Pakistan _ mran Khan

बुरे आर्थिक हालात के बावजूद पाकिस्तान सीमा पर बना रहा है युद्ध जैसा माहौल

बृजेन्द्र रेही  ==== अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान (Pakistan) को वर्तमान में अपने देश के भीतर सभी प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।  कश्मीर (Kashmir) में धारा 370 (Article 370) हटाये जाने के बाद से पाकिस्तान अपने बुरे आर्थिक हालात के बावजूद भारत-पाक सीमा (Indo-Pak border) पर युद्ध जैसा माहौल बना रहा है।

इस समय पाकिस्तान (Pakistan) का प्रशासनिक तंत्र चरमरा रहा है। सामाजिक सेवाओं के संदर्भ में अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं, निजी स्वास्थ्य क्षेत्र को खराब तरीके से नियंत्रित करना, स्वास्थ्य के लिए कम बजटीय आवंटन, सीमित संसाधनों का आवंटन करते समय अनुचित प्राथमिकता आदि समस्याओं से उसे जूझना पड़ रहा हैं। हालात इतने बुरे हैं कि स्वास्थ्य सेवाओं के लिए होने वाला व्यय  45 प्रतिशत आबादी के लिए जेब से बाहर है।

पाकिस्तान (Pakistan) की आबादी का एक बड़ा हिस्सा कैंसर, अल्जाइमर, फेफड़ों की बीमारी, पार्किंसंस जैसे तंत्रिका संबंधी रोग तथा गंभीर हृदय संबंधी बीमारियों से पीड़ित है।

शिक्षा, सामाजिक विकास और परिवार नियोजन में पाकिस्तान के खराब प्रदर्शन से भविष्य के आर्थिक विकास के बाधित होने की आशंका है।

शिक्षा की बात करें तो केवल 26 प्रतिशत पाकिस्तानी ही साक्षर हैं। इसके कारण गाँवों की बात तो छोड़िये शहरी क्षेत्रों में भी प्रजनन क्षमता में गिरावट का कोई सबूत नहीं है।

टीवी फोटो: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान

सामाजिक जीवन में बच्चों, महिलाओं की सीमित भूमिका, परिवार नियोजन का इस्लामिक विरोध और सामाजिक सेवाओं के अयोग्य और असंतुलित सरकारी वितरण के कारण भी पाकिस्तान के सामाजिक जीवन पर मनोवैज्ञानिक और आर्थिक दबाव बढ़ गया है।

विश्व बैंक सहित अनेक अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और विशेषज्ञों ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर कुछ वर्षों के भीतर, जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण नहीं किया गया तो पाकिस्तान (Pakistan) की अर्थव्यवस्था (economy) की ढांचागत कमजोरियों और बढ़ जाएंगी।

विशेषज्ञों का कहना है कि  लगभग सभी वित्तीय संकेतकों ( financial indicators) में पाकिस्तान (Pakistan) की अर्थव्यवस्था (economy) में  गिरावट देखी गई है। विकास दर (growth rate) 6.2 प्रतिशत से लगभग 50 प्रतिशत घटकर 3.3 प्रतिशत रह गई। अगले साल यह और भी कम होकर 2.4 प्रतिशत होने की उम्मीद है, जो कि पिछले 10 वर्षों में देश का सबसे कम हिस्सा होगा।

इस समय पाकिस्तानी रुपये (Pakistani rupee) का मूल्य यूएस डालर (US dollar) के मुकाबले काफी गिर गया है ( 1 डाॅलर=155 पाकिस्तानी रुपया) । अगले 12 महीनों में मुद्रास्फीति (Inflation) लगभग 13 प्रतिशत पर पहुंचने की उम्मीद है, जो 10 साल के उच्च स्तर पर भी पहुंच जाएगी।

इसप्रकार के बुरे आर्थिक हालातों के बावजूद कश्मीर के मामले में पाकिस्तान की हालत उस ड्रग एडिक्ट जैसी हो गई है जिसे नशे के अलावा और कुछ दिखाई नहीं देता।

पिछले 70 सालों में जब-जब भी पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ किसी भी प्रकार का कदम उठाया है, अपवाद को छोड़कर उसे दुनिया के कूटनीतिक मंच पर मुंह की खानी पड़ी है।

