संदीप पौराणिक===भोपाल, 4 नवंबर | मध्यप्रदेश की राजधानी की केंद्रीय जेल से प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के विचाराधीन आठ कैदियों के फरार होने और उन्हें मुठभेड़ में ढेर कर दिए जाने की घटना की सच्चाई चाहे जो हो, मगर इस घटना से उपजे सवालों ने राज्य की पुलिस की विश्वसनीयता में बट्टा जरूर लगा दिया है।
दिवाली की रात सिमी के आठ विचाराधीन कैदी एक प्रहरी रमाशंकर यादव की गला रेतकर हत्या करने के बाद जेल की दीवार फांदकर फरार हो गए थे। फरार होने के आठ घंटे बाद आठों कैदी एक साथ शहर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर एक पठार पर दिखाई दिए। पुलिस के संयुक्त दल ने आठों को मुठभेड़ में मार गिराया।
मुठभेड़ को अंजाम दिए जाने के बाद से ही कई तरह के सवाल उठने लगे थे। प्रत्यक्षदर्शियों ने आरोपियों के पास पत्थर और डंडे होने की बात कही, जिस पर सवाल उठा कि पुलिस ने गोली क्यों चलाई?
पुलिस महानिरीक्षक योगेश चौधरी ने इसका जवाब दिया, “आठों ‘क्रॉस फायरिंग’ में मारे गए हैं, उनके पास से चार कट्टे व तीन धारदार हथियार मिले हैं। इस मुठभेड़ में तीन पुलिसकर्मी भी धारदार हथियार से घायल हुए हैं।”
फोटो : भोपाल में 31 अक्टूबर, 2016 को सिमी के मारे गए कथित आतंकवादियों के शव ले जाती पुलिस
लेकिन एटीएस प्रमुख संजीव शर्मा ने सिमी सदस्यों के पास हथियार होने की बात नकार दी है। अब चौधरी की बात सही है या शर्मा की, राम जाने!
उधर, जेल कर्मचारियों और सिमी सदस्यों के बीच मिलीभगत को लेकर सवाल उठे तो प्रमुख सचिव (जेल) विनोद सेमवाल ने इसकी संभावना से इनकार नहीं किया है।
सवाल ये भी उठ रहे हैं कि आरोपियों के पास जेल से निकलने के बाद नए कपड़े, घड़ी और जूते कहां से आए? वे जब 20 फुट से ज्यादा ऊंची दीवार फांद गए, तब महज चार फुट ऊंची दीवार में लगे दरवाजे का ताला उन्हें क्यों तोड़ना पड़ा? आठों आरोपी एक साथ क्यों थे, उन्हें तो अलग-अलग दिशाओं में भाग जाना चाहिए था।
विचाराधीन कैदियों ने बैरक के ताले खोलने के लिए प्लास्टिक के टूथब्रश और लकड़ी के टुकड़े से चाबियां कैसे बनाईं? सेंट्रल जेल के ताले क्या इतने कमजोर हैं कि वे प्लास्टिक और लकड़ी की चाबी से खुल जाते हैं? यह बात भी किसी के गले नहीं उतर रही है।
मुठभेड़ के बाद कई राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी सवाल उठाए हैं। कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने तो यहां तक कहा, “जेल से भागने वाले मुसलमान ही क्यों होते हैं? खंडवा जेल में भी ऐसा हुआ था।”
राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक एन.के. त्रिपाठी का कहना है कि इससे पहले राज्य में मुठभेड़ को लेकर इस तरह की बातें कभी नहीं उठीं। पुलिस अगर ‘आतंकियों’ पर कार्रवाई नहीं करती तो भी सवाल उठए जाते। जेल की सुरक्षा तो सवालों के घेरे में पहले से है। जेल के बाहर का काम पुलिस का है, अगर वह उन पर कार्रवाई नहीं करती तो भी उस पर सवाल उठाए जाते।
उन्होंने आगे कहा कि गुजरात में मुठभेड़ों पर उठाए गए सवालों के चलते कई पुलिस अफसरों को जेल भी जाना पड़ा है, जबकि अब तक उन पर आरोप तय नहीं हुए हैं।
वहीं पूर्व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक विजय बाते का कहना है कि जब भी कोई मुठभेड़ होती है, उस पर विपक्ष और आरोपी के परिजन सवाल उठाते हैं। हर मुठभेड़ की मजिस्ट्रिेटी जांच भी होती है। इससे न तो पुलिस के मनोबल पर असर पड़ता है और न ही उसकी विश्वसनीयता पर किसी तरह का सवाल उठता है।
समाजशास्त्री एस.एन. चौधरी का मानना है कि अब ज्यादातर मामलों में विपक्ष की ओर से सवाल उठाए जाने लगे हैं। सर्जिकल स्टाइक तक पर सवाल उठे। इन चीजों से सुरक्षा बलों के मनोबल पर कोई असर नहीं होता है और न ही उनकी विश्वसनीयता प्रभावित नहीं होती है। हां, अंग्रेजों के समय के कानून की विश्वसनीयता जरूर प्रभावित होती है, क्योंकि सुरक्षा बल तो आदेश का पालन करता है।
बहरहाल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सिमी सदस्यों के जेल से भागने और मुठभेड़ में मारे जाने की न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं। मुठभेड़ के दिन उन्होंने कहा था कि उनकी केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से बात हो चुकी है, जांच एनआईए करेगी। अब खबर आई है कि राजनाथ ने कहा है कि एनआईए से जांच की जरूरत नहीं है।
विपक्ष लगातार न्यायिक जांच की मांग करता आ रहा था। राज्य के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह हालांकि इस बात को नकारते हैं कि विपक्ष के दबाव न्यायिक जांच के आदेश दिए गए हैं।
–आईएएनएस
Follow @JansamacharNews