, उमा भारती के खिलाफ साजिश के आरोप तय होंगे।”
–आईएएनएस
(फाइल फोटो)
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