बंटवारे के बाद से ही पाकिस्तान कश्मीर पर अपनी बुरी नजर डाले हुए हैं। सन् 1947 के अक्टूबर माह में पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला किया उसका जो भारत ने मुँह तोड़ जवाब दिया  उसे  अब तक वह भुला नहीं पा रहा है। अगर सच्चाई को समझकर पाकिस्तान के राज नेता अपने देश का विकास करन, गरीबी हटाने और स्वास्थ्य और शिक्षा पर ध्यान देते तो आज उसे दुनिया के सामने भीख का कटोरा ले कर घूमना नहीं पड़ता।

पाकिस्तान को सत्तर साल में यह समझ में आ जाना चाहिए था कि लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था से बढ़कर कोई भी शासन पद्धति बेहतर नहीं है। लोकतंत्र ही विकास की सही सीढ़ी है किन्तु सैनिक तानाशाहों द्वाराअपने ही देश को लूटने और अपनी ही जनता को भुखमरी के कगार पर पहुंचाना कोई समझदारी नहीं हे।

धर्म के नाम पर गरीबों को जिहादी बनाकर दहशतगर्दी में धकेलने का दुष्परिणाम भी खुद पाकिस्तान भुगत रहा है। उसे याद रखना चाहिए कि  दुनिया के हर देश के नागरिक अपने अपने धर्मों का पालन करते हुए विकास की सीढ़ियाँ चढ़ रहे हैं।

पाकिस्तान के शासकों के साये में पल रहे  दहशतगर्दों ने भारत-पाक सीमांत क्षेत्रों में जो अशान्ति फैला रखी है और बजट का बड़ा हिस्सा सैनिक कार्रवाइयों (military operations) पर खर्च किया जारहा है वह पाकिस्तान (Pakistan) के लिए ही प्राणघातक सिद्ध हो रहा है।

हालात यह है कि सेना पर बेहताशा खर्च करके पाकिस्तान ने अपने को कंगाली के कगार पर पहुंचा दिया है। यह पाकिस्तान का दुर्भाग्य है कि भारतीय सीमा में अवैध घुसपैठ और आतंकवादी गतिविधियों के कारण दुनिया नेें उसे दोयम दर्जे का देश बना दिया है।

जो अपने हालात ठीक नहीं कर सकता, जो अपने लोगों को रोटी नहीं दे सकता, जो अपने लोगों का इलाज नहीं करा सकता वह पाकिस्तान, कश्मीर के लोगों की भलाई की बात करता है। इससे अधिक कोई बात मूर्खतापूर्ण नहीं होगी पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) उस कहावत को चरितार्थ करने में लग गए है जिसमें कहा गया कि गांठ में दमड़ी नहीं, बुढ़िया चली चने भुनाने।

भारत हमेशा से ही पाकिस्तान को सहयोग देने की नजर से देखता रहा है। इसके लिए जन नेता और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee)  ने भी भरसक कोशिश की थी किन्तु पाक के सैन्य शासकों की समझ में बात नहीं आई।

प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 28 सितंबर 2001 को प्रधानमंत्री निवास में आए जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा था ‘‘पाकिस्तान की भयंकर भूल होगी यदि वह इस भ्रम में रहे कि वर्तमान अघोषित युद्ध के द्वारा वह कुछ भी हासिल कर सकता है।

कश्मीर भारत का अटूट अंग है और रहेगा। हमारे पड़ोसी का यह समझ लेना चाहिए कि वक़्त की घड़ी को पीछे घुमाया नहीं जा सकता। पाकिस्तान के शासकों और अवाम को भी मैं हमारे एक विख्यात शायर साहिर लुधियानवी (Sahir Ludhianvi) की पंक्तियों पर गौर करने की सलाह देना चाहता हूँ।
पंक्तियां इस प्रकार हैं:-
वह वक्त गया, वह दौर गया, जब दो कौमों का नारा था,
वे लोग गए इस धरती से जिनका मकसद बंटवारा था।

अब एक हैं सब हिन्दुस्तानी, अब एक हैं सब हिन्दुस्तानी,
यह जान ले सारा हिन्दुस्तान यह जान ले सारा जहान।

